पुरी : श्री जगन्नाथ की महिमा पूरे ब्रम्हांड में प्रशंसनीय है. दुनिया में एकमात्र नेपाल हिंदू देश है जो श्रीक्षेत्र से जुड़ा हुआ है. भगवान जगन्नाथ के निवास और पुरी मंदिर के साथ इसका गहरा संबंध है जो कि अद्वितीय और विशेष है. क्योकिं नेपाल के राजा को छोड़कर किसी और व्यक्ति को रत्न सिंघासन पर चढ़ने की अनुमति नहीं है. नेपाल के राजा ही श्री जगन्नाथ के रत्न सिंहासन पर जाकर उनकी पूजा करते हैं और अपने हाथों से उनके लिए प्रसाद बनाते हैं. इतना ही नहीं भगवान के पहले सेवक के रूप में माने जाने वाले पुरी के गजपति राजा दिब्यसिंह देव भी भगवान के रत्न सिंहासन पर नहीं चढ़ सकते हैं. सवाल यह उठता है कि नोपाल के राजा को इतने सम्मान और विशेषाधिकार देने के पीछे क्या रहस्य है.
प्राचीन काल से नेपाल के राजा दुर्लभ 'कस्तूरी' (नर हिरण की नाभि से स्रावित सुखद गंध वाला पदार्थ) और भगवान जगन्नाथ के अनुष्ठानों के लिए कीमती रेशमी कपड़े की आपूर्ति करते आ रहे हैं. यह कस्तूरी नवकलेवर से जुड़े विभिन्न अनुष्ठानों के लिए आवश्यक है. जब भगवान अपने पुराने शरीर को त्यागते हैं और नए शरीर धारण करते हैं. इस दौरान उनकी आत्मा को पुराने शरीर से स्थानांतरित कर दिया जाता है.
यह कार्य भगवान के अनासरा में पूरा किया जाता है. जहां उनके अनुष्ठान करते समय कस्तूरी की विशेष आवश्यकता पड़ती है. इसके अलावा नेपाल के तत्कालीन राजा ने एक लाख 'शालिग्राम' (भगवान जगन्नाथ के जेवर सिंहासन में रखे छोटे पत्थर के टुकड़े) की आपूर्ति की थी, जिन्हें रत्न सिंहासन के निर्माण के समय भगवान विष्णु के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है.