बीजिंग : चीन और भारत वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर शांति कायम रखने, गतिरोध को बातचीत से सुलझाने एवं दोनों देशों के नेतृत्व के बीच बनी सहमति को लागू करने पर राजी हुए हैं. यह दावा चीन के शीर्ष अधिकारी ने सोमवार को किया.
चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता हुआ चुनयिंग की यह टिप्पणी सीमा पर मौजूदा गतिरोध को द्विपक्षीय समझौते के तहत सुलझाने के लिए सैन्य स्तर पर हुई मैराथन बैठक के दो दिन बाद आई है.
उन्होंने कहा कि छह जून को भारत और चीन के कमांडरों के बीच चुशुल मोल्दो क्षेत्र में बैठक हुई और दोनों पक्षों में विचार-विमर्श किया. हुआ ने कहा, 'हाल में कूटनीतिक और सैन्य माध्यमों से दोनों पक्ष सीमा की मौजूदा स्थिति पर संवाद कर रहे हैं.'
उन्होंने कहा, 'एक सहमति यह बनी है कि दोनों पक्षों को दोनों देशों के नेताओं के बीच सहमति को लागू करने की जरूरत है, ताकि मतभेद विवाद में न तब्दील हो जाए.'
हुआ चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देशों का संदर्भ दे रही थीं, जो दो अनौपचारिक शिखर सम्मेलन के बाद दिए गए थे. चिनफिंग-मोदी ने दोनों देशों की सेनाओं को सीमा पर शांति और धैर्य कायम रखने के लिए विश्वास बहाली के और कदम उठाने को कहा था.
चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता ने आगे कहा, 'दोनों पक्ष सीमा पर शांति और धैर्य कायम रखने के लिए काम करेंगे और अच्छा वातावरण बनाएंगे.'
उन्होंने कहा, 'हालात स्थिर और नियंत्रण में है और दोनों पक्ष संबंधित मुद्दे को सुलझाने के लिए विचार-विमर्श को तैयार हैं.'
हुआ की टिप्पणी भारतीय विदेश मंत्रालय के बयान के एक दिन बाद आई है, जिसमें कहा गया था कि भारत और चीन सीमा पर जारी मौजूदा गतिरोध को शांतिपूर्ण सुलझाने के लिए द्विपक्षीय समझौते के तहत कूटनीतिक और सैन्य स्तर पर बातचीत जारी रखने को सहमत हैं.
उल्लेखनीय है कि लेह स्थित 14वीं कॉर्प के जनरल ऑफिसर कमांडिंग लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह के नेतृत्व में भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने चीन के तिब्बत सैन्य जिले के कमांडर मेजर जनरल लियू लिन के नेतृत्व वाले प्रतिनिधिमंडल से चीनी नियंत्रण वाले क्षेत्र के मोल्दो में शनिवार सुबह साढे़ 11 बजे मैराथन बातचीत की जो शाम तक यह जारी रही.
वहीं नई दिल्ली में पूरी बातचीत की जानकारी रखने वाले व्यक्ति ने बताया कि उच्च स्तरीय सैन्य वार्ता से पूर्वी लद्दाख में उत्पन्न गतिरोध का कोई स्पष्ट नतीजा नहीं निकला और भारत पेंगोंग त्सो, गलवान घाटी जैसे संवेदनशील इलाके में लंबे समय तक गतिरोध के लिए तैयार है.
विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा था कि बातचीत सौहार्द्रपूर्ण और सकारात्मक माहौल में हुई और दोनों पक्ष इस बात पर सहमत थे कि मामले के शीघ्र समाधान से दोनों देशों के रिश्तों के और विकास में मदद मिलेगी.
उल्लेखनीय है कि पिछले महीने के शुरू में गतिरोध शुरू होने के बाद भारतीय सैन्य नेतृत्व ने फैसला किया कि भारतीय सैनिक पेंगोंग त्सो,गलवान घाटी, डेमचोक, दौलत बेगी ओल्डी सहित सभी विवादित क्षेत्रों में चीनी सैनिकों की आक्रमता का मुखरता से जवाब देंगे.
सूत्रों ने बताया कि चीनी सेना क्रमबद्ध तरीके से अपने रणनीतिक साजो सामान को वास्तविक नियंत्रण रेखा स्थित ठिकानों पर जमा कर रही है. इनमें तोप, बख्तरबंद गाड़ियां, भारी सैन्य उपकरण शामिल हैं.
उन्होंने बताया कि चीन ने उत्तरी सिक्किम और उत्तराखंड से लगती एलएसी सीमा पर भी सैनिकों की संख्या बढ़ा दी है, जिसके जवाब में भारत ने भी अतिरिक्त जवानों की इलाके में तैनाती की है.
दोनों सेनाओं के बीच उस समय गतिरोध शुरू हुआ जब भारत द्वारा गलवान घाटी में दारबुक-शयोक-दौलत बेग ओल्डी के साथ-साथ पेगोंग झील के आसपास फिंगर इलाके में महत्वपूर्ण सड़क का निर्माण शुरू किया गया और चीन ने इसका विरोध किया.
पूर्वी लद्दाख में उस समय स्थिति और बिगड़ गई जब पांच और छह मई को 250 भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हिंसक आमना-सामना हुआ. पेगोंग त्सो की तरह की घटना नौ मई को उत्तर सिक्किम में भी हुई.
उल्लेखनीय है कि भारत और चीन के बीच 3,488 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण को लेकर विवाद है. चीन अरुणाचल प्रदेश के हिस्सों को दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताकर दावा करता है, जबकि भारत पहले ही इस दावे को खारिज कर चुका है.