चेन्नई : प्रत्येक देश और लोग अपने देश के जानवरों की नस्लों पर गर्व करते हैं, चाहे वह कुत्ते की हो या कोई अन्य पालतू जानवर. यह जानवर कब हमारी संस्कृति और परिवार का हिस्सा बन जाते हैं पता ही नहीं चलता.
जब हम कुत्तों की देसी नस्लों की बात करते हैं, तो स्निफर कोम्बाई, मुथोल हाउंड, कारवां हाउंड और पुलिकुथथा जैसी आठ प्रजातियों के नाम जुबां पर आ जाते हैं. इनकी विशेषताएं तमिलनाडु का गौरव बनी हुई हैं. उनकी वीरता और अपने मालिक के प्रति दृढ़ निष्ठा के किस्से बहुत हैं.
देसी नस्लों के जानवर होते हैं वफादार आज पशु प्रेमी विदेशी नस्लों के जानवर पालना चाहते हैं. ऐसे जानवरों के लिए हमारा वातावरण ठीक नहीं होता है. ऐसे परिवेश में उनको रहने में परेशानी होती और वे ज्यादा समय तक जीवित नहीं रह पाते हैं. इन सबको देखते हुए देसी नस्लों को बचाने और संरक्षित करने की तत्काल आवश्यकता है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी लोगों को कुत्तों की देसी नस्लों की ओर ध्यान केंद्रित करने के लिए कहा है. उन्होंने मन की बात कार्यक्रम में कुत्तों की राजपलयम, चिप्पीपराई और कोम्बाई प्रजाति की महानता का भी उल्लेख किया. उनके गुणों को बताते हुए प्रधानमंत्री ने यह स्पष्ट किया कि देसी प्रजातियों का भरण-पोषण देश में आसान है जोकि विदेशी नस्लों के विपरीत है.
इसके बाद जनता ने नए सिरे से देसी कुत्तों को पालने में रुचि ली है और तमिलनाडु के दक्षिणी जिलों में कई लोग कुत्तों के पालन-पोषण को एक लाभदायक लघु उद्यम के रूप में देख रहे हैं.
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सुनीता क्रिस्टी जो परित्यक्त मवेशियों और कुत्तों के लिए आश्रम चलाती है, ने बताया कि देसी नस्लों के पिल्लों की कीमत 1,000 से 12,000 रुपये तक है. सबसे ज्यादा सुपर स्निफर की मांग है. इस प्रजाति के कुत्ते अपनी आखिरी सांस तक अपने स्वामी की रक्षा करते हैं.