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बाढ़ नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय रणनीति लागू करने की जरूरत

इन दिनों भारत बाढ़ की चपेट में हैं. देश के अधिकरत हिस्से बाढ़ में डूबे हुए हैं. एक आंकडे के अनुसार बाढ़ के कारण फसलों को भारी नुकसान हुआ है और जानें भी गई हैं साथ ही लाखों लोग बेघर हुए हैं. वहीं सरकारों को नहरों पर से अतिक्रमण हटाने में तेजी और तालाबों के साथ ही जल निकायों पर अवैध कब्जा रोकने के लिए सख्त कार्रवाई की योजना के लिए प्रतिबद्ध होना पड़ेगा. इसके साथ ही बाढ़ नियंत्रण पर राष्ट्रीय नीति को लागू करने में ईमानदारी का रुख दिखाना होगा. पढ़ें पूरी खबर...

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Published : Aug 19, 2020, 5:09 PM IST

Updated : Aug 19, 2020, 6:04 PM IST

हैदराबाद : देश के लोग भारी बारिश के कारण आई भयंकर बाढ़ की विपदा झेल रहे हैं. देश के कई भागों के निचले इलाके लगातार बारिश के कारण बहुत बड़े जलाशय की तरह दिख रहे हैं. बड़े पैमाने पर जलमग्न हो गए खेतों की वजह से किसान दुखी हैं. देश के कई हिस्सों में बिजली की आपूर्ति बाधित है.

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की ताजा रिपोर्ट में इस तथ्य की पुष्टि की गई है कि बाढ़ के कारण फसलों को भारी नुकसान हुआ है और जानें भी गई हैं. आधिकारिक आंकड़ों में यह कहा गया है कि जुलाई-अगस्त में महाराष्ट्र, राजस्थान, ओडिशा और छत्तीसगढ़ समेत कुल 11 राज्यों में कम से कम 868 लोगों की जान गई है. बारिश की तीव्रता की वजह से केवल असम और बिहार में ही 55 लाख लोग बेघर हो गए हैं. यह तेलुगु बोलने वाले दोनों राज्यों के लिए डरावना है. बद्राद्री एजेंसी समेत गोदावरी के जलस्तर में तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही है, जो आंध्र प्रदेश के लिए खतरनाक है. इसके साथ ही तेलंगाना की नदियों एवं जल स्रोतों में बहुत अधिक बारिश के कारण बाढ़ की स्थिति बनी हुई है, जिसके परिणामस्वरूप बड़ी त्रासदी हुई है.

बाढ़ की चपेट में देश.

लाखों क्यूसेक पानी समुद्र में बेकार जा रहा

भयंकर बाढ़ के पानी के कारण उच्च मार्गों पर और खेतों में पानी बह रहा है. लाखों क्यूसेक पानी समुद्र में बेकार जा रहा है. इस देश में जहां 65 फीसदी भूमि सूखे की चपेट में है, यह वास्तव में दुखद है कि इतना अधिक पानी समुद्र में ऐसे ही चला जा रहा है और हम कुछ नहीं कर पा रहे हैं. यदि साल भर में होने वाली बारिश का 70 फीसद सिर्फ 100 दिन में हो जाए तो उस जल के संचय की तैयारी नहीं रहने की वजह से हम लोग इस बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधन को खोने के लिए बाध्य होंगे ही.

देश के किसी भी हिस्से में बाढ़ की त्रासदी रोकने के लिए साढ़े छह दशक पहले राष्ट्रीय बाढ़ आयोग यानी नेशनल फ्लड कमीशन का गठन किया गया था. पंद्रह साल पहले राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण यानी नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी (एनडीएमए) की स्थापना हुई इसका मुख्य मकसद यह सुनिश्चित करना था कि किसी भी तरह की प्राकृतिक आपदा की स्थिति में जान-माल का नुकसान कम से कम हो. हर साल बार-बार प्राकृतिक आपदा और दिल दहलाने वाले मामलों की श्रृंखला इन संस्थाओं की मौजूदगी की प्रभावहीनता को उजागर करती हैं. बहुत सारे गांवों में बाढ़ से जहां खेतों में खड़ी फसल तबाह हुई है, पशु धन और संपत्ति बर्बाद हुई है. अब डूबे हुए इलाकों में पानी घटने पर जानलेवा बुखार और संक्रमण दयनीय स्थिति पैदा कर रहे हैं.

मोदी सरकार के प्रोजेक्ट पर हो काम

एक सरकारी आकलन के अनुसार, पिछले साढ़े छह दशक में देश के 87 करोड़ से अधिक लोग बाढ़ से प्रभावित हुए हैं. दस लाख से ज्यादा लोगों की जान गई है और 4 लाख 70 हजार करोड़ से अधिक की संपत्ति का नुकसान हुआ है. तेलुगु के प्रख्यात इंजीनियर केएल राव का आकलन है कि बहुत पहले यदि गंगा और कावेरी को मिला दिया गया होता तो 60 हजार क्यूसेक पानी को 150 दिनों तक जमा रखकर 40 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जा सकती थी. यह बहुत दयनीय स्थिति है कि मोदी सरकार 60 नदियों को मिलाना चाहती है, फिर भी इस पर काम शुरू नहीं हो रहा है. यह एक ऐसा प्रस्ताव है, जिससे देश के सुनहरे भविष्य की आधारशिला रखी जा सकती है. सुरेश प्रभु के अनुसार इसके लिए कार्य बल, संबद्धता, राजनीतिक दलों और सरकारों के बीच सहयोग बहुत महत्वपूर्ण है.

इसके अलावा सरकारों को नहरों पर से अतिक्रमण हटाने में तेजी और तालाबों के साथ ही जल निकायों पर अवैध कब्जा रोकने के लिए सख्त कार्रवाई की योजना के लिए प्रतिबद्ध होना पड़ेगा. इसके साथ ही बाढ़ नियंत्रण पर राष्ट्रीय नीति को लागू करने में ईमानदारी का रुख दिखाना होगा.

Last Updated : Aug 19, 2020, 6:04 PM IST

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