लेनिन से जिस प्रकार से पूरी दुनिया में वामपंथी आंदोलनकारियों को प्रेरित किया था, माओ और फिडेल कास्त्रो ने जिस तरह से हिंसा की राजनीति से विदेशी शासन के खिलाफ लड़ाई लड़ी, गांधी ने इनसे अलग एक नया मार्ग अपनाया था. वह रास्ता था सत्याग्रह का. गांधी के इस मार्ग से मंडेला और मार्टिन लूथर जैसी महान विभूति ने प्रेरणा लेकर अपने-अपने यहां क्रांतिकारी बदलाव ला दिए.
बिना खून बहाए ही किसी भी प्रकार के अन्याय के खिलाफ सत्याग्रह के जरिए किस तरह से लड़ाई लड़ी जा सकती है, राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्रों में गांधी का यह सबसे अनूठा योगदान रहा. सत्याग्रह का अहिंसक तरीका बहुत ही प्रभावशाली था. इस रास्ते हमें ब्रिटिश हुकूमत से आजादी मिली. सत्याग्रह ने निहत्थे पुरुषों और महिलाओं को ग्रेट ब्रिटेन जैसे साम्राज्यवादी ताकत के खिलाफ लड़ने का हौसला दिया. सत्याग्रह आंदोलन के जरिए ही इन लोगों में विश्वास पैदा हुआ और उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ भारत छोड़ो जैसे आंदोलन चलाए.
1857 और उसके बाद कई मौकों पर ब्रिटिश शासन के खिलाफ हिंसक तरीकों से हमला किया गया था. सबसे पहला और प्रमुख प्रयास आंदोलनकारी मंगल पांडे का था. लेकिन अंग्रेजों ने उनके विद्रोह को क्रूरता से कुचल दिया था. अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को गिरफ्तार कर निर्वासित कर दिया गया. उसके बाद चिटगांव सैन्य विद्रोह हुआ. इसे भी निर्दयतापूर्वक दबा दिया गया.
कुछ क्रांतिकारी है, जिन्होंने व्यक्तिगत तौर पर अंग्रेजों के खिलाफ शस्त्र उठाए थे. इनमें खुदीराम बोस जैसे वीर शामिल थे. ये सभी कार्य उच्च बलिदान और त्याग के थे. इसके बावजूद बड़े पैमाने पर बड़ी संख्या में लोग उनके पीछे नहीं आए. या कहें कि वे साहस नहीं जुटा सके.
गांधी ने द. अफ्रीका में अंग्रेजों की रंगभेदी शासन के खिलाफ सत्याग्रह आंदोलन छेड़ा था. 1915 में वे भारत लौटे. उसके बाद उन्होंने सत्याग्रह को अपना हथियार बना लिया. निहत्थे लोगों को संघटित किया. बिहार के चंपारण में 1917 में उन्होंने भारत में पहली बार नील की जबरन खेती करवाने का सत्याग्रह के जरिए विरोध किया. यह उनका एक प्रयोग था. इसका असर ऐसा रहा कि नील की जबरन खेती बंद हो गई. इससे लोगों को एक रास्ता मिला. उन्होंने देखा कि अहिंसा की क्या ताकत होती है.
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देश के आम लोगों ने महसूस किया कि वे भी शक्तिशाली ब्रिटिश राज को चुनौती दे सकते हैं. वो भी बिना बम और बंदूक को हाथ में लिए. उसके बाद सत्याग्रह आम लोगों का औजार बन गया. चंपारण सत्याग्रह आंदोलन के तुरंत बाद खिलाफत आंदोल शुरू हुआ. शौकत अली और मोहम्मद अली इसका नेतृत्व कर रहे थे. इस आंदोलन में बड़ी संख्या में मुस्लिमों ने भागीदारी की थी. गांधी ने अली बंधु के आंदोलन का समर्थन किया था. यह आंदोलन बहुत हद तक अहिंसक रहा. खिलाफत एक राष्ट्रवादी आंदोलन था. इस दौरान हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल दिखी थी. ऐसी ही एकता 1857 के सिपाही विद्रोह के दौरान भी दिखी थी.