दलितों के साथ हो रहे अन्याय, आक्रोश और शोषण से गांधीजी इतने अधिक दुखी थे, कि उन्होंने अगले जन्म में दलितों के घर जन्म लेने की इच्छा व्यक्त की. वो भी एक लड़की के रूप में, ताकि वे उस दर्द को मसहूस कर सकें, जिसे हिंदुओं ने दलित समदुाय का दर्जा दिया हुआ है. अगर गांधी की यह इच्छा पूरी हो जाती, तो आज वे अपने गृह राज्य गुजरात में दलितों की स्थिति देखकर क्या सोचते.
पिछले 23 वर्षों में गुजरात में उच्च जाति के हिंदुओं द्वारा दलित समुदाय के 524 लोगों की हत्या कर दी गई है. इसी अवधि में 1,133 दलित महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया और 2100 से अधिक लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं. इस अवधि के दौरान दलितों के खिलाफ गंभीर अपराधों के 38,600 मामले दर्ज किए गए हैं.
लड़की के रूप में हरिजन परिवार में गांधी की जन्म लेने की इच्छा समझ में आती है. उन्होंने बचपन से और अपने पूरे जीवन में अस्पृश्यता के संकट का विरोध किया. अस्पृश्यता ने हिंदू समाज को त्रस्त कर दिया था. उन्होंने अपनी मां की उस चेतावनी को भी दरकिनार कर दिया, जिसमें उन्होंने गांधी को मेहतर से दूर रहने को कहा था. जबकि उस समय वैष्णव समुदाय के लोग कड़ाई से छुआछूत का पालन करते थे.
गांधीजी ने अस्पृश्यता को हिंदू धर्म पर सबसे बड़ा कलंक माना था. उन्होंने कहा कि वेद और पुराण में भी ऐसी प्रथा की कोई चर्चा नहीं है. उन्होंने पंडितों को चुनौती दी कि यदि ऐसा उदाहरण आप हमें वहां से बता सकते हैं, तो इन ग्रंथों को मानना छोड़ देंगे.
महात्मा का मानना था कि उच्च जातियों के सदस्यों को उनके और उनके पूर्वजों के पापों का प्रायश्चित करना चाहिए. उन्हें मैला ढोने, गायों के शवों को निपटाने, टेनरियों में काम करने और स्वच्छ शौचालय बनाने का काम करना चाहिए. अस्पृश्यता को दूर करने के लिए गांधी ने अंतर-जातीय विवाह को प्रोत्साहित किया और घोषणा की कि वे केवल उन्हीं विवाह समारोहों में शामिल होंगे, जिनमें दूल्हा या दुल्हन हरिजन होंगे.
उन्होंने अपनी पत्रिकाओं के नाम हरिजन (अंग्रेजी), हरिजन बंधु (हिंदी) और हरिजन सेवक (गुजराती) रखा. हरिजन के संपादक के रूप में गांधीजी के सचिव महादेव देसाई, सेवाग्राम आश्रम के स्वयंसेवकों के समूह का नेतृत्व करते थे, जो प्रतिदिन निकटवर्ती गांव में जाकर सफाई का काम करते थे. इस बात की पुष्टि प्यारेलाल ने भी की थी. देसाई के निधन के बाद प्यारेलाल गांधी के निजी सचिव बने थे.
जिस किसी भी व्यक्ति ने महादेव देसाई को काम करते देखा था, वे उनके जुनून का दीवाना हो जाता था. वो मगनवाड़ी से हर दिन झाड़ू और बाल्टी लेकर सफाई के कार्य के लिए निकलते थे. हरिजन पत्रिका में वो बढ़-चढ़कर इसकी वकालत करते थे. इस लेखनी के माध्यम से न केवल उन्होंने गांधीजी के विचारों को बल और दृढ़ विश्वास के साथ इन विषयों पर प्रस्तुत करने में सक्षम बनाया, बल्कि उनके व्यक्तिगत उदाहरण ने गांधीजी की गतिविधियों की इन शाखाओं के लिए एक जुनून के साथ श्रमिकों को निकाल दिया.