पटना : बिहार में सरकार के गठन में मुसलमानों की अहम भूमिका होती है. इस विधानसभा चुनाव में भी वे भूमिका निभाने के लिए तैयार हैं. 2010 के विधानसभा चुनावों की तुलना में 2015 के विधानसभा चुनाव में राजद, जदयू और कांग्रेस को मिलाकर महागठबंधन ने 70 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम वोट हासिल करने में कामयाबी हासिल की थी.
आंकड़ों से पता चलता है कि अन्य जातियां या समुदाय अपनी निष्ठा अन्य दलों में स्थानांतरित करतीं रहतीं हैं, लेकिन यादव और मुसलमान हमेशा राजद और उसके सहयोगी दलों के प्रति वफादार रहे हैं. 2015 में एनडीए बस 6 से 7 प्रतिशत मुस्लिम वोट पाने में कामयाब रहा और प्रमुख हिस्सा बिहार में महागठबंधन के साथ रहा.
पिछले 30 सालों से, कुल मतों की हिस्सेदारी का लगभग 17 प्रतिशत हिस्सा मुसलमानों के पास है, जो राजद के साथ मजबूती से खड़ा है. इस निष्ठा के पीछे का कारण मुस्लिम समुदाय में असुरक्षा की भावना है. यह भाजपा के हिंदुत्व से डरा रहता है.
सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) और लोकनीति के सर्वेक्षण के अनुसार राजद और उसके सहयोगियों के साथ यह वोट बैंक 2020 में भी बरकरार रहेगा. सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज के प्रसिद्ध रोग विशेषज्ञ और निदेशक संजय कुमार ने कहा कि असदुद्दीन ओवैसी की अगुवाई में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन का आगमन कुछ प्रतिशत मुस्लिम वोट काटने वाला है, लेकिन ज्यादातर मुस्लिम वोट महागठबंधन के साथ रहेगा.
2015 में अधिकांश मुस्लिम वोट राजद, कांग्रेस और जदयू के पास गए, जबकि 2010 में प्रमुख हिस्सा राजद के साथ 60 से 70 प्रतिशत रहा. हालांकि, एआईएमआईएम ने अन्य दलों के साथ गठबंधन कर कई उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है, जिससे मुस्लिम वोट कट सकते हैं, लेकिन इसके बावजूद बड़ा हिस्सा आरजेडी के पास जाएगा. ईटीवी बिहार के ब्यूरो चीफ अमित भेलारी को फोन पर संजय कुमार ने बताया कि मुझे नहीं लगता कि पसमांदा मुस्लिम भी नीतीश को वोट देंगे.
उन्होंने आगे जोर देकर कहा कि भले ही नीतीश ने कब्रिस्तान की चारदीवारी के निर्माण सहित मुसलमानों के लिए कई कल्याणकारी कार्य किए हों, लेकिन उन्हें भाजपा के साथ होने के नाते मुसलमान का वोट नहीं मिलेगा.