इडुक्की : केरल के इडुक्की जिले में एतिहासिक और विवादाें में रहा मुल्लापेरियार बांध आज (शनिवार को) 125 साल पुराना हो गया. मुख्य रूप से केरल में पेरियार और मुल्लायर नदियों के पानी को तमिलनाडु में पानी की कमी वाले जिलों तक पहुंचाने के लिए बनाए गए इस बांध का निर्माण तत्कालीन मद्रास के गवर्नर ने 10 अक्टूबर 1895 को किया था. केरल और तमिलनाडु के बीच हुआ यह समझौता अगले 874 वर्षों के लिए वैध है. हालांकि, मुल्लापेरियार बांध को लेकर दोनों राज्यों के बीच काफी समय से विवाद चल रहा है. मुल्लापेरियार बांध की सुरक्षा ने केरल की चिंता को बढ़ा दिया है.
1882 में आया प्रस्ताव
शिवगिरी पहाड़ियों की चोकमपेट्टी से पेरियार नदी निकलती है. 48 किलोमीटर बहकर यह मुल्लायर नदी से मनालर में मिलती है और कोट्टमाला से नीचे बहती है. यहां से, दोनों नदियां एक साथ बहती हैं और इसका नाम मुल्लापेरियार नदी है. इस नदी के पार एतिहासिक मुल्लापेरियार बांध एक सदी से भी अधिक समय पहले बनाया गया था. 1882 में एक संशोधित योजना और प्रस्ताव (पहले के प्रस्तावों को सुरक्षा और व्यवहार्यता चिंताओं के कारण अस्वीकार कर दिया गया था) स्कॉटिश मेजर जॉन पेनिकुइक और आर स्मिथ द्वारा प्रस्तुत किया गया था. 1884 में त्रावणकोर की रियासत के साथ इसपर विचार-विमर्श शुरू हुआ. आखिरकार 1886 में एक समझौता हुआ. इस समझौते ने मद्रास प्रांत को पेरियार नदी पर एक बांध बनाने की अनुमति दी.
मुल्लापेरियार बांध आज 125 साल पुराना हो गया समझौता कुल 999 वर्षों के लिए
यह समझौता कुल 999 वर्षों के लिए है. संधि में यह भी विशेष रूप से उल्लेख किया गया था कि मद्रास प्रशासन के पास भूमि का कोई कब्जा नहीं होगा. तत्कालीन त्रावणकोर शासक विशाखम थिरुनल रामावर्मा के निर्देशन में नदी के 155 फीट ऊपर 8000 एकड़ भूमि और बांध निर्माण के लिए अन्य 100 एकड़ भूमि पट्टे पर दी गई थी. लीज एग्रीमेंट के अनुसार त्रावणकोर राज्य को सालाना 5 रुपये प्रति एकड़ लीज शुल्क का भुगतान किया जाना था. बांध का निर्माण 1887 में शुरू हुआ था. डिजाइन के अनुसार बांध की लंबाई 1200 फीट और 115.75 फीट की आधार चौड़ाई के साथ 8 फीट शीर्ष चौड़ाई होना था.
तमिलनाडु के कई जिलों के लिए लाइफलाइन
नींव में काले ग्रेनाइट पत्थरों को एक साथ रखने के लिए गुड़, गन्ने के रस, चूने और अंडे की सफेदी से बना एक सुरखी (चूना) मिश्रण तैयार किया गया था. 1895 में बांध का निर्माण कार्य पूरा हुआ. मुल्लापेरियार बांध का पानी मुल्लापेरियार से लगभग 14 किलोमीटर दूर थेक्कड़ी में 2 किलोमीटर लंबी सुरंग के माध्यम से तमिलनाडु में पहुंचता है. इस पानी का उपयोग तमिलनाडु के थेनी, मदुरै, डिंडीगुल, रामनाड और शिवगंगा जिलों को सिंचित करने के लिए किया जाता है. मुल्लापेरियार पानी का उपयोग पीने के प्रयोजनों के लिए भी किया जाता है और तमिलनाडु के इन जिलों में बिजली उत्पन्न करने के लिए भी किया जाता है. शुरुआत में बड़े तालाबों को खोदकर पानी जमा किया जा रहा था. 1959 में मुल्लापेरियार के पानी को संग्रहित करने के लिए तमिलनाडु में वैगई नदी के पार एक और बांध बनाया गया. वर्तमान में मुल्लापेरियार का पानी इस बांध में संग्रहित किया जा रहा है और फिर इस क्षेत्र के विभिन्न जिलों में जब आवश्यक हो, तब जारी किया जाता है.
विवाद की शुरुआत 1979 में हुई
तमिलनाडु और केरल के बीच इस बांध को लेकर विवाद की शुरुआत 1979 में हुई. 1979 में पानी का खतरनाक स्तर पहली बार बांध पर देखा गया था. पीरुमेदु के तत्कालीन विधायक सी ए कुरियन ने बांध को फिर से शुरू करने की मांग करते हुए वंदी पेरियार में भूख हड़ताल की. इसके बाद 25 नवंबर 1979 को केंद्रीय जल आयोग के सदस्यों ने बांध का निरीक्षण किया. आयोग ने जल स्तर को 136 फीट तक कम करने और संरचना को सुदृढ़ करने के लिए अल्पकालिक और दीर्घकालिक उपाय करने का निर्देश दिया. इस निर्देश के आधार पर सुदृढ़ीकरण कार्यों के साथ बांध पर स्पिलवेज की संख्या 10 से बढ़ाकर 13 कर दी गई थी. सुदृढ़ीकरण कार्यों के पूरा होने पर तमिलनाडु ने जल स्तर को पहले की तरह 152 फीट तक बढ़ाने की मांग की. केरल ने सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए तमिलनाडु की इस मांग को अस्वीकार कर दिया. इसके बाद विवाद न्यायालय तक पहुंच गया.
सुप्रीम कोर्ट में है विवाद
मामला शुरू में संबंधित राज्यों के उच्च न्यायालयों में था. बाद में तमिलनाडु ने डैम से संबंधित सभी मामलों को सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित करने की मांग की. इस मांग के बाद सुप्रीम कोर्ट में विवाद पहुंच गया. सुप्रीम कोर्ट को अभी भी तमिलनाडु की याचिका पर विचार करना है कि केरल पुलिस को बांध की सुरक्षा की जिम्मेदारी से हटाकर केंद्रीय बलों को तैनात किया जाए. केरल के लिए सुरक्षा और तमिलनाडु के लिए पानी का नारा बांध के 125 साल पुराना होने के बाद भी दृढ़ता से गूंजता है.