हैदराबाद : आज भारतीय सेना, जम्मू-कश्मीर पुलिस और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की संयुक्त टीम को बड़ी कामयाबी हासिल हुई. इस टीम ने कश्मीरी आतंकी और हिजबुल मुजाहिद्दीन प्रमुख रियाज नाइकू को मार गिराया. 35 वर्षीय रियाज को जम्मू और कश्मीर के पुलवामा जिले के बेगपोरा में मौत के घाट उतारा गया.
एक उच्च पदस्थ सूत्र ने ईटीवी भारत को बताया कि जब आतंकवादी मारा गया तो उसे तुरंत मृत घोषित नहीं किया गया, बल्कि अभियान के कुछ कारणों के चलते कुछ वक्त बाद यह घोषणा की गई, लेकिन नाइकू का सफाया दशकों पुराने अलगाववादी आंदोलन से जूझ रही भारत सरकार के लिए एक नई चुनौती ला सकता है.
गौरतलब है कि पिछले आठ वर्ष से भगोड़े नाइकू का नाम सुरक्षा बलों की 'मोस्ट वांटेड' की सूची में शामिल था. चित्रकार और स्कूल में गणित का शिक्षक रह चुका रियाज नाइकू सुरक्षा बलों से बच निकलने में कामयाब रहता था.
नौ जुलाई, 2016 को हिजबुल कमांडर बुरहान वानी की हत्या से कश्मीर में उग्रवाद के एक नए चरण का जन्म हुआ और इसी बीच रियाज नाइकू सामने आया. उस वक्त रियाज नाइकू एक अकेला ऐसा शख्स था, जिसने मारे गए कमांडर बुरहान वानी सहित अन्य आतंकवादियों को बंदूक की सलामी दी थी.
इसके बाद नाइकू ने राज्य के पुलिस बलों में एक विभाजनकारी खेल की साजिश रची, जिसमें स्थानीय कश्मीरियों को राज्य के पुलिसकर्मियों के परिवार के सदस्यों का अपहरण करने के लिए शामिल किया गया.
अहम बात है कि रियाज नाइकू की मौत ऐसे समय में हुई है, जब जम्मू और कश्मीर के लोगों में गुस्सा भरा हुआ है. पांच अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद से वहां की जनता में नाराजगी देखने को मिली है.
इसके बाद वहां की राजनीति में खास तौर पर क्षेत्रीय राजनीतिक दलों में काफी फेर-बदल देखने को मिले. हालांकि, बड़ें आतंकवादी संगठनों में शामिल हिजबुल मुजाहिदीन में अभी भी सैकड़ों सक्रिय आतंकवादी हैं.
इस संगठन का नेटवर्क बेहद विस्तृत है, जिसमें बड़े पैमाने पर कश्मीरी शामिल हैं. हिजबुल में नाइकू की भूमिका इस्लामी जिहादी विचारों को फैला कर कश्मीर से भारत को अलग कर पाकिस्तान के साथ विलय करना था.
पिछले कुछ वर्षों से हिजबुल धन और हथियार की कमी से जूझ रहा था. वहीं लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मुहम्मद जैसे आतंकवादी संगठन के पास पाकिस्तान से फंडिंग के पर्याप्त स्त्रोत हैं. इसके कारण हिजबुल के लड़ाकों को किसी भी तरह का प्रभावी प्रशिक्षण नहीं प्राप्त हो रहा है.
एक नया संगठन द रेसिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) कश्मीरियों के बीच अपने समर्थन का दावा करता आ रहा है. टीआरएफ पाकिस्तान के सौजन्य से बेहतर प्रशिक्षण और हथियारों का इस्तेमाल कर रहा है. इसने कश्मीर उग्रवाद आंदोलन को स्वदेशी चेहरा देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है.
हिजबुल का पुराना गढ़ कहा जाने वाला दक्षिण कश्मीर का हिंटरलैंड अशांति का एक नया चरण देख सकता है. इस बार यह और अधिक दुखद हो सकता है, क्योंकि आतंकवादी गतिविधियां उत्तरी कश्मीर में भी पुनरुद्धार के संकेत दे रही है.
यह कहना गलत नहीं होगा कि यह अभी भी बुरा दौर ही है, जहां सेना और अर्धसैनिक बल पहले से ही कोविड-19 महामारी के खिलाफ लड़ाई में लगे हुए हैं.
आने वाली गर्मियों के महीने यह निर्धारित करेंगे कि क्या बुरहान वानी की तरह, नाइकू भी मरने के बाद अधिक शक्तिशाली साबित होगा? क्या उग्रवादी नेता की मृत्यु से प्रेरित होकर और भी लोग उग्रवाद का रास्ता अपनाएंगे?