न्यूयॉर्क: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अपनी आदतों में बदलाव लाने के लिए सोमवार को एक वैश्विक जन आंदोलन की जरूरत बताई और भारत के गैर-परंपरागत (नॉन फॉसिल) ईंधन उत्पादन के लक्ष्य को दोगुने से अधिक बढ़ाकर 450 गीगावाट तक पहुंचाने का संकल्प किया.
मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर अपने भाषण में घोषणा की थी कि पेरिस जलवायु समझौते के तहत अपनी प्रतिबद्धता का पालन करते हुए भारत 175 गीगावाट अक्षय ऊर्जा का उत्पादन करेगा.
एक दिन पहले ही मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ रविवार को ह्यूस्टन में 'हाऊडी मोदी' नामक भव्य समारोह में मंच साझा किया था और आतंकवाद से लड़ने का समान दृष्टिकोण साझा करते हुए दोनों ने मित्रतापूर्ण संबंध प्रदशिर्त किए थे.
हालांकि अमेरिका और भारत दोनों ही जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर भिन्न रुख रखते हैं. ट्रंप ने 2017 में पेरिस समझौते से हटने का फैसला किया था और इसके लिए उन्होंने भारत और चीन को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा था कि समझौता अनुचित है क्योंकि इसके तहत अमेरिका को उन देशों के बदले में भुगतान करना पड़ेगा जिन्हें इसका सबसे ज्यादा लाभ होने जा रहा है.
मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस द्वारा आयोजित सम्मेलन में वैश्विक नेताओं को संबोधित करते हुए कहा, 'हमें स्वीकार करना चाहिए कि अगर हमें जलवायु परिवर्तन जैसी गंभीर चुनौती से पार पाना है तो हम इस समय जो कुछ कर रहे हैं, वह पर्याप्त नहीं है.'
संयुक्त राष्ट्र के अपने पहले कार्यक्रम में मोदी ने कहा कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए विभिन्न देश अनेक तरह के प्रयास कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि आज एक व्यापक प्रयास की जरूरत है, जिसमें शिक्षा से लेकर मूल्यों तक और जीवनशैली से लेकर विकास के दर्शन तक सब शामिल हों.
संयुक्त राष्ट्र के सम्मेलन में बिना पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के पहुंचे राष्ट्रपति ट्रंप की मौजूदगी में मोदी ने कहा, 'बातचीत का समय पूरा हो गया है. अब दुनिया को कार्रवाई करनी होगी.'
मोदी ने घोषणा की कि भारत सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, पनबिजली जैसे गैर-परंपरागत ईंधन के उत्पादन में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाएगा. उन्होंने कहा, '2022 तक हम अपनी अक्षय ऊर्जा उत्पादन की क्षमता को 175 गीगावाट के लक्ष्य से बहुत आगे ले जाने और 450 गीगावाट तक पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध हैं.'
जलवायु कार्रवाई सम्मेलन का उद्देश्य पेरिस समझौते को लागू करने के कदमों को मजबूत करना है. पेरिस समझौते पर 2015 में हस्ताक्षर किये गये थे.
प्रधानमंत्री ने कहा, 'हमें आदतों में बदलाव लाने के लिए वैश्विक जन आंदोलन की जरूरत है.'
उन्होंने कहा, 'प्रकृति के लिए सम्मान, संसाधनों का उचित दोहन, अपनी जरूरतों को कम करना और अपने साधनों के साथ रहना, ये सभी हमारे परंपरागत और वर्तमान प्रयासों के महत्वपूर्ण पहलू रहे हैं. इसलिए आज भारत केवल इस मुद्दे की गंभीरता पर बात करने के लिए नहीं, बल्कि एक व्यावहारिक रुख और खाका प्रस्तुत करने आया है.'