रायपुर: एक तरफ छत्तीसगढ़ सरकार जोर-शोर से दावा कर रही है कि मजदूरों को रोजगार देने के मामले में राज्य पूरे देश में नंबर एक पर काबिज है. इस सरकारी आंकड़े की पोल दिवाली के बाद से हर गांव से शुरू हुआ पलायन खोल रहा है. छत्तीसगढ़ के गांवों में कितनी खुशहाली है, समाज का निचला तबका जो रोज कमाता और रोज खाता है वो कितना खुशहाल है, इसकी एक बानगी ETV भारत की रिपोर्ट में आप देखिए.
छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार प्रदेश में 1 दिसंबर से धान की खरीदी शुरू करेगी. लेकिन पहली बार प्रदेश में ऐसा देखा जा रहा है कि धान खरीदी के ठीक पहले बड़ी संख्या में बेरोजगार और मजदूर रोजगार की तलाश में अन्य राज्यों की ओर पलायन कर रहे हैं. दिवाली के बाद से राजधानी के बस स्टैंड में रोज विभिन्न जिलों से पहुंचे सैंकड़ों मजदूरों को रोजगार की तलाश में परदेस जाते देखा जा सकता है. काम की तलाश में मजदूर एक बार फिर अपना घर छोड़ने को मजबूर हो गए हैं.
काम न मिलने की वजह से
प्रदेश की भूपेश सरकार बड़े-बड़े दावे करने से नहीं चूकती है. सरकार मनरेगा के तहत सबसे अधिक रोजगार, किसानों की खुशहाली के लिए नई-नई योजनाएं, रोजगार के नए-नए अवसर की बात कहती है. लेकिन प्रदेश के विभिन्न जिलों से मजदूरों का पलायन दोबारा शुरू हो गया है. ऐसे में सरकार के दावों पर सवाल खड़े हो रहे हैं. ETV भारत ने राजधानी से अन्य प्रदेशों की पलायन कर रहे मजदूरों से जानकारी ली है. इस दौरान मजदूरों ने अपने पलायन के मुख्य कारण बताए हैं. साथ ही ETV भारत ने कैबिनेट मंत्रियों से भी इस पर सवाल किए लेकिन मंत्री सवालों के सामने कोई ठोस जवाब नहीं रख सके. इस पर राजनीति भी शुरू हो गई है. पूर्व CM रमन सिंह ने प्रदेश सरकार पर निशाना साधा है.
पढ़ें:SPECIAL: कब अनलॉक होंगे स्कूल ? पैरेंट्स के बीच कोरोना का खौफ, नहीं भेजना चाहते बच्चों को स्कूल
मार्च में पैदल वापस आए थे, अब लौट रहे
ETV भारत ने छत्तीसगढ़ से पलायन के लिए राजधानी पहुंचे लोगों से बात की, तो उन्होंने बताया कि मार्च में लॉकडाउन के बाद लौटे थे. एक मजदूर ने बताया कि लॉकडाउन में वह पैदल घर लौटा था. लेकिन रोजगार न होने के कारण मजबूरी में वापस परदेस कमाने जा रहा है. उसने कहा कि कोरोना से अब डर नहीं लग रहा है. उसके गांव के करीब 100 लोग बाहर रोजगार की तलाश में जा चुके हैं. ऐसे में वह घर पर रहकर रोजगार का इंतजार नहीं कर सकता है.
कहां गए सरकार के दावे ?
बता दें कोरोना संक्रमण के शुरूआती दिनों में जब मजदूर छत्तीसगढ़ की ओर लौट रहे थे. तो सरकार ने उनका स्वागत करते हुए कहा था कि उन्हें उनके घर पर काम दिया जाएगा. कौशल के आधार पर काम उपलब्ध काराए जाने की बात कही गई थी. जुलाई महीने में भी सरकार ने रोजगार कैंप लगाने की बात कही थी. लेकिन मजदूरों को इसका फायदा मिलता नहीं दिख रहा है.
पढ़ें:'CM भूपेश को लव जिहाद की परिभाषा नहीं मालूम', 'गुपकार और कांग्रेस में है समझौता': रमन सिंह
खेत के काम में मजदूरी कम
छत्तीसगढ़ में ऐसा माना जाता है कि खरीफ सीजन की फसल कटाई के बाद बड़े पैमाने पर मजदूर पलायन करते हैं. धान की कटाई होने के बाद मजदूरों के पास काम नहीं रह जाता. यही कारण है कि सालों से यहां के मजदूर काम न होने की वजह से पलायन करने को मजबूर हैं. लेकिन ETV भारत से बातचीत के दौरान एक मजदूर ने बताया कि इसके अलावा किसान के खेत में काम करने पर बहुत कम मजदूरी मिलती है. उसने बताया कि खेत की निंदाई में 70 रुपए और धान कटाई की 80 रुपए रोजी है. इतने कम पैसों में गुजारा नहीं चल रहा है. महंगाई के दौर में 70-80 रुपए में परिवार का पेट भी नहीं भरा जा सकता है.