नई दिल्ली : लॉकडाउन के कारण देश के अलग-अलग हिस्सों में फंसे मजदूरों का अपने घर वापसी का सिलसिला जारी है. साधन न मिलने पर मजदूर पैदल ही अपने गांव को रवाना हो रहे हैं. कोई ठेला से तो कोई साइकल से यात्रा करने को मजबूर है. लेकिन इतनी लंबी दूरी तय करने की वजह से कई मजदूरों ने अपनी जान गंवा दी. दुर्भाग्य ये है कि कइयों की जान दुर्घटना में चली गई. मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार अब तक 70 मजदूरों की जान जा चुकी है. कांग्रेस ने भी हालात पर चिंता जताई है.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने कहा कि लाखों प्रवासी मजदूर अपने घरों तक पहुंचने के लिए मीलों पैदल चल रहे हैं, भूखे मर रहे हैं. उनमें से कई मजदूर दुर्घटनाओं में मारे गए हैं. इस पर प्रधानमंत्री मोदी चुप क्यों है? अब उन्हें गुस्सा क्यों नहीं आ रहा है ?
आइए जानते हैं कब और कहां पर कितने मजदूरों की जान गई है...
- सबसे दर्दनाक घटना महाराष्ट्र के औरंगाबाद में घटी. फैक्ट्री बंद होने की वजह से अपने गृह राज्य को लौट रहे 16 मजदूरों को माल गाड़ी ने रौंद दिया. यह सभी मजदूर रात को पटरी पर सो रहे थे. सुबह उन्हें ट्रेन पकड़नी थी.
- 10 मई को मध्य प्रदेश से उत्तर प्रदेश जा रहे छह मजदूरों की ट्रक की चपेट में आने से मौत हो गई थी.
- मुंबई से उत्तर प्रदेश लौट रहे तीन मजदूरों की मौत. दो मजदूर पैदल जा रहे थे. ट्रक की चपेट में आने से उनकी मौत हो गई. तीसरे व्यक्ति की मौत बीमार होने की वजह से हुई थी.
- 28 मार्च को कर्नाटक के रायचूर में आठ मजदूरों की सड़क हादसे में मौतहो गई. लॉकडाउन की वजह से मजदूर लौट रहे थे.
- तेलंगाना से छत्तीसगढ़ जाने वाली एक लड़की की थकान के कारण मौतहो गई थी. उसने अपने घर से थोड़ी ही दूरी पर दम तोड़ा था.
- मीडिया रिपोर्ट के अनुसार लॉकडाउन के बाद पुलिस की हिंसा में कम से कम 12 लोग मारे जा चुके हैं. दवा और उचित उपचार न मिलने की वजह से 40 लोगों के मारे जाने की खबर है.
- हरियाणा के अंबाला कैंट में दो प्रवासी मजदूर सड़क पर जा रहे थे, तभी तड़के एक एसयूवी ने उन्हें टक्कर मार दी. एक मजदूर की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि दूसरा व्यक्ति गंभीर रूप से घायल हो गया, जिसका अस्पताल में इलाज चल रहा है.
- एक अन्य हादसे में रायबरेली में 25 साल के प्रवासी मजदूर को टक्कर मार दी गई. शिवकुमार दास बुलंदशहर से कुछ लोगों के साथ साइकिल चलाकर बिहार अपने गांव जा रहा था, तभी उसे टक्कर मार दी गई. रिपोर्ट्स के मुताबिक कार के ब्रेक फेल हो गए थे, इसके बाद ड्राइवर का कार पर नियंत्रण नहीं रहा.
- वहीं एक और हादसे में यूपी के फतेहपुर जिले में एक सड़क हादसे में एक मां-बेटी ने अपनी जान गंवा दी. यह दोनों महाराष्ट्र से आ रहे मजदूरों के समूह के साथ थीं. यह मजदूर उत्तर प्रदेश के जौनपुर जा रहे थे.
सरकार को लेनी चाहिए पूरी जिम्मेवारी : हन्नान मुल्लाह
इन सारी घटनाओं को लेकर ईटीवी भारत ने अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव हन्नान मोल्लाह से बातचीत की. उन्होंने कहा कि इन मजदूरों की मौत सरकार द्वारा पैदा की गई परिस्थितियों के कारण हुई है और इसलिए सरकार को इसकी पूरी जिम्मेदारी लेनी चाहिए.
हन्नान मोल्लाह ने कहा कि स्पेशल ट्रेन शुरू की गई, लेकिन उस ट्रेन तक पहुंचने की प्रक्रिया इतनी जटिल है कि एक मजदूर आदमी उस प्रक्रिया को पूरा नहीं कर पाएगा. उसके बाद सरकार 40 दिन से बेरोजगार बैठे मजदूरों से किराया भी वसूलेगी, हम लॉकडाउन के पहले चरण से ही यह मांग करते रहे हैं कि प्रवासी मजदूरों को घर पहुंचाने की निःशुल्क व्यवस्था सरकार को करनी चाहिए और उनको आर्थिक मदद भी दी जानी चाहिए, लेकिन सरकार कि नीतियां बिल्कुल भी गरीब और मजदूर हितैषी नहीं है.
उन्होंने कहा कि कहना है कि लॉकडाउन के दौरान जिन मजदूरों की भी मौत हुई है, उनके परिवारों को कम से कम पांच लाख रुपये की आर्थिक मदद सरकार के तरफ से मिलनी चाहिए.
सीपीआईएम के महासचिव सीताराम येचुरी ने अपने सुझाव समय-समय पर प्रेषित किए हैं, जिसमें मजदूरों को डीबीटी के माध्यम से उनके खाते में पैसे पहुंचाने की बात भी कही गई थी.
जटिल है ट्रेन के बुकिंग की प्रक्रिया
आपको बता दें कि सरकार ने स्पेशल ट्रेन चला कर मजदूरों को उनके गृह राज्य पहुंचाने की शुरुआत की है, लेकिन इसके बावजूद मजदूर सड़क मार्ग का रुख कर रहे हैं. जानकार बताते हैं कि उनके लिए ट्रेन बुकिंग की जटिल प्रक्रिया से पार पाना और टिकट का किराया भर पाना संभव नहीं है. मजदूरों की संख्या लाखों में है और ऐसे में लंबा इंतजार करने का धैर्य भी मजदूर खो चुके हैं.
ज्यादातर राज्यों ने सीमित संख्या और आवश्यक दिशा निर्देशों के साथ धीरे -धीरे उद्योग शुरू करने की अनुमति भी दे दी है और ऐसे में मजदूरों को वापस काम पर जाने का मौका भी मिल सकता है, लेकिन इसके बावजूद मजदूर अब अपने घर जाना चाहते है.
दिल्ली के अलग-अलग औद्योगिक क्षेत्रों में मजदूरों के भोजन और राशन की व्यवस्था करने वाले कुछ स्वयंसेवकों का कहना है कि कोरोना महामारी ने इन मजदूरों को तोड़ कर रख दिया है. मजदूरों के भीतर असुरक्षा की भावना पैदा हो गई है और वह डरे हुए हैं. ऐसे में उनके गांव से भी परिवार वाले घर बुला रहे हैं और वह खुद भी अब अपने घर ही वापस जाना चाहते हैं. लॉकडाउन में हुई दुर्दशा के कारण अब उनमें और धैर्य नहीं रहा और वह किसी भी साधन से केवल अपने घर पहुंचना चाहते हैं. यही कारण है कि कुछ साइकिल तो कुछ ट्रकों में छुप कर जाने का प्रयास करते हैं और कितने मजदूर तो पैदल ही निकल पड़े.
तीसरे चरण का लॉकडाउन 17 मई को खत्म होना है, लेकिन कोरोना मरीजों की बढ़ती संख्या को देखते हुए कुछ राहत के बावजूद भी लॉकडाउन बढ़ाए जाने की संभावना है. ऐसे में प्रवासी मजदूरों को अब आगे काम की उम्मीद नहीं बल्कि केवल अपने घर पहुंचने की चाह है.