हैदराबाद : कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी को रोकने के प्रयासों के तहत सामाजिक दूरी बरकरार रखने के लिए लागू लॉकडाउन से लोगों की दैनिक दिनचर्या पर गहरा असर पड़ा है. यूनेस्को के अनुसार 8 अप्रैल, 2020 तक, 188 देशों में स्कूलों को राष्ट्रव्यापी निलंबित कर दिया गया है. दुनियाभर में 90% से अधिक नामांकित शिक्षार्थी (1·5 मिलियन युवा) शिक्षा से दूर हैं. यूनेस्को के महानिदेशक- जनरल ऑड्रे अजोले ने चेतावनी दी वैश्विक स्तर पर वर्तमान शैक्षिक व्यवधान की गति अद्वितीय है.
खास तौर पर किशोरों और मानसिक स्वास्थ्य की जरूरतों वाले बच्चों के लिए, इस तरह के बंद का मतलब उन संसाधनों तक पहुंच की कमी है, जो आमतौर पर स्कूलों में होते हैं. मानसिक स्वास्थ्य चैरिटी यंगमाइंड्स के एक सर्वेक्षण में, जिसमें ब्रिटेन में मानसिक बीमारी के इतिहास के साथ 25 वर्ष तक के 2111 प्रतिभागियों को शामिल किया गया था, 83% ने कहा कि महामारी ने उनकी स्थिति बदतर बना दी है. वहीं 26% ने कहा कि वे मानसिक स्वास्थ्य सहायता का उपयोग करने में असमर्थ हैं क्योंकि सहकर्मी सहायता समूह और आमने-सामने की सेवाओं को रद कर दिया गया है. फोन से या ऑनलाइन समर्थन कुछ युवाओं के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है.
युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के साथ तालमेल बनाने लिए स्कूल दिनचर्या से काफी मदद मिलती है. जब स्कूल बंद हो जाते हैं, तो वे जीवन में एक सहारा खो देते हैं और उनके लक्षण फिर से उभर सकते हैं. एक पंजीकृत नैदानिक मनोवैज्ञानिक, जानोनिया चियु ने कहा, 'इस महामारी के पहले भी स्कूल जाना कुछ किशोरों (अवसादग्रस्त) के लिए चुनौतीपूर्ण था. लेकिन उनके पास एक दिनचर्या थी. लेकिन बहुत से देशों में गत तीन फरवरी से स्कूल बंद हैं.
वहीं ऑटिज्म स्पेक्ट्रम विकार वाले बच्चे जोखिम में हैं, जिन्हें विशेष शिक्षा की जरूरत है. मनोवैज्ञानिक ची हंग ने कहा कि जब उनकी दिनचर्या गड़बड़ होती है तो ये बच्चे चिड़चिड़े और परेशान हो सकते हैं.