नई दिल्ली : संसद का बजट सत्र शुरू हुआ तो उम्मीद जताई जा रही थी कि बजट के बाद कई विषयों पर चर्चा होगी. लेकिन सत्र का दूसरा चरण शुरू होते ही दिल्ली में हिंसा और उसके पीछे के कारणों पर विपक्षी पार्टियों ने इस कदर हंगामा किया पिछले चार दिनों से संसद की कार्यवाही लगभग ठप पड़ी है.
सीएए और एनआरसी से संबंधित चर्चाओं और हंगामे के बीच कहीं न कहीं कुछ मूल विषय पीछे छूट रहे हैं. इन्हीं विषयों में पर्यावरण और जल संसाधन भी महत्वपूर्ण मुद्दे हैं, लेकिन इन मुद्दों पर न तो विपक्षी पार्टियां और न ही सरकार ही किसी भी तरह की चर्चा करती हुई दिख रही है.
ऐसे ही कई विषयों पर चर्चा करने के लिए गुरुवार को दिल्ली के जंतर-मंतर पर विभिन्न सामाजिक संगठनों ने एक मंच से चर्चा शुरू की और इसे जन संसद का नाम दिया. इस जन संसद में महाराष्ट्र से सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर भी पहुंची थीं.
मेधा ने विशेष रूप से पर्यावरण और जल के प्राकृतिक स्रोतों पर अपनी बात रखी और मोदी सरकार की कार्यप्रणाली पर कई गंभीर सवाल खड़े किए. ईटीवी भारत ने मेधा पाटकर से विशेष बातचीत की. इस दौरान उन्होंने जल संसाधन और पर्यावरण के मुद्दों पर विस्तार से अपनी बात रखी.
मेधा पाटकर ने कहा कि यदि देश से घुसपैठियों को बाहर करना है तो फिर विदेशी कंपनी व विदेशी पूंजी को बाहर करना चाहिए. मेधा ने आरोप लगाया कि आज इसी कारण केंद्र में बैठी मोदी सरकार पूरा देश बेचने चली है.
उन्होंने कहा कि न केवल बीएसएनएल बल्कि किसानों की जमीन व आदिवासी छेत्रों का खनिज भी बेचा जा रहा है, जिसका कारण बढ़ती बेरोजगारी भी है.
मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में गठित जल शक्ति मंत्रालय की कार्यप्रणाली पर उनका क्या विचार है, इस पर पाटकर ने कहा कि जलशक्ति से भी अधिक महत्वपूर्ण जनशक्ति है. सरकार नई-नई तरह की स्कीम लेकर आ रही है, लेकिन उसमें यह नजर आ रहा है कि सरकार निजीकरण की खुली छूट दे रही है, जिससे पता यह चलता है कि सब प्रत्यक्ष में कानून कमजोर कर रहे हैं.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बुधवार को कहा था कि प्रदेश सरकार ने गंगा नदी को साफ करने में सफलता पा ली है और अब यमुना को भी दो साल में गंगा जैसा साफ किया जाएगा. इस पर मेधा ने कहा कि पिछले साल 15 दिसंबर से ही गंगा की अविरला और निर्मला सुनिश्चित करने की मांग को लेकर अनशन पर बैठी पद्मावती की तबीयत खराब होने के कारण उन्हें दिल्ली के एम्स अस्पताल में भर्ती कराया गया है.
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वहीं गंगा मामले के विशेषज्ञ वैज्ञानिक जीडी अग्रवाल भी गंगा को अविरल बनाने की मांग को लेकर लगातार 112 दिनों तक अनशन करते रहे और उनकी मौत हो गई. उन्होंने कहा कि ऐसे ही अब तक पांच साधुओं की मौत हो चुकी है. यदि सरकार उनकी बात सुन लेती तो आज इतनी मेहनत पर लाखों करोड़ों रुपए खर्च न करने पड़ते.
पाटकर ने कहा कि यह जो सरकार की सोच में खोखलापन है, इसमें विकास की अवधारणा की गहराई खोती जा रही है और सिर्फ लोगों की सहभागिता से ही हम उसको दोबारा वापस ला सकेंगे, जो निरंतरता और न्याय के आधार पर बनी रहेगी.