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153 साल पुरानी है मसूरी की 'मौण' परंपरा, मछली पकड़ने के लिए होता है मेले का आयोजन

मसूरी के मौण ऐतिहासिक मेले को देखने के लिए देश-विदेश के पर्यटक यहां बड़ी संख्या में पहुंचते हैं. पूरे भारत में मछली पकड़ने वाला ये अनोखा मेला है. इस मेले को मनाने का उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण करने के साथ ही नदी की सफाई भी है, ताकि मछलियों के प्रजजन में मदद मिल सके.

मसूरी में मौण मेले का आयोजन

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Published : Jun 28, 2019, 7:49 PM IST

मसूरी:यमुनोत्री नेशनल हाईवे पर मसूरी के नजदीक जौनपुर में उत्तराखंड की ऐतिहासिक सांस्कृतिक धरोहर मौण मेला का आयोजन किया गया. हजारों की तादाद में ग्रामीण अपने पारंपरिक वाद्य यंत्रों और औजारों के साथ अगलाड़ नदी में मछलियां पकड़ने के लिए उतरे थे. जौनपुर विकासखंड में ये मेला मानसून के शुरुआती दिनों से ही मनाया जा रहा है.

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अगलाड़ नदी तट पर आयोजित होने वाले ऐतिहासिक मौण मेले के लिए औषधीय पौधे टिमरू का पाउडर बनाने का प्रावधान है. इस बार टिमरू का पाउडर तैयार करने की जिम्मेदारी खिलवाड़ खत की उप पट्टी अठज्यूला के आठ गांवों- कांडी मल्ली व तल्ली, सड़ब मल्ली व तल्ली, बेल परोगी और मेलगढ़ को दी गई थी. इन गांवों में पिछले 10 दिनों से टिमरू का पाउडर बनाने की प्रक्रिया चल रही थी. मानसून की शुरुआत में अगलाड़ नदी में जून के अंतिम सप्ताह में मछली मारने का सामूहिक मौण मेला मनाया जाता है.

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बता दें कि टिमरू का पाउडर मछलियों को बेहोश कर देता है, जिसके कारण मछलियां आसानी से पकड़ में आती हैं. इस मेले में आसपास के गांवों के लोग बड़ी संख्या में आते हैं. इस ऐतिहासिक मेले को देखने के लिए देश-विदेश के पर्यटक यहां बड़ी संख्या में पहुंचते हैं. पूरे भारत में मछली पकड़ने वाला ये अनोखा मेला है. इस मेले को मनाने का उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण करने के साथ ही नदी की सफाई भी है, ताकि मछलियों के प्रजजन में मदद मिल सके.

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1866 में हुई ऐतिहासिक मेले का शुभारंभ

  • इस ऐतिहासिक मेले का शुभारंभ 1866 में तत्कालीन टिहरी नरेश ने किया था.
  • तब से जौनपुर में निरंतर इस मेले का आयोजन किया जा रहा है.
  • मेले में जौनपुर की संस्कृति की झलक भी देखने को मिलती है.
  • मेले की खास बात है- टिमरू के पौधे की छाल निकालकर इसे धूप में सुखाने के बाद घराट में पीसा जाता है.
  • नदी में टिमरू पाउडर डालने से पहले लोग ढोल-दमाउ की थाप पर जमकर नृत्य करते हैं.
  • मछली पकड़ने के लिए स्थानीय लोगों द्वारा पारंपरिक यंत्र का प्रयोग किया जाता है.
  • लोग शाम को गांव पहुंचकर इस त्योहार को धूमधाम से मनाते हैं.
  • इस मेले में करीब 114 से अधिक गांवों के लोग शिरकत करते हैं.

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