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Published : Aug 19, 2020, 10:46 PM IST

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कोलकाता : लोकायुक्त कार्यालय में कर्मचारियों की भारी कमी

पश्चिम बंगाल में लोकपाल कार्यालय में भारी कमी है. कोरोना के चलते लगे लॉकडाउन में कर्मचारियों की और कमी होती जा रही है. स्थिति ऐसी अवस्था में पहुंच गई है कि दैनिक कार्य की निगरानी करना भी मुश्किल हो रहा है.

लोकायुक्त कार्यालय में है कर्मारियों की भारी कमी
लोकायुक्त कार्यालय में है कर्मारियों की भारी कमी

कोलकाता : पश्चिम बंगाल में लोकायुक्त की नियुक्ति के बाद भी कर्मचारियों की भारी कमी है. कोरोना के चलते लगे लॉकडाउन में कर्मचारियों की कमी और बढ़ती जा रही है. स्थिति ऐसी अवस्था में पहुंच गई है कि दैनिक कार्य की निगरानी करना भी मुश्किल हो रहा है. लोकायुक्त की नियुक्ति को लगभग एक साल बीत चुका है, लेकिन अभी तक एक भी शिकायत का निपटारा नहीं किया गया है.

राज्य लोकायुक्त विभाग के अनुसार, विभाग में 25 कर्मचारी हैं. यहां पर दो शिफ्टों में काम होता है. दोनों शिफ्टों में औसतन सात लोग काम करते हैं. आपको बता दें कि राज्य में लोकायुक्त स्वतंत्र है, लेकिन विभाग के कर्मचारी राज्य सरकार के अधीन हैं. इसके परिणामस्वरूप कर्मचारियों को राज्य सरकार के निर्देशों का पालन करना पड़ता है.

लोकायुक्त विभाग के कर्मचारी कोरोना पर राज्य सरकार के निर्देशों के अनुसार काम करते हैं. इस वजह से यहां पर कर्मचारियों की संख्या लगातार घट रही है, लोकपाल एक राष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी निकाय है, जो सरकारी कर्मचारियों, उच्च रैंकिंग अधिकारियों, प्रशासकों, जनप्रतिनिधियों के भ्रष्टाचार की जांच करके संबंधित स्थानों पर विशिष्ट कार्रवाई करने की सिफारिश करता है. 1971 में भारत में पहला लोकायुक्त महाराष्ट्र में नियुक्त किया गया था. 2003 में पश्चिम बंगाल में लोकायुक्त विधेयक पारित किया गया था.

माकपा सरकार ने 2006 में न्यायमूर्ति समरेश बनर्जी को पहला लोकायुक्त नियुक्त किया था, लेकिन लगभग एक साल तक उन्हें लोकायुक्त कार्यालय को चलाने के लिए कार्यालय नहीं दिया गया. 2007 में न्यायमूर्ति समरेश बनर्जी को राज्य सरकार ने लोकायुक्त कार्यालय को चलाने के लिए कार्यालय दिया. जन जागरुकता की कमी के कारण कार्यालय में काम शुरू करने के बाद भी कोई शिकायत नहीं आई. इसके चलते न्यायमूर्ति ने जन जागरुकता फैलाने के लिए राज्य के कई जिलों का दौरा किया. न्यायमूर्ति के दौरे के परिणाम स्वरूप 20 शिकायत दर्ज कराई गईं और अगले वर्ष लगभग 80 शिकायत दर्ज की गईं. 2009 में, 200 से अधिक शिकायतें दर्ज की गईं. इस बीच, सत्ता पक्ष के एक विधायक पर भी आरोप लगाए गए. इस मामले की जांच पुलिस ने की. विधायक के ऊपर लगे आरोप सही साबित हुए. लोकायुक्त ने सरकार से उसके खिलाफ कार्रवाई करने की सिफारिश की.

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समरेश बनर्जी के कार्यकाल में कई मामलों का निपटारा किया गया, लेकिन 2009 में लोकायुक्त का काम समाप्त हो गया, क्योंकि केंद्र में लोकपाल की मांग के साथ अन्ना हजारे ने आंदोलन शुरू कर दिया था. अन्ना हजारे के आंदोलन के मद्देनजर, 2013 में राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम के लिए सहमत हुईं. 2018 में, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष देश के पहले लोकपाल बने.

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