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बचपन पर दलालों का साया, झारखंड का मनातू बना बाल मजदूरी का केंद्र

झारखंड काे पलामू जिले का मनातू इलाका बाल मजदूरों का बड़ा केंद्र बन गया है. मनातू के इलाके से लगातार बाल मजदूर देश के विभिन्न इलाकों से बरामद हो रहे हैं. लॉकडाउन के दौरान राजस्थान से मनातू के बंशी खुर्द और जगराहा गांव के 07 बाल श्रमिकों को वापस लाया गया है. इन बच्चों को गांव के ही सुहैल ने पैसे की लालच देकर चुड़ी की काम करवाने राजस्थान ले गया था.

डिजाइन फोटो
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Published : Sep 10, 2020, 3:23 PM IST

रांची :झारखंड के पलामू का मनातू इलाका 90 के दशक तक पूरे भारत मे बंधुआ मजदूरी के लिए चर्चित रहा. 90 के बाद यह इलाका नक्सल हिंसा के लिए चर्चित हुआ और अब यह इलाका बाल मजदूरों का बड़ा केंद्र बन गया है. मनातू के कई इलाकों से बड़ी संख्या में बच्चों को राजस्थान ले जाया गया है.

मनातू के इलाके से लगातार बाल मजदूर देश के विभिन्न इलाकों से बरामद हो रहे. लॉकडाउन के दौरान राजस्थान से मनातू के बंशी खुर्द और जगराहा गांव के सात बाल श्रमिको को वापस लाया गया है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

मनातू के इलाके में सक्रिय है बड़ा गिरोह

मनातू के इलाके में बड़ा दलाल गिरोह सक्रिय है, जो बच्चों को मजदूरी के लिए राजस्थान समेत देश के कई इलाको में लेकर जाता है. राजस्थान में बच्चो से चूड़ी फैक्ट्री में काम करवाने और ऊंटों के देखभाल में लगाया जाता है. पिछले एक वर्ष के अंदर मनातू के इलाके के दो दर्जन से अधिक बाल मजदूरो को मुक्त करवाया गया है. बाल मजदूरी के बड़ा केंद्र बंशी के उपमुखिया बताते हैं कि कितने बच्चे गए हैं किसी को नहीं पता, माता-पिता भी नहीं बताना चाहते लेकिन जो बातें निकल कर सामने आ रही है, बड़ी संख्या में बच्चों को दलाल ले गए हैं.
दो हजार रुपए महीने पर जाते हैं बच्चे

एक सितंबर को राजस्थान से सात बाल श्रमिक मुक्त होने के बाद पलामू पंहुचे हैं. सात में से तीन बच्चों के घर तक ईटीवी भारत की टीम पंहुची. तीनों की उम्र 08 से 13 वर्ष के बीच की है. तीनों बच्चों का घर एक दूसरे से करीब 50 गज की दूरी पर है.

तीनों ने ईटीवी भारत को बताया कि उन्हें मात्र दो हजार रुपये देने के लिए बोला गया था. गांव के सुहैल नाम के व्यक्ति के लालच देने के बाद वह परिवार को बिना बताए घर से निकल गए. वहां जाने के बाद उन्हें एक घर में रखा जाता था, लेकिन घर से बाहर निकलने की इजाजत नही थी. घर मे रहते थे और सुबह 08 से रात 11 बजे तक चूड़ी में नग लगाने का काम करते थे. बीच मे नींद लग जाने पर डांटा जाता था और कभी कभी पीटा भी जाता है. दोपहर के बाद सीधे रात में खाना मिलता था. खाना मांगने पर डांटा जाता था.

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गरीबी और लाचारी ग्रामीणों ने ग्रामीणों को किया मजबूर

मनातू का इलाका पिछड़ा हुआ है, जिन परिवारों के बच्चे बाल मजदूरी के लिए पलायन कर रहे हैं, वह बेहद गरीब और लाचार है. मुक्त हुए बच्चे की मां जंगल से लकड़ी चुन कर बेचती है, तो परिवार का गुजारा होता है. उसके पास राशन कार्ड भी नहीं है. दो अन्य बच्चे भाई हैं, उनके पिता दिव्यांग हैं. मां दुसरों के घर में काम करती है और लकड़ी चुन कर बेचती है. उन्हें तो पता भी नहीं चला कि उनके मासूम बच्चे उनकी तकलीफों को देख कर मजदूरी के किए बाहर चले गए.

दलाल के खिलाफ कार्रवाई और बच्चों को रिकवर करने का प्रयास है जारी

जिला बाल संरक्षण पदाधिकारी प्रकाश कुमार बताते हैं कि बहुत से बच्चे बाल मजदूरी के लिए बाहर चले गए हैं. मामले में चाइल्ड लाइन को पहल करने के लिए कहा गया है. बच्चों के जाने के बाद परिवार के सदस्य कहीं नहीं जाते और प्रशासनिक स्तर पर नहीं बताते हैं, जिस कारण बहुत सारी बातें पता नही चल पाती. बाल संरक्षण आयोग के धीरेंद्र किशोर का कहना कि बच्चो के रिकवर होने के बाद उनकी काउंसेलिंग की जाती है. मामले में कार्रवाई की जा रही है.

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