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यूं ही नहीं ध्यानचंद का मुरीद था हिटलर...

ध्यानचंद के जन्मदिन को देशभर में राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जा रहा है. मेजर ध्यानचंद की उम्र महज 16 साल थी, तब वो भारतीय सेना के साथ जुड़े. इसके अलावा उनकी जिंदगी के कई दिलचस्प किस्से हैं, जिसे जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर.

हॉकी का जादूगर

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Published : Aug 29, 2019, 3:17 PM IST

Updated : Sep 28, 2019, 5:58 PM IST

भोपाल: हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद का आज जन्मदिन है. ध्यानचंद के जन्मदिन को देशभर में राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जा रहा है. मेजर ध्यानचंद की उम्र महज 16 साल थी तब वो भारतीय सेना के साथ जुड़े.

ध्यानचंद को बचपन में कुश्ती पसंद थी लेकिन भारतीय सेना से जुड़ने के बाद उन्होंने हॉकी खेलना शुरू किया. ध्यानचंद को हॉकी खेलने का इस कदर जुनून था कि वो घंटों-घंटों हॉकी की प्रैक्टिस किया करते थे. ध्यानचंद के जन्म दिन पर खेल में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए सर्वोच्च खेल सम्मान राजीव गांधी खेल रत्न के अलावा अर्जुन और द्रोणाचार्य पुरस्कार खेल दिवस के मैके पर दिए जाते हैं.

हॉकी के मैदान में मेजर ध्यानचंद का प्रदर्शन लोगों को चौंकाने वाला लगता था. उनका प्रदर्शन लोगों को जादू लगता था. 1928 एम्सटर्डम ओलिंपिक गेम्स में उन्होंने भारत की ओर से सबसे ज्यादा 14 गोल किए थे. इस मौके पर एक अखबार ने लिखा था, 'यह हॉकी नहीं बल्कि जादू था और ध्यानचंद हॉकी के जादूगर हैं'.

मेजर ध्यानचंद की जयंती पर मनाया जाता है राष्ट्रीय खेल दिवस

1932 के ओलिंपिक फाइनल में भारत ने संयुक्त राज्य अमेरिका को 24-1 से हराया था. उस मैच में ध्यानचंद ने 8 और उनके भाई रूप सिंह ने 10 गोल किए थे. टूर्नामेंट में भारत की ओर से किए गए 35 गोलों में से 25 गोल इन दो भाइयों की जोड़ी की स्टिक से निकले थे.

ध्यानचंद की महानता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वह दूसरे खिलाड़ियों की अपेक्षा बहुत ज्यादा गोल करते थे. वो इतने ज्यादा गोल करते थे कि लोग अचरज करते थे. यही वजह है कि नीदरलैंड्स में ध्यानचंद की हॉकी स्टिक तोड़कर चेक किया गया था कि कहीं उनकी हॉकी में चुंबक तो नहीं लगा.

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ध्यानचंद ने 1928, 1932 और 1936 ओलिंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया. तीनों ही बार भारत ने गोल्ड मेडल जीता. एक मैच में ध्यानचंद गोल नहीं कर पा रहे थे. उन्होंने मैच रेफरी से गोल पोस्ट की चौड़ाई जांचने को कहा. जब ऐसा किया गया तो हर कोई हैरान रह गया. गोलपोस्ट की चौड़ाई मानकों के हिसाब से कम थी.

बर्लिन ओलिंपिक में ध्यानचंद के शानदार प्रदर्शन से प्रभावित होकर हिटलर ने उन्हें डिनर पर आमंत्रित किया. इस तानाशाह ने उन्हें जर्मन फौज में बड़े पद पर ज्वॉइन करने का न्योता भी दिया. हिटलर चाहता था कि ध्यानचंद जर्मनी के लिए हॉकी खेलें. लेकिन ध्यानचंद ने इस ऑफर को सिरे से ठुकरा दिया. उन्होंने कहा, 'हिंदुस्तान ही मेरा वतन है और मैं जिंदगीभर उसी के लिए हॉकी खेलूंगा.'

मेजर ध्यानचंद ने किस हद तक अपना लोहा मनवाया होगा इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वियना के स्पोर्ट्स क्लब में उनकी एक मूर्ति लगाई गई है जिसमें उनके चार हाथ और उनमें चार स्टिकें दिखाई गई हैं, मानों कि वो कोई देवता हों.

लगातार तीन ओलंपिक में भारत को हॉकी का स्वर्ण पदक दिलाने वाले ध्यानचंद की उपलब्धियों का सफर भारतीय खेल इतिहास को गौरवान्वित करता है. हर वर्ष ध्यानचंद की जयंती पर खेल जगत उनके लिए भारत रत्न की मांग उठाता है. मेजर ध्यानचंद को 1956 में देश के तीसरे दर्जे का सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मभूषण तो दिया गया, लेकिन सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न के लिए उनके नाम की बार-बार अनदेखी से खेल जगत हैरान है.

ध्यानचंद का 3 दिसंबर 1979 को दिल्ली में निधन हो गया. झांसी में उनका अंतिम संस्कार उसी मैदान पर किया गया, जहां वे हॉकी खेला करते थे, लेकिन आज भी हमारे दिलो दिमाग में जिंदा हैं.

Last Updated : Sep 28, 2019, 5:58 PM IST

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