तेलुगु भूमि के लिए राष्ट्रपिता के कई संस्मरण हैं. बापू का राज्य के कई क्षेत्रों से विशेष संबंध था. आंध्र की वाणिज्यिक राजधानी विजयवाड़ा के साथ उनका अविभाज्य संबंध था. उन्होंने कई बार विजयवाड़ा शहर का दौरा किया और आंदोलन की भावना को प्रज्वलित किया. गांधी ने छह बार शहर का दौरा किया था- 1919,1920,1921, 1929, 1937, 1946 में. जब उन्होंने पहली बार इस जगह का दौरा किया, तो उन्होंने लोगों से सत्याग्रह का हिस्सा बनने का आह्वान किया. लगभग 6 हजार स्वयंसेवक उनके साथ खड़े हो गए थे.
महात्मा गांधी ने पूरे देश में आंदोलन की भावना को बढ़ावा देने के लिए दौरा किया था. उसके हिस्से के रूप में बेजवाड़ा (विजयवाड़ा का पूर्व नाम) का छह बार दौरा किया. इन यात्राओं में, सबसे उल्लेखनीय उनकी तीसरी यात्रा थी. उस दौरे में उन्होंने लोगों को असहयोग आंदोलन का भागीदार बनने के लिए आह्वान किया था. उनके आह्वान पर कई लोगों ने ब्रिटिश सरकार द्वारा उपाधि, पद, उच्च स्तर की नौकरियां छोड़ दी. अय्यदेवरा कलेसरा राव ने 'देसोधाराका (राष्ट्रीय सुधारक)' उपाधि को छोड़ दिया. वह बाद में आंध्र प्रदेश विधानसभा के पहले स्पीकर बने.
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1921 में, महात्मा सात दिनों तक विजयवाड़ा में रहे. उन्होंने वहां अखिल भारतीय कार्यसमिति की बैठक आयोजित की. यह बन्दर रोड के वर्तमान बापू संग्रहालय में आयोजित किया गया था. यहीं पर पिंगली वेंकैया ने राष्ट्रीय ध्वज के रूप में विकसित किए गए तिरंगे झंडे को उन्हें सौंपा था, जिसे बापू ने मंजूरी दे दी थी. उस बैठक में सभी राष्ट्रीय नेताओं ने भाग लिया.