राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ना सिर्फ स्वतंत्रता सेनानी और सत्याग्रह आंदोलन के सूत्रधार थे, बल्कि स्वास्थ्य और फिटनेस के भी बड़े प्रवर्त्तक थे.
उनका मानना था कि प्रतिदिन व्यायाम, स्वच्छता, अच्छी आदतें और प्राकृतिक भोजन, बीमारी से दूर और स्वस्थ रहने के लिए महत्वपूर्ण कारक हैं. गांधी का दृढ़ मत था कि बीमारी की रोकथाम उपचार करने से ज्यादा महत्वपूर्ण है. बापू अक्सर कहते थे, 'प्रदूषित वातावरण में रहना, परजीवियों से संक्रमित होना रोगजनकों के साथ रहने के बराबर है.'
जातिवृत्ति के आधार पर जैविक विकास में सबसे विकसित प्रजाति होने के कारण इंसान अपने हाथ-पैर का उपयोग करते हैं. गांधी ने सवाल किया, 'ये अंग किस मकसद से मिले हैं?' अब हम जानते हैं कि फिट रहने के लिए समुचित शारीरिक व्यायाम महत्वपूर्ण है, बजाय इसके कि अपनी जीवनशैली सुस्त बनाए रखें.
हम देख सकते हैं कि आज-कल के स्मार्ट मोबाइल में एक इन-बिल्ट हेल्थ मॉनिटरिंग ऐप होती है. इसमें हर कदम पर हमारे दैनिक गतिविधियों का रिकॉर्ड होता है. जैसा कि होता आया है, आदमी की नियति उसकी इच्छा से अलग होती है. 18 साल की उम्र में महात्मा गांधी यूनाइटेड किंगडम में मेडिकल की पढ़ाई करना चाहते थे.
ये भी पढ़ें :उत्तराखंड : 1929 में बापू ने लगाया था ये ऐतिहासिक पीपल का पेड़, अस्तित्व के लिए कर रहा संघर्ष
हालांकि, गांधी को अपने परिवार के सदस्यों ने मेडिकल की पढ़ाई करने की अनुमति नहीं दी, क्योंकि इसमें मानव शरीर के रचना-विज्ञान समझने के लिए लाशों को हाथ से छूने और संभालने की जरूरत पड़ती है. इसके बावजूद मानव स्वास्थ्य के प्रति गांधीजी की रूचि जीवनभर बनी रही. उन्हें मानव शरीर रचना विज्ञान, शरीर विज्ञान, पोषण और स्वच्छता में रुचि थी.
शरीर के अंगों को जानने के लिए साबरमती आश्रम में, एक मॉडल के रूप में मानव कंकाल हुआ करता था. इस मॉडल की मदद से गांधीजी के साथ रहने वाले लोगों को मानव अंगों को समझने में मदद मिलती थी. गांधीजी ने दवाओं के रसायन विज्ञान और उनकी क्रिया तंत्र के बारे में विस्तार से अध्ययन किया था.
गांधी पूर्णतः शाकाहार में विश्वास करते थे और एक स्तर पर उन्होंने सात साल तक शाकाहार का अभ्यास किया था. इस अवधि में उन्होंने पशुओं से बनने वाले उत्पाद छोड़ दिए थे. इसमें दूध भी शामिल था. उन्होंने देखा कि दैनिक खपत के लिए भैंस के दूध को बकरी के दूध से बदला जा सकता है. गांधी ने भैंस के दूध से एलर्जी और गंभीर डायरिया होने के बाद बकरी के दूध का ही उपयोग किया.
सेवाग्राम में अपने साथ रहने वाले सहकर्मियों के स्वास्थ्य लाभ की अवधि में गांधी उनके चिकित्सा उपचार, भोजन प्रतिबंध, आराम और व्यायाम का करीबी से ध्यान रखते थे. साबरमती आश्रम में डॉ सुशीला नायर संपूर्ण प्रभारी डॉक्टर थीं, लेकिन गांधी आश्रम में प्रभावित सदस्यों की व्यक्तिगत देखभाल करते थे.
ये भी पढ़ें :गांधी ने मृत्यु को बताया था 'सच्चा मित्र'
गांधी ने एक बार कुष्ठ रोग से पीड़ित संस्कृत के एक विद्वान को यह कहते हुए स्वीकार किया था, कि वे स्वास्थ्य के आधार पर एक सहयोगी / कैदी की अनदेखी नहीं कर सकते. उन्होंने पीड़ित व्यक्ति के लिए एक अलग आवास का इंतजाम किया, और व्यक्तिगत रूप से रोगी की सेवा और देखभाल की.
गांधी ने स्वास्थ्य के विषय पर 1940-42 के दौरान एक स्पष्ट और विशद पुस्तक लिखी. इस दौरान गांधीजी यरवदा जेल में कैद थे. उन्होंने इसे 'स्वास्थ्य की कुंजी' का नाम दिया. इसमें गांधी ने मानव शरीर, एक स्वस्थ और बीमार मनुष्य की आहार समय-सारणी और व्यायाम का जिक्र किया है.
उन्होंने फिट रहने के लिए सबसे अच्छे अभ्यास के रूप में टहलने के महत्व को कई बार दोहराया है. गांधी ने गीली मिट्टी से नहाना और सूर्य की रोशनी में बैठना जैसे कुछ अभ्यासों को मानव स्वास्थ्य के लिए सहायक करार दिए हैं.
गांधी के मुताबिक पांच तत्व जिसमें हवा, धरती, आग, पानी और आकाश या अतंरिक्ष शामिल हैं, सभी मानव शरीर के अहम घटक हैं. गांधी ने अनोखा प्रस्ताव दिया कि व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए इन सभी तत्वों का एकीकृत होना जरूरी है.
ये भी पढ़ें :समग्र शिक्षा हासिल करने के लिए गांधीवादी रास्ता एक बेहतर विकल्प
गांधी की व्यापक पुस्तक 'स्वास्थ्य की कुंजी' में कुछ विषयों की चर्चा की गई है. उदाहरण के लिए, शुद्ध पेयजल, श्वास व्यायाम और प्राकृतिक उत्पादों से बने भोजन, जो एक जीव के लिए ईंधन या ऊर्जा में बदलते हैं.
गांधी के मुताबिक जल्दी सोना और जल्दी जागना सबसे बेहतरीन आदत है, जिसका अनुसरण किया जाना चाहिए. मानव शरीर की भीतरी संरचना में सटीक तालमेल बना रहे, इसलिए गांधी ने इसकी वकालत की. आधुनिक विज्ञान, जैविक घड़ी को सर्केडियन रिदम के रूप में इंगित करता है.
महात्मा गांधी ने मानसिक स्वास्थ्य को मानव स्वास्थ्य के एक महत्वपूर्ण और अभिन्न अंग के रूप में संबोधित किया है. गांधीजी ने अपनी किताब में, मानसिक स्वास्थ्य के लिए मौन व्रत, तंबाकू और शराब से परहेज और स्वास्थ्य के लिए ब्रह्मचर्य पालन जैसे अभ्यास और इनके प्रभाव की विस्तार से चर्चा की है.
गांधी ने ध्यान पर जोर देते हुए कहा कि दूसरों के दोषों के अलावा अपने आप को क्षमा करना अधिक सशक्त बनाता है. इससे एक व्यक्ति के शरीर और मस्तिष्क के बीच संतुलन बनता है. इसके बाद व्यक्ति का समग्र कल्याण होता है.
आधुनिक विज्ञान में कई नैदानिक परीक्षणों से यह साबित हुआ है कि पुरानी बीमारियों वाले रोगियों की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ी है. ऐसा तब हुआ जब ध्यान करने के बाद चिंता और अवसाद की घटनाओं में कमी हुई. एचआईवी वायरस से संक्रमित व्यक्तियों में सीडीफोर काउंट भी बढ़ा.
ये भी पढ़ें :महात्मा गांधी, कांग्रेस और आजादी
गांधीजी ने फलों, सब्जियों और नट्स को दैनिक आहार का हिस्सा बनाने की सलाह दी. उन्होंने भोजन में तेल, मसाले, स्वाद पर जोर देने वाली सामग्री और डीप फ्राइड चीजों से बचने की भी वकालत की. गांधी का तर्क है कि मसालेदार खाद्य पदार्थों से बना पाचन रस किसी भी व्यक्ति के स्वास्थ्य को खतरे में डाल देगा. उन्होंने पौष्टिक आहार को स्वास्थ्य की कुंजी करार दिया.
1918 में अपनी स्थापना के दौरान राष्ट्रीय पोषण संस्थान ने गांधीजी से स्वदेशी और भारत में पैदा होने वाले खाद्य पदार्थों के बारे में ढेरों सलाह ली.
भारत में खुले में शौच की प्रथा को गांधीजी ने घिनौना बताया. उन्होंने समाज को अपशिष्ट निपटान के इस अशोभनीय तरीके को दृढ़ता से रोकने की सलाह दी. वह खुद सार्वजनिक शौचालयों की सफाई करते थे.
खुले में शौच पर बापू ने तर्क दिया कि किसी सक्षम व्यक्ति द्वारा किसी अन्य व्यक्ति को यह काम देना अमानवीय है. उन्होंने स्वच्छता के लिए शौचालय के उपयोग की पश्चिमी विधि की खुले तौर पर प्रशंसा की और इसे अपनाया. सामुदायिक स्वच्छता के बारे में गांधीजी की चिंता आजादी के 70 से ज्यादा साल बीतने के बाद भी एक सपना ही है.
तंबाकू और शराब से संयम गांधी की व्यक्तिगत विशेषता थी. एक शराब न पीने वाले के रूप में, उन्होंने बताया कि दोनों बुराइयों से शारीरिक और मानसिक निर्भरता पैदा होती है, और इससे स्वास्थ्य खराब होता है.
अल्कोहल के प्रभाव के कारण आने वाली जड़ता व्यक्ति की नैतिकता बिगाड़ देती है. इसलिए समाज में बड़े पैमाने पर अपराध की दर में वृद्धि हुई है.
ये भी पढ़ें :जानें, क्या है अपने को फिट रखने का गांधीवादी तरीका
किसी व्यक्ति का सामान्य स्वास्थ्य हर समय फिट रहने पर निर्भर करता है. इस पर गांधीजी का मानना था कि व्यायाम, भोजन की आदतें और उपवास एक साथ बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. भारतीयों के साथ किए गए अन्याय का विरोध करने की रणनीति के रूप में, ब्रिटिश सरकार के खिलाफ महात्मा का उपवास विश्व प्रसिद्ध रहा है. लेकिन उपवास वास्तव में भारतीय संस्कृति और जीवन शैली का हिस्सा है.
गांधीजी ने स्वस्थ रहने पर सीमित भोजन, और सप्ताह में कम से कम एक बार उपवास करने के महत्व पर जोर दिया. आधुनिक विज्ञान के अनुसार, उपवास ऊतकों के 'विषहरण' करने का एक अच्छा तरीका है. इससे शरीर में जमा अत्यधिक मोटापा कम करने में भी मदद मिलती है.
इसलिए, गांधीवादी विचार में बीमारियों की रोकथाम के लिए स्वच्छ भोजन और परिवेश, शारीरिक व्यायाम और भावनात्मक संतुलन शामिल हैं. गांधीजी के पास वास्तव में व्यक्तिगत और सामुदायिक स्तर पर 'स्वास्थ्य की कुंजी' थी. हम आधुनिक भारत में महात्मा गांधी को स्वास्थ्य, पोषण और फिटनेस का सबसे शुरुआती और प्रमुख मसीहाओं में से एक का नाम दे सकते हैं.
लेखिका- डॉ सैलजा कल्लाकुरी (Sailaja Kallakuri)
(सैलजा आंध्र प्रदेश के काकीनाडा स्थित रंगाराया मेडिकल कॉलेज, जनरल सर्जरी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं.)
आलेख के विचार लेखिका के निजी हैं. इनसे ईटीवी भारत का कोई संबंध नहीं है.