वाराणसी : धर्म और आस्था की नगरी काशी अपने अंदर बहुत से रहस्य छिपाए हुए है. ऐसे में काशी में भगवान शंकर के विवाह उत्सव पर होने वाली पंचकोशी यात्रा के तृतीय धाम रामेश्वरम में बाटी और चोखा का भोग लगाने की प्रथा है. वाराणसी में हर वर्ष लगने वाला यह मेला लोटा-भंटा मेले के नाम से प्रसिद्ध है. इस मेले में लाखों की संख्या में भक्तों की भीड़ उमड़ती है.
भोग लगाने से मिलता है मनोवांछित फल
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, रामेश्वर मंदिर में एक बार एक दंपती ने पुत्र रत्न की प्राप्ति की कामना करते हुए पूजन अर्चन किया. भगवान शिव की कृपा से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. इस विशाल मेले में लोग वरुणा नदी में डुबकी लगाने के बाद रामेश्वर महादेव मंदिर में दर्शन पूजन कर बाटी-चोखा और दाल का प्रसाद बनाकर बाबा को चढ़ाते हैं.
अगहन छठ पर लगता है मेला
यह मेला प्रतिवर्ष अगहन छठ पर लगता है. इस संबंध में मंदिर के पुजारी अनु तिवारी ने बताया कि इस बार 6 दिसंबर रविवार को यह मेला लग रहा है. यहां लाखों लोग अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए रामेश्वर महादेव का पूजन अर्चन करते हैं और प्रसाद में बाटी-चोखा और दाल चढ़ाते हैं.
श्री राम ने की थी स्थापना
मान्यता के अनुसार मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने रावण का वध करने के बाद उन पर लगे ब्रह्म हत्या के दोष के प्राश्चित के लिए काशी आये. भगवान राम वरुणा नदी के तट पर एक मुट्ठी रेत से रामेश्वर शिव लिंग की स्थापना की और लोटे में भंटे का चोखा और बाटी का प्रसाद भोग लगाया और उसी प्रसाद को खाकर अपना व्रत तोड़ा. कोरोना के कारण व्यवस्था में कमी
वाराणसी के रामेश्वर मंदिर में लगने वाला या लोटा-भंटा मेला पूर्वांचल का सबसे बड़ा मेला है. यहां महाभारत काल में स्थापित पंच शिवाला शिव मंदिर है. इस बार कोरोना संक्रमण के कारण पंच शिवाला मंदिर में व्यवस्थाओं की कमी दिख रही है.