दिल्ली

delhi

ETV Bharat / bharat

अलग-अलग रूपों में होती है भगवान राम की आराधना, जानिए रोचक तथ्य

भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है. इस देश में भगवान राम के भक्त उनके अलग-अलग स्वरूपों की आराधना करते हैं. कहीं भगवान राम के बाल स्वरूप की पूजा होती है तो कहीं उन्हें पाहुन (दूल्हा) के रूप में पूजा जाता है. देखिए ये स्पेशल रिपोर्ट...

By

Published : Aug 3, 2020, 5:12 PM IST

Updated : Aug 3, 2020, 9:00 PM IST

lord-rama
lord-rama

लखनऊ: वर्षों से जिस घड़ी का इंतजार था, अब वह आ गई है. 5 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन करेंगे. कन्याकुमारी से कश्मीर तक भगवान राम पूजे जाते हैं. भगवान राम को लोग मर्यादा पुरुषोत्तम मानते हैं. श्री राम में आस्था रखने वाले भक्त उनके विभिन्न स्वरूपों की आराधना करते हैं.

अयोध्या में भगवान राम अपने बाल स्वरूप में विराजमान हैं, उनका यहीं जन्म हुआ था. आगे चलकर राम भारत के विभिन्न क्षेत्रों में गए. जहां जिस स्वरूप में लोगों ने देखा, आज उसी स्वरूप की मान्यता है. इस प्रकार से अवध में राम बाल रूप में हैं तो मिथिला में वही राम पाहुन हो जाते हैं.

देश में भगवान राम के अलग-अलग स्वरूपों की होती है पूजा.

कौशलपुरी में बाल स्वरूप में हैं भगवान राम
पुरानी कौशलपुरी का वह क्षेत्र, जिसमें अयोध्या है, वहां राम का बाल रूप सर्वाधिक प्रचलित है. वह रूप जिसका वर्णन तुलसीदास ने कुछ इस तरह किया है, 'भए प्रगट कृपाला, दीन दयाला, कौशल्या हितकारी' या 'ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैजनिया'. अयोध्या के अधिकांश मंदिरों में भगवान श्री राम अपने बाल रूप में नजर आते हैं. यही वजह है कि रामनवमी, राम जन्मोत्सव इस पूरे क्षेत्र का बड़ा पर्व है. यह हर गांव में मनाया जाता है. बच्चे के पैदा होने पर गाए जाने वाले सोहर से लेकर गारी तक में कहीं न कहीं राम दिख जाते हैं, क्योंकि राम मूलतः यहीं के थे. लिहाजा यहां की रामलीलाओं में अमूमन उनके पूरे जीवन प्रसंग का वर्णन आ जाता है, पर हर जगह की रामलीला में ऐसा नहीं है.

मिथिला में पाहुन के रूप में पूजे जाते हैं राम
राजनीति एवं संस्कृति के जानकार गिरीश चंद्र पांडेय कहते हैं कि मिथिला जहां रामचंद्र का सीता से विवाह हुआ था, वहां उनका दूल्हा ( पाहुन) स्वरूप अधिक स्वीकार्य है. मिथिला की विश्व प्रसिद्ध पेंटिंग में सीता-राम के विवाह प्रसंगों की भरमार है. यही नहीं, इस क्षेत्र में लड़कियों की शादी एक ही वर्ष में दो बार होती है. तर्क यह है कि राजा जनक की शर्त के अनुसार सीता तो राम की तभी हो गईं थीं, जब उन्होंने धनुष तोड़ा था. बावजूद इसके शादी की रस्म निभाने राजा दशरथ बारात लेकर अयोध्या से जनकपुर आए थे. यहां की रामलीला अक्सर सीता राम के विवाह के बाद खत्म हो जाती है.

कई रूपों में होती है भगवान राम की पूजा.

दंडकारण्य में वनवासी तो दक्षिण भारत में कोदंडकारी
गिरीश चंद्र पांडेय ने बताया कि जब भगवान राम को वनवास होता है तो वे दंडकारण्य चित्रकूट के आस-पास के क्षेत्र को अपना ठिकाना बनाते हैं. इस पूरे क्षेत्र में उनके वनवासी स्वरूप की अधिक मान्यता है. ऐसा स्वरूप, जिसमें वह पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ हैं. जटा जूट के साथ वनवासी स्वरूप में हैं. इस स्वरूप में सर्वाधिक प्रचलित वह स्वरूप है, जिसमें सहमी सी सीता दिख रही हैं. हिरण के रूप में आए मायावी मारीच के शिकार के लिए राम से कह रही हैं और पीछे लक्ष्मण पूरी सतर्कता के साथ खड़े हैं.

रावण द्वारा सीता के अपहरण के बाद उनकी खोज में राम जब दक्षिण भारत की ओर बढ़ते हैं, तब वह कोदंड धारी राम हो जाते हैं. वहां उनके इसी स्वरूप की आराधना भी की जाती है. उनके इस स्वरूप की अधिक मान्यता है.

ये भी पढ़ें:राजधानी का मनकामेश्वर मंदिर राम नाम के 5 हजार दीपकों से होगा रोशन

धर्म के जानकार आचार्य बागेश्वरी जी महाराज कहते हैं कि राम तो एक ही हैं. भक्तों को स्वतंत्रता है कि वे अपने आराध्य की पूजा किस स्वरूप में करना चाहते हैं, क्योंकि राम तो कण-कण में व्याप्त हैं.

Last Updated : Aug 3, 2020, 9:00 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details