नई दिल्ली : भारत-चीन सीमा के पास भारतीय वायुसेना उन्नत लैंडिंग ग्राउंड या छोटे बेस की संख्या बढ़ाने की तैयारी कर रही है. उन्नत लैंडिंग ग्राउंड सेना को रसद और आपूर्ति पहुंचाने के लिए बनाए जाते हैं. भारत-चीन गतिरोध या फिर जंग में उन्नत लैंडिंग ग्राउंड महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे. भारत-चीन सीमा के पास सर्दियों में अक्सर बर्फबारी होती है. बर्फबारी के बाद सड़क मार्ग अवरुद्ध हो जाता है. इसके कारण सर्दियों में सैनिकों के रसद और आपूर्ति बनाए रखने में उन्नत लैंडिंग ग्राउंड या छोटे बेस ही एकमात्र विकल्प बचते हैं.
उन्नत लैंडिंग ग्राउंड के लिए जमीन तलाश रही वायुसेना
लड़ाकू विमान भी उन्नत लैंडिंग ग्राउंड का उपयोग कर सकते हैं, मगर मुख्य रूप से इसका उपयोग परिवहन विमान और एयरलिफ्टर्स जैसे सी -17 ग्लोबमास्टर, सी -130 जे सुपर हरक्यूलिस या एएन -32 ही करते हैं. उन्नत लैंडिंग ग्राउंड से आउटपोस्ट के लिए अंतिम मील कनेक्टिविटी आमतौर पर हेलीकाप्टरों द्वारा प्रदान की जाती है. पिछले शुक्रवार को वायुसेना के सेंट्रल एयर कमांड के एयर ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ एयर मार्शल राजेश कुमार ने उत्तराखंड के सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत से मुलाकात की. मुलाकात में उन्होंने उन्नत लैंडिंग ग्राउंड स्थापित करने के लिए जमीन की मांग की.
साथ ही चीन की सीमा से लगे जिलों में एयर डिफेंस रडार सुविधाओं का जायजा लिया. एक सैन्य सूत्र ने ईटीवी भारत को बताया कि वायु रक्षा नेटवर्क को मजबूत करना भारतीय वायुसेना की एक सतत प्रक्रिया है और हमेशा बदलते सुरक्षा परिदृश्य के लिए आवश्यक उपाय किए जाते हैं. ये हमेशा एक बड़ी योजना का हिस्सा होते हैं और जरूरी नहीं कि मुलाकात को मौजूदा स्थिति की प्रतिक्रिया के रूप में ही लिया जाए.