हैदराबाद : अयोध्या में पांच अगस्त को राम मंदिर का भूमि पूजन होने जा रहा है. भारत सरकार द्वारा 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस की जांच पड़ताल के लिए लिब्रहान आयोग का गठन किया गया था. जिसका कार्यकाल लगभग 17 साल लंबा चला. इसके अध्यक्ष भारतीय सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश मनमोहन सिंह लिब्रहान को बनाया गया. केंद्र सरकार ने इस आयोग को अपनी रिपोर्ट पेश करने के लिए तीन महिनों का समय दिया गया था, लेकिन इसका कार्यकाल 48 बार बढ़ाया गया. जिसके साथ ही यह सबसे लंबे समय तक चलने वाला जांच आयोग बन गया. मार्च 2009 में जांच आयोग को तीन महीने का और अतिरिक्त समय दिया गया था.
लिब्रहान आयोग की नियुक्ति
- बाबरी मस्जिद के विध्वंस के 10 दिन बाद 16 दिसंबर 1992 को जांच के लिए न्यायमूर्ति मनमोहन सिंह लिब्रहान आयोग नियुक्त की गई थी.
- 6 दिसंबर 1992 को राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद परिसर में विवादित ढांचा गिराए जाने से संबंधित मामले की जांच के लिए एम.एस. लिब्रहान को जांच का कार्य सौंपा गया. तब वह पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के तत्कालीन न्यायाधीश थे.
- इस मामलें में जारी एक सूचना में तत्कालीन केंद्रीय गृह सचिव, माधव गोडबोले ने कहा था कि आयोग जल्द से जल्द तीन महिने के अंदर केंद्र सरकार के समक्ष अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा.
- आयोग को यह रिपोर्ट तीन महिने के अंदर देनी थी, लेकिन इसका कार्यकाल 48 बार बढ़ाया गया. इसके साथ ही लिब्रहान आयोग स्वतंत्र भारत के इतिहास में सबसे लंबे समय तक चलने वाला जांच आयोग बन गया. इसे आखरी बार एक्सटेंशन मार्च 2009 में तीन महिने के लिए दिया गया था. अपनी 900 से अधिर पेज की रिपोर्ट प्रस्तुत करने में आयोग को साढ़े 16 साल लग गए.
- 30 जून 2009 में 17 साल बाद लिब्रहान आयोग ने यह रिपोर्ट तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंपी. इस जांच में केंद्र सरकार ने आयोग पर आठ करोड़ रुपये खर्च कर इसे सबसे महंगा बना दिया. हांलाकि अधिकांश खर्च सहायक कर्मचारियों के वेतन और भत्तों पर खर्च किए गए थे.