हैदराबाद: देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस में गांधी या गैर-गांधी नेतृत्व को लेकर नेतृत्व संकट फिर से उभर आया है. अगर पार्टी की पंसद गांधी है, तो विकल्प सोनिया गांधी या राहुल गांधी ही होंगे, जिसमें समस्या है.
24 अगस्त को इस मुद्दे पर होने वाली बहस से एक दिन पहले 23 अगस्त को पार्टी के दिग्गजों ने अंतरिम अध्यक्ष सोनिया के नेतृत्व के मुद्दे पर आवाज उठाई, जिसने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि पार्टी में सब कुछ ठीक नहीं है.
2014 में पीएम नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भारतीय जनता पार्टी के आगमन के बाद से ही कांग्रेस में नेतृत्व की कमी महसूस की गई. वहीं दूसरी ओर भाजपा देश में अर्थव्यवस्था और सुरक्षा संबंधी चुनौतियों के बावजूद मजबूत हो रही है.
फिलहाल कांग्रेस दयनीय स्थिति में है और स्थिति को लेकर उठ रहे सवालों के जवाब ढूंढ रही है.
वैसे कांग्रेस में नेतृत्व संकट कोई नई बात नहीं है. पार्टी ने 2014 में भी इसका सामना किया था, जब तत्कालीन कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी ने 543 सीटों वाली लोकसभा में सबसे कम 44 सीटें हासिल की थी, जिसके बाद सोनिया ने इस्तीफे की पेशकश की थी.
पांच साल बाद, मई 2019 में पार्टी को फिर से इस संकट का सामना करना पड़ा, जब तत्कालीन कांग्रेस प्रमुख राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव परिणामों के लिए जिम्मेदारी ली और इस्तीफा दे दिया. इस बार पार्टी को केवल 52 सीटें ही मिली थीं.
लोकप्रिय मनोदशा पर जोर देते हुए, राहुल ने कांग्रेस का नेतृत्व करने के लिए एक गैर-गांधी को खोजने के लिए पार्टी से आग्रह किया, जिसके बाद काफी मंथन हुआ और अंतरिम प्रमुख के रूप में सोनिया को अध्यक्ष बना दिया गया.
सोनिया ने अतंरिम अध्यक्ष के रूप में 10 अगस्त को कार्यालय में एक वर्ष पूरा किया.
सीडब्ल्यूसी की महत्वपूर्ण बैठक से ठीक एक दिन पहले, सोनिया ने पार्टी के दिग्गज नेताओं को एक नया नेता चुनने के लिए कहा और एक बार फिर राहुल गांधी के वफादारों और उनसे जुड़े लोगों के बीच बहस शुरू कर दी है.
राहुल गांधी की अध्यक्षता में कांग्रेस ने 2018 में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की और उन्होंने पार्टी के रणनीतिकारों को 2019 के राष्ट्रीय चुनावों में खोई हुई जमीन हासिल करने की बहुत उम्मीद की थी, लेकिन परिणाम एक बुरा सपना था, जो उन्हें लंबे समय तक डराता रहेगा.
इस साल पार्टी ने मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ सरकार दोनों को मुख्य रूप से अभद्रता और दुर्भावना के कारण खो दिया. राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार की सत्ता बच गई.