नई दिल्ली : भारत में दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1898 (Cr.PC) के तहत फांसी दिए जाने का प्रावधान किया गया है. इस सजा में दोषियों को डेथ वारंट जारी होने के बाद फांसी के फंदे लटका कर मौत की सजा दी जाती है. यही प्रावधान दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 में भी अपनाए गए हैं.
हालांकि, भारत में दुर्लभतम मामलों में ही फांसी की सजा दी जाती है. एक नजर गत वर्षों में भारत में दी गई फांसी की सजाओं पर
- भारतीय उच्चतम न्यायालय के फैसले के तहत 31.01.1982 को गीता और संजय चोपड़ा अपहरण मामले में रंगा-बिल्ला को मौत की सजा दी गई थी.
- 14.08.2004 में पश्चिम बंगाल की अलीपुर सेंट्रल जेल में धनंजय चटर्जी को फांसी पर लटकाया गया था. धनंजय एक नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार कर हत्या मामले में दोषी था.
- 2008 में हुए मुंबई हमलों के इकलौते बचे आतंकी मोहम्मद अजमल आमिर कसाब को 21.11.2012 में पुणे की जेल में फांसी दी गई.
- 09.02.2013 में 2001 में हुए भारत की संसद पर हमले के दोषा अफजल गुरु को दिल्ली की तिहाड़ जेल में फांसी दी गई.
- मुंबई में 1993 के सीरियल बम ब्लास्ट के दोषी याकूब मेमन को 30.07.2015 में फांसी दी गई. याकूब को नागपुर जेल में फांसी पर लटकाया गया.
दिल्ली में 'डेथ पेनाल्टी' पर की गई एक रिपोर्ट के मुताबिक, आजादी के बाद से जुलाई 2015 तक देश में तकरीबन 1414 कैदियों को फांसी दी गई. 2015 के बाद से भारत में अब निर्भया के दोषियों को फांसी पर लटकाया जाने वाला है.
1950-2018 तक सुनाई गई फांसी की सजा का राज्यवार आंकड़ा :-
⦁ दिल्ली - 09
⦁ हरियाणा - 16
⦁ मध्य प्रदेश - 40
⦁ कर्नाटक - 25
⦁ महाराष्ट्र - 66
⦁ उत्तर प्रदेश - 66
⦁ पश्चिम बंगाल - 20
⦁ जम्मू-कश्मीर - 10