हरिद्वार : पृथ्वी पर अमृत-पान का विशेष अवसर यानी महाकुंभ भारत के चार स्थानों पर लगता है. इनमें भी विश्वप्रसिद्ध धर्मनगरी हरिद्वार का कुंभ महापर्व सभी कुंभों में खास माना जाता है. हरिद्वार कुंभ में साधु संतों के दुर्लभ दर्शन होते हैं और ऐसा लगता है, जैसे देवलोक से सभी देवी-देवता संतों के रूप में एक साथ पृथ्वी पर आ गए हों.
धर्म के जानकार बताते हैं कि कुंभ पर्व बृहस्पति ग्रह की ब्रह्मांड में गति के अनुसार निर्धारित होता है. जब बृहस्पति कुंभ राशि में आते हैं, तब ही कुंभ का योग बनता है. सामान्य तौर पर बृहस्पति कुंभ राशि में 12 वर्ष बाद आते हैं. तब हरिद्वार में कुंभ का योग बनता है और इसी कारण कहा जाता है कि हरिद्वार का कुंभ सबसे खास होता है. क्या है हरिद्वार कुंभ की मान्यता? क्यों है हरिद्वार का पुराणों में महत्व? देखिए हमारी खास रिपोर्ट में.
चार स्थानों पर लगता है कुंभ
उज्जैन, प्रयागराज, नासिक कुंभ से अलग हरिद्वार का कुंभ चार महीने तक मनाया जाता है, लेकिन इसका पुराणों में उल्लेख नहीं मिलता है. क्योंकि जब बृहस्पति कुंभ राशि में और सूर्य मेष राशि में आता हैं,तभी हरिद्वार का कुंभ मनाया जाता है. अप्रैल के महीने में ग्रह अपनी चाल बदलते हैं. एक मान्यता यह भी है सभी अखाड़ों के अपने-अपने ईष्ट होते हैं और जनवरी में इन अखाड़ों के ईष्ट देवताओं का पर्व पड़ता है.
इसी अनुसार अखाड़ों द्वारा गंगा स्नान किया जाता है. तभी से यह मान्यता चली आ रही है कि हरिद्वार का कुंभ चार महीने तक साधु संतों द्वारा मनाया जाता है. शाही स्नान अप्रैल के महीने में ही होता है और शाही स्नान के मौके पर सभी अखाड़ों के साधु संत शाही रूप में पूरे हरिद्वार का भ्रमण कर मां गंगा में डुबकी लगाते हैं.
हरिद्वार में अमृत स्नान का विशेष महत्व
जल्द ही हरिद्वार में अमृत स्नान करने का वह शुभ अवसर आने वाला है. मान्यता है कि इस अवसर के लिए देवी-देवता, साधु-संत और हिंदू धर्म को मानने वाले 12 साल इंतजार करते है. पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश को लेकर जब देवताओ और असुरों में छीनाझपटी होने लगी तो अमृत कलश से अमृत की कुछ बूंदें धरती पर चार स्थानों पर गिरी थी. जिनमें हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक और उज्जैन शामिल हैं. जिन स्थानों पर अमृत की बूंदे गिरी थीं, उन चारों स्थानों पर प्रत्येक 12 साल के बाद विशिष्ट ग्रह योग में कुंभ पर्व पड़ता है. इनमें हरिद्वार कुंभ को सबसे खास माना जाता है.
मान्यता है कि हरिद्वार ब्रह्मकंड में अमृत की बूंदे गिरी थी
धार्मिक मान्यता है कि हरिद्वार में जब अमृत की बूंदे गिरी थी, तब बृहस्पति कुंभ राशि में और सूर्य मेष राशि में विद्यमान थे. ज्योतिषाचार्य प्रतीक मिश्र पुरी का कहना है कि हरिद्वार कुंभ सबसे प्राचीन कुंभ है. क्योंकि जब कुंभ राशि में बृहस्पति और मेष राशि में सूर्य जब विद्यमान थे. तब हरिद्वार ब्रह्मकुंड में अमृत की बूंद गिरी. यह कुंभ योग वैशाखी 14 अप्रैल से 14 मई के मध्य बनेगा. इस वक्त अमृत सिद्धि योग होगा और प्रात: काल 6 बजे हर रोज स्नान करने से कुंभ का फल प्राप्त होगा.
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ज्योतिषाचार्य का कहना है कि बृहस्पति को एक राशि से दोबारा उस राशि में आने के लिए 12 वर्ष का समय लगता है और वह हर राशि में 1 वर्ष रहते हैं, लेकिन इस बार के बृहस्पति 11 वर्ष कुछ महीने में ही कुंभ राशि में प्रवेश कर रहे हैं और ऐसा कई कुंभ के बाद संयोग बनता है. ऐसा संयोग 1939 में बना था और उसी प्रकार हरिद्वार में 2022 में कुंभ होना था, जो अब 2021 में ही हो रहा है. हरिद्वार कुंभ इसी ग्रह योग में पड़ने के कारण ही सबसे खास माना जाता है.