गोरखपुर :शारदीय नवरात्र शनिवार से शुरू हो रहे हैं. इस नवरात्र में देवी दुर्गा की पूजा-अर्चना के साथ भक्तगण उपवास भी करते हैं, लेकिन इस उपवास का सही फल तभी मिलता है, जब इसे करने और निभाने का तौर-तरीका भी सही हो. यह कहना है गोरखपुर के विद्वान ज्योतिष मर्मज्ञ डॉक्टर धनेश मणि त्रिपाठी का. उन्होंने कहा कि अधिकतर व्रती नवरात्र का ही मतलब नहीं जानते हैं. वह मां जगदंबे की पूजा-अर्चना करना, फलाहार करते हुए व्रत रहना इसे ही व्रत का सही तरीका मानते हैं, लेकिन वास्तविकता इससे भिन्न है. इस पर हर व्रती को ध्यान देना चाहिए, तभी उचित फल प्राप्त होगा.
कलश के जल से होती है चर्म रोगों से मुक्ति
डॉक्टर धनेश मणि त्रिपाठी ने कहा कि इस व्रत को नवरात्र कहा गया है अर्थात रात्रि का व्रत. व्रत का मतलब हठ से है और उपवास का मतलब किसी भी प्रकार के खाद्य पदार्थ से खुद को मुक्त करना है, जो अक्सर लोग अज्ञानता वश नहीं कर पाते. व्रत किसी निश्चित फल की प्राप्ति के लिए मां दुर्गा से हठकर प्राप्त करने के लिए होता है और उपवास एक साधना है. उन्होंने कहा कि इस व्रत को प्रारंभ करने में सबसे पहले कलश की स्थापना का विशेष महत्व है, क्योंकि जो कलश स्थापित किया जाता है उसके जल में विभिन्न प्रकार के तत्व, पदार्थ मिलाए जाते हैं, जो नौ दिन में कलश के जल को इतना शुद्ध बना देते हैं कि अगर उससे स्नान किया जाए तो सभी प्रकार के चर्म रोगों से मुक्ति मिल जाएगी.
उन्होंने कहा कि इन सबके साथ जो सबसे जरूरी बात है, वह है उपवास करने का. नवरात्र में सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त के समय के बीच आप कुछ भी खा सकते हैं, लेकिन अगर आप उपवास रखते हैं तो रात्रि की बेला जब से प्रारंभ होती है और सूर्योदय होने तक आपको कुछ भी नहीं खाना है और इस बीच में आपको देवी दुर्गा की स्तुति, पाठ, आराधना करना है तभी आपको इस व्रत का सही फल मिलेगा.