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जानें, पाकिस्तानी घुसपैठ की किस तरह खुली थी पोल - kargil diwas

आज से ठीक 21 साल पहले मई-जुलाई 1999 के बीच पाकिस्तान ने नियंत्रण रेखा को पार कर कारगिल की उंचाइयों पर कब्जा करने का दुसाहस दिखाया था, जहां से भारतीय फौज पर निशाना लगाना आसान था. कारगिल युद्ध जीतने के लिए इन चोटियों पर वापस कब्जा करना जरूरी था. पाकिस्तान ने इसकी शुरुआत 1998 में ही कर दी थी. जानिए कैसे पाकिस्तान ने भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ की और किस तरह से इस घुसपैठ की पोल खुली.

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कारगिल युद्ध

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Published : Jul 23, 2020, 10:19 AM IST

Updated : Jul 23, 2020, 12:36 PM IST

हैदराबाद : पाकिस्तानी सैनिकों ने साल 1999 में कारगिल में नियंत्रण रेखा पार करके भारत की जमीन पर कब्जा करने की कोशिश की थी. हालांकि, पाकिस्तान शुरू से ही यह मानने तैयार नहीं था कि वह कारगिल पर कब्जा चाहता है. एक टेलीफोन बातचीत और कुछ दस्तावेजों ने पाकिस्तान के इस झूठ को सबके सामने ला दिया. कारगिल में घुसपैठ करने की योजना पाकिस्तान ने लाहौर समिट के पहले नवंबर 1998 में ही बना ली थी.

अगस्त-सितंबर 1998 में सियाचिन विवाद को लेकर भारत-पाकिस्तान की वार्ता समाप्त हुई थी. उसके बाद अक्टूबर 1998 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने मुशर्रफ को सेना प्रमुख नियुक्त किया था.

क्षेत्र और पोस्ट जिन पर पाकिस्तान ने किया कब्जा

कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानियों ने ऊंची-ऊंची चोटियों पर कब्जा कर लिया था. पाकिस्तान के सैनिकों ने जोजिला और लेह के बीच मुश्कोह, द्रास, कारगिल, बटालिक और तुर्तुक उप-क्षेत्रों में घुसपैठ की थी. सैनिकों ने नियंत्रण रेखा को पार किया और भारतीय क्षेत्र में 4-10 किलोमीटर तक घुस गए. पाक सैनिकों ने 130 पोस्ट पर कब्जा कर लिया था.

घुसपैठ की योजना

पाकिस्तान की घुसपैठ की योजना भारतीय सेना के लिए किसी आश्चर्य से कम नहीं थी. योजना के तहत पाकिस्तान ने सबसे पहले द्रास- मश्कोह घाटी और बटालिक-यलदोर-चोरबतला सेक्टर और तुर्तुक में घुसपैठ की. द्रास और मश्कोह घाटी एलओसी से सबसे करीब थी और पाकिस्तानी सैनिकों ने इस क्षेत्र की ऊंचाइयों का फायदा उठाते हुए यहां पर कब्जा कर लिया था.

पाकिस्तान ने कश्मीर घाटी, किश्तवाड़-भद्रवाह और हिमाचल प्रदेश के पड़ोसी क्षेत्रों में घुसपैठ करने के उद्देश्य से मस्कोह पोस्ट पर कब्जा किया था. वहीं, बटालिक-यलदोर सेक्टर में, पाकिस्तानी सेना ने सिंधु नदी के आस-पास की ऊंचाइयों पर कब्जा किया जिससे लेह से इस क्षेत्र से अलग हो जाए.

चोरबतला-तुर्तुक पोस्ट पर कब्जा इसलिए किया गया जिससे इस क्षेत्र पर पूर्ण कब्जा हो सके और यहां पर रह लोगों को उग्रवाद की ओर धकेला जा सके. इन महत्वपूर्ण पोस्ट पर कब्जा करने के बाद द्रास- मश्कोह-काकसर सेक्टरों में हुई घुसपैठ को अंतिम रुप दिया जाना था जिससे श्रीनगर और लेह को जोड़ने वाले राजमार्ग को बंद किया जा सके.

सैनिकों की तैनाती

सैनिकों की न्यूनतम संख्या सुनिश्चित करने प्रारंभिक घुसपैठ बल कमान उत्तरी क्षेत्र एफसीएनए के सैनिकों ने की थी. नॉर्दन लाईट इन्फेंट्री बटालियन के सैनिकों के शहीद होने के बाद अन्य बटालियन के सैनिकों को घुसपैठ क्षेत्र में तैनात किया गया.

तोप का निर्माण एक सस्ता और आसान काम है, इसलिए पाकिस्तान के पास नियंत्रण रेखा पार कर भारतीय सैनिकों पर हमला करने तोप और हथियार बनाने का बहुत समय था. साथ ही समय-समय पर हथियार उपलब्ध करवाने का भी वक्त था. इसी के साथ रेडियो और लाइन कम्यूनिकेशन का उपयोग भी किया गया.

हालंकि, जब भी पाकिस्तानी सैनिक इन माध्यमों के जरिए बात करते थे तो, भारतीय सैनिक उनकी बातों को इंटरसेप्ट कर लेते थे लेकिन अलग-अलग बोलियों के चलते पाकिस्तान सैनिकों की बातचीत समझ नहीं पाते थे.

घुसपैठ में शामिल बटालियन

द्रास-मश्कोह सेक्टरों में घुसपैठ के लिए पांच एनएलआई बटालियनों को नियुक्त किया गया था और पाकिस्तान की तरफ की नियंत्रण रेखा से एक सड़क खोले जाने के बाद एक फ्रंटियर फोर्स बटालियन को तैनात किया गया था. इस घुसपैठ को जिहादी रुप देने के लिए, इन बटालियनों को पर्याप्त रूप से संवर्धित किया गया था और विभिन्न तंजीमों से उग्रवादियों के साथ समूहबद्ध किया गया था. साथ ही आम लोगों जैसे कुलियों के रूप में तैनात किया गया था.

पढ़ें :-कारगिल युद्ध : टेलीफोन बातचीत से उजागर हुआ था पाकिस्तान का झूठ

इस युद्ध में बड़ी संख्या में मिसाइलों, रॉकेट, मोर्टार, मशीनगन और बमों का इस्तेमाल किया गया. अतिरिक्त सैन्य बल तैनात करने और समय पर हथियार उपलब्ध करवाने पातिस्तान सैनिक हेलीकॉप्टरों का उपयोग कर रहे थे. इस दौरान पाकिस्तानी इकाइयों द्वारा विशेष रूप से समर्थन किया गया और विशेष सेवा समूह भी इस ऑपरेशन के लिए पूरी तरह तैयार थे.

करीब दो महीने तक चले कारगिल युद्ध में भारतीय सेना ने 26 जुलाई 1999 को विजय हासिल की थी.

Last Updated : Jul 23, 2020, 12:36 PM IST

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