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इंदिरा गांधी का उत्तराखंड से था गहरा लगाव, अक्सर आती थीं देहरादून - उत्तराखंड से इंदिरा गांधी का लगाव

देश की पहली महिला पीएम इंदिरा गांधी का देहरादून से गहरा नाता रहा है. वह अक्सर देहरादून आया करती थीं. दिवंगत नेता की इस याद को देहरादून के बुक सेलर उपेंद्र राय ने संजो कर रखा है. पढे़ं पूरा विवरण....

इंदिरा गांधी का उत्तराखंड से था गहरा लगाव

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Published : Oct 31, 2019, 10:07 PM IST

देहरादून :देश की पहली महिला प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा गांधी की गुरुवार को 35वीं पुण्यतिथि मनायी गयी. 1984 में आज के ही दिन निजी सुरक्षाकर्मियों - बेअंत सिंह और सतवंत सिंह ने 28 राउंड फायर कर तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी की हत्या कर दी थी.

'आयरन लेडी' के नाम से लोकप्रिय इंदिरा जी की पुण्यतिथि पर ईटीवी भारत आपकी मुलाकात देहरादून के रहने वाले एक ऐसे बुक सेलर से कराने जा रहा है. जो इंदिरा गांधी से कई बार मिल चुके हैं.

हम बात कर रहे हैं राजपुर रोड स्थित नटराज बुक शॉप की, जिसके मालिक उपेंद्र अरोड़ा कई बार तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मिले थे. आज भी उनके पास इंदिरा गांधी की ओर से लिखे गये कई पत्र हैं. अरोड़ा के पास एक ऐसा पत्र है, जो इंदिरा जी ने अपनी मृत्यु से महज 10 दिन पहले ही उन्हें भेजा था.

उपेंद्र अरोड़ा ने इंदिरा गांधी से जुड़ी कई यादें साझा कीं. वह बताते हैं कि इंदिरा गांधी को किताबें पढ़ने का बहुत शौक था. यही कारण रहा कि एक दिन वह अचानक अपने दोनों पुत्रों - राजीव और संजय गांधी के साथ उनकी दुकान पर आ पहुंची, यह बात साल 1967-68 की है.

ईटीवी भारत से बातचीत करते उपेंद्र अरोड़ा.

उपेंद्र बताते हैं कि इंदिरा गांधी बेहद ही सरल स्वभाव की महिला थीं. उनके व्यवहार में एक अपनापन झलकता था. यह उनका अपनापन ही था कि जब कभी भी वह देहरादून आती, हमेशा उनकी दुकान से पर्यावरण और वन्य जीवों से जुड़ी किताबें खरीदा करती थीं. वह भी अक्सर उनके दिल्ली स्थित आवास पर कुछ किताबें भिजवाया करते थे. उसके बाद इंदिरा जी खुद पत्र भेजकर उनका धन्यवाद अदा करती थी. यह पत्र आज भी उन्होंने अपने पास एक याद के तौर पर संजोए रखे हैं.

बहरहाल, इंदिरा गांधी भले ही आज हमारे बीच न हो, लेकिन उनका व्यक्तिव हमेशा आने वाली पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत बनकर रहेगा.

..जब 1982 का गढ़वाल लोस उपचुनाव इंदिरा बनाम पहाड़ बन गया था
वहीं संसदीय चुनाव के इतिहास में गढ़वाल लोकसभा सीट 1982 में दुनिया की नजरों का केंद्र बन गई थी. इस चुनाव में सत्ता का दुरुपयोग भी देखा गया तो मतदाता की ताकत का एहसास भी गढ़वाल सीट ने दुनिया को कराया था.

वर्ष 1980 में लोकसभा चुनाव संपन्न हुए थे. केंद्रीय मंत्रिमंडल का गठन हुआ था, लेकिन इससे पहले ही पीएम इंदिरा गांधी व गढ़वाल सांसद हेमवती नंदन बहुगुणा के बीच खटपट शुरू हो गई थी. उस दौरान बहुगुणा ने इंदिरा गांधी से नाराजगी के चलते कांग्रेस पार्टी व संसद सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था.

बहुगुणा के इस्तीफे के बाद गढ़वाल संसदीय सीट खाली हो गई थी. इस सीट पर दोबारा से वर्ष 1982 में उपचुनाव हुआ, तब तत्कालीन केंद्र सरकार ने जीत के लिए गढ़वाल लोकसभा सीट पर अपनी ताकत झोंक दी थी.

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पहली बार संसदीय चुनाव के इतिहास में यह सीट दुनिया की नजरों में आई थी. उपचुनाव पूरी तरह इंदिरा बनाम 'पहाड़' हो गया था. बहुगुणा ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर कांग्रेस प्रत्याशी चंद्रमोहन सिंह नेगी को बड़े अंतरों से परास्त किया था.

उस उपचुनाव में हेमवती नंदन ने एक अपना यादगार भाषण दिया था. उन्होंने कहा था, 'इंदिरा मुझे जीतने नहीं देंगी और गढ़वाल की जनता मुझे हारने नहीं देगी.' उनके इस बयान ने पहाड़ की पूरी राजनीति की दिशा और दशा को ही बदल डाला था और उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी के खिलाफ बड़े अंतर से जीत हासिल की थी.

गढ़वाल संसदीय उपचुनाव में बहुगुणा के मुख्य चुनाव अभिकर्ता का दायित्व कोटद्वार निवासी अमीर अहमद कादरी ने निभाया था. अमीर अहमद की यादों को ताजा करते हुए उनके छोटे भाई अजीर अहमद कादरी ने बताया कि बड़े भाई जनता और पार्टी के लिए समर्पित थे और बहुगुणा के भाई के समान थे.

1982 के चुनाव में चुनाव की पूरी जिम्मेदारी उनके कंधों पर थी. पूरे चुनाव के खर्चे की जिम्मेदारी कादरी के कंधों पर रहती थी.

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बहुगुणा ने जो भी उन्हें कार्य सौंपा था, वो उन्होंने पूरी जिम्मेदारी और निष्ठा के साथ निभाया. उन्होंने तब से लेकर अब तक जो जनता की सेवा की उसके लिए जनता उनको आज भी याद करती है.

कई बार अन्य पार्टियों से उन्हें मंत्री पद तक का लोभ दिया गया, लेकिन उन्होंने इस प्रलोभन पर ठोकर मार दिया. उनके इस समर्पण भाव को देखते हुए भाजपा ने उन्हें अल्पसंख्यक आयोग उत्तराखंड का उपाध्यक्ष बनाया था.

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