नई दिल्ली: अक्टूबर माह से किसानों के लिये गन्ना वर्ष शुरू हो जाता है. जिसमें चीनी मिलें गन्ने की खरीद शुरू करती हैं. इस महीने से गन्ना वर्ष 2020-21 शुरू हुआ. किसानों में एक ओर जहां उत्साह है, वहीं दूसरी ओर निराशा भी क्योंकि अभी तक उत्तर प्रदेश के किसानों को पिछली फसल का ₹8500 करोड़ का भुगतान नहीं हुआ. प्रावधान तो यह है कि बकाया राशि के भुगतान में अगर 14 दिन से ज्यादा का समय हो गया हो तो 15% प्रति वर्ष के हिसाब से चीनी मिलों को ब्याज देना पड़ेगा लेकिन किसानों का कहना है कि जब मूल ही पूरा नहीं मिल पा रहा तो ब्याज की क्या उम्मीद करें.
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हर वर्ष समस्या झेलने को मजबूर हैं किसान
ईटीवी भारत ने इस मामले पर किसानों के गढ़ पश्चिमी उत्तर प्रदेश से संबंध रखने वाले किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष चौधरी पुष्पेंद्र सिंह से बात की. पुष्पेंद्र सिंह ने गन्ना किसानों के बकाए भुगतान की समस्या के लिये सीधे-सीधे राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहराया. उनका मानना है कि अगर सरकार सख्ती बरते तो किसानों का पैसा सही समय पर ब्याज समेत मिल सकता है, लेकिन हर वर्ष किसान यही समस्या झेलने को मजबूर हैं. पिछली फसल के पूरे पैसे मिलते नहीं और दूसरी फसल सामने आ जाती है.
योगी सरकार पर बोला हमला
उन्होंने बताया कि पिछले वर्ष किसानों से करीब ₹36000 करोड़ का गन्ना खरीदा गया. जिसमें से ₹8500 करोड़ अभी तक बकाया है और पिछला गन्ना वर्ष खत्म हो गया. पुष्पेंद्र सिंह ने योगी सरकार को घेरते हुए कहा कि उनका वादा था कि 14 दिनों के भीतर भुगतान कर दिया जाएगा, लेकिन ऐसा यह नहीं कर पाए. देरी की वजह से इस राशि पर ब्याज भी जोड़ दिया जाए तो यह राशि ₹2000 करोड़ और बढ़ सकती है.
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पिछले सालों का देख लीजिए हाल
अगर बात गन्ना वर्ष 2018-19 की करें तो उस वर्ष किसानों का लगभग ₹4500 करोड़ बकाया रहा था. जो वर्ष 2019-20 से बहुत कम है. किसान नेता इसके पीछे का कारण वर्ष 2018-19 में हुए कम उत्पाद और बिक्री को देते हैं. बतौर पुष्पेंद्र सिंह वर्ष 2018-19 में 33000 करोड़ के गन्ने की खरीद हुई लेकिन 2019-20 में पैदावार बढ़ गई और ₹36000 करोड़ की खरीद हुई. इसके कारण भी इस वर्ष का बकाया ज्यादा है, लेकिन वर्ष खत्म हो जाने के बावजूद भी इतना बकाया होना बड़ी समस्या है जो हर वर्ष खड़ी रहती है.
मात्र 10 रुपये प्रति क्विंटल ही बढ़ी SAP
किसान नेता पुष्पेंद्र सिंह गन्ने की कीमत में मामूली बढ़त को ऊंट के मुंह में जीरा मानते हैं. पुष्पेंद्र का कहना है कि जब से उत्तर प्रदेश में योगी सरकार आई है तब से तीन गन्ना वर्ष बीत गए हैं और अब चौथा शुरू हो चुका है, लेकिन गन्ने की कीमत में मात्र दस रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी इस वर्ष के लिये की गई है जो नाकाफी है. अगर सामान्य महंगाई दर के हिसाब भी सरकार कीमत बढ़ाती तो किसानों को कम से कम 400 रुपये प्रति क्विंटल मिलना चाहिए था.
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चुनाव में किसान सिखाएंगे सबक
बता दें कि वर्ष 2019-20 के लिये गन्ने की स्टेट एडवाइज़्ड प्राइस(SAP) 315-325 रुपये प्रति क्विंटल थी. पुष्पेंद्र सिंह ने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा है कि गन्ने की कीमत को और बढ़ाया जाए नहीं तो किसानों में 10 रुपये के मामूली बढ़त के कारण असंतोष है. उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में डेढ़ साल बाद होंगे लेकिन अगर किसानों की समस्या दूर नहीं हुई तो अगले चुनाव में किसान इस सरकार को सबक सिखाने का काम करेंगे. इस वर्ष भी पिछले वर्ष की तुलना में गन्ने की पैदावार ज्यादा होने के अनुमान हैं क्योंकि मौसम भी अनुकूल रहा है और किसानों ने रकबा भी बढ़ाया है, लेकिन भुगतान में देरी एक गलत परंपरा बन चुकी है जिसे खत्म करना जरूरी है.