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अपनी मातृभूमि लौटने को लालायित हैं कश्मीरी पंडित - kashmiri pandits want to go home

1990 के दशक में आतंकी हमलों के कारण घाटी से कश्मीरी पंडितों को अपना सब कुछ छोड़ कर जाना पड़ा था. अनुच्छेद-370 के रद्द होने से कश्मीरी पंडितों के मन में घर वापस लौटने की उम्मीद जगी है. पढ़ें पूरी खबर...

कश्मीरी पंडित (गेटी इमेजस सौजन्य से)

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Published : Aug 16, 2019, 1:49 AM IST

Updated : Sep 27, 2019, 3:40 AM IST

श्रीनगरः अपने ही राज्य में तीन दशकों से अधिक समय से शरणार्थी बनकर रह रहे कश्मीरी पंडितों में अभी भी अपनी मातृभूमि कश्मीर घाटी लौटने की लालसा कम नहीं हुई है.

1990 के दशक से कश्मीर की शीतकालीन राजधानी श्रीनगर में रहने वाली एक महिला शोभा कौल ने कहा, 'मैं अभी भी उस मिट्टी पर पैर रखने के लिए उत्सुक हूं, जिसे हमें लंबे समय तक छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था.'

1990 के दशक में आतंकी हमलों के कारण घाटी में तनाव अपनी चरम सीमा पर पहुंच गया. उस समय कश्मीरी पंडितों के खिलाफ बने माहौल के बाद वह अपना घर छोड़ने पर मजबूर हुई थी.

हालांकि उनका मानना है कि केंद्र सरकार द्वारा कश्मीर को विशेषाधिकार देने वाले अनुच्छेद-370 को रद्द करने से उनका पुनर्वास सुनिश्चित नहीं होगा.

कौल ने कहा, 'अनुच्छेद-370 का रद्द होना मुस्लिमों और कश्मीरी पंडितों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंधों को विकसित करने की गारंटी नहीं देगा. बल्कि यह एक विशेष समुदाय में क्रोध और अशांति पैदा कर रहा है.'

उन्होंने गैर-भेदभावपूर्ण नीतियों के माध्यम से उनकी मातृभूमि पर वापसी सुनिश्चित करने की बात कही.

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एक अन्य महिला ललिता पंडित ने कहा कि वह श्रीनगर के बाहरी इलाके में एक छोटे से गांव में पैदा हुई थी. भावुक ललिता ने बताया, 'मैं बफीर्ले पहाड़ों और बागों को याद करती हूं.'

जम्मू में हजारों कश्मीरी पंडित शरणार्थी हैं, जो राज्य सरकार द्वारा उन्हें प्रदान किए गए नए दो कमरों के घर में रह रहे हैं.

एक अन्य शरणार्थी महिला निर्मला भट्ट ने कहा, 'मरने से पहले, मैं अपने पहले घर में लौटना चाहती हूं जो अब एक मुस्लिम परिवार के अवैध कब्जे में है.'

उन्होंने कहा: 'प्रत्येक कश्मीरी पंडित को एक दिन स्वदेश लौटने की उम्मीद है. मैं जम्मू के लोगों के प्रति आभार व्यक्त करती हूं, जहां मैंने अपना अधिकांश जीवन गुजारा है.'

अपनी मातृभूमि लौटने की आस में 81 वर्षीय निर्मला ने कहा, 'हमने शुरू में शरणार्थी शिविरों में रहकर अपने बच्चों की परवरिश के लिए कठिन संघर्ष किया है. अब मेरे पास नाती-पोते हैं, यहां लाए गए और यहीं पैदा भी हुए हैं, वे भी हमारी मातृभूमि में लौटना चाहते हैं.'

जम्मू में पैदा होकर पले-बढ़े गए बच्चों को हालांकि पुरानी पीढ़ी की तुलना में घाटी में लौटने की अधिक उम्मीद है.

जम्मू में कश्मीरी पंडितों के लिए सबसे बड़े शरणार्थी आवास परिसर जगती में रहने वाली कॉलेज छात्रा निकिता धर ने बताया, 'मेरे माता-पिता और दादा-दादी अक्सर सेब और आलूबुखारे के बागों के बीच स्थित हमारे घर की पुरानी खुशहाल यादों को साझा करते हैं. हम बाद में नहीं बल्कि जल्द ही वापसी की उम्मीद कर रहे हैं.

निकिता जैसी युवा पीढ़ी का अपने पुश्तैनी घरों में लौटना एक सपना है, जो उन्होंने कभी देखा तक नहीं है.

निकिता ने कहा, 'यह हमारी आकांक्षा और संघर्ष भी है'.

एक अन्य कश्मीर पंडित 69 वर्षीय एस. एन. पंडिता ने कहा, '1990 के दशक की शुरुआत में दक्षिण कश्मीर के शोपियां से भागने से पहले, हमें उग्रवादियों द्वारा धमकी दी गई और प्रताड़ित किया गया. उन्होंने हमारे मंदिरों को नष्ट कर हमारे घरों और बगीचों पर अवैध कब्जा कर लिया.'

उन्होंने कहा कि अनुच्छेद-370 को रद्द करने से पहले तनाव कम हो रहा था. उन्होंने कहा, 'हम एक बार फिर से तनाव को बढ़ते हुए देख रहे हैं और यह नहीं जानते कि वहां स्थिति को सामान्य करने में कितना समय लगेगा.'

केंद्र सरकार ने विस्थापित कश्मीरी पंडितों के लिए सात नवंबर 2015 को प्रधानमंत्री विकास पैकेज की घोषणा की थी. इस पैकेज के तहत, केंद्र ने 1,080 करोड़ रुपये की लागत से कश्मीरी प्रवासियों के लिए तीन हजार अतिरिक्त राज्य सरकारी नौकरियों की मंजूरी दी थी. इसके अलावा इन कर्मचारियों के ठहरने के लिए 920 करोड़ रुपये की लागत से कश्मीर घाटी में छह हजार आवासों के निर्माण का फैसला लिया गया.

इस पैकेज का उद्देश्य विस्थापित समुदाय की आर्थिक रूप से मदद करना करने के साथ ही घाटी में उनकी वापसी सुनिश्चित करने को कदम बढ़ाना भी था.

Last Updated : Sep 27, 2019, 3:40 AM IST

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