मैसूर (कर्नाटक) : मैसूर का विश्व प्रसिद्ध दशहरा पर्व कोरोना वायरस संक्रमण के बीच मनाया जा रहा है, लेकिन कोरोना संक्रमण के चलते इसे सीमित मात्रा में आयोजित किया जा रहा है. दशहरे पर जंबो सावरी लोगों के लिए मुख्य आकर्षण होता है, पर इस बार जंबो सवारी पांच किलोमीटर के बजाय पांच सौ मीटर ही हुई. इतना हीं नहीं इस यात्रों को तीस मीनट के अंदर समाप्त कर दिया गया.
हर सवारी मैसूर महल से लेकर बन्नी मंतब तक निकाले जाते थे, इसकी दूरी तकरीबन पांच किलोमीटर है, लेकिन कोरोना संकट के कारण जुलूस को पांच सौ मीटर तक निकाला गया है. 2002-03 के बाद यह पहला मौका होगा जब जंबो सवारी की दूरी को कम किया गया है. कोरोना संक्रमण के चलते तीन सौ लोग ही इस दशहरे में शामिल हो सकते हैं.
प्रत्येक वर्ष यह कार्यक्रम 10 दिन चलता है, जिसमें कर्नाटक की सांस्कृतिक विरासत को लोक कला के जरिए शानदार तरीके से पेश किया जाता है, लेकिन इस बार संक्रमण को देखते हुए कार्यक्रम को सीमित किया गया है. मैसूर प्रशासन ने लोगों से घरों में रहने की अपील की है और पर्व का सीधा प्रसारण करने की व्यवस्था की है.
कोरोना पर जागरुक कर रही हैं लाइटें
दशहरा के लिए मैसूर को लाइटों से सजा दिया गया है, जिसका खर्च करीब तीन करोड़ रुपये आया है. करीब 50 किलोमीटर के शहर को रंग-बिरंगी लाइटों से सजा दिया गया है. कोरोना के प्रति लोगों को जागरुक करने के लिए शहर के कुछ हिस्सों को उसी थीम पर सजाया गया है. जागरूकता को ध्यान में रखते हुए एलईडी डिस्प्ले लगाए गए हैं, जिनपर फेस मास्क, सैनिटाइजर, सफाई और सामाजिक दूरी से जुड़े चित्र दिखाए जाएंगे.
कर्नाटक के मैसूर के दशहरे की चर्चा विदेश तक होती है. होनी भी चाहिए, क्योंकि ऐसा भव्य आयोजन शायद ही कहीं होता होगा. कल से दशहरे की शुरुआत हो रही है. आइए जानते हैं इस त्योहार से जुड़े कुछ खास तथ्य.
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मैसूर की विरासत दशहरा
मैसूर दशहरा यहां 410 सालों से मनाया जा रहा है. मैसूर के राजा ने नवरात्र महोत्सव को शरद नवरात्र (Sharannavaratri) के रूप में मनाया था. जहां राजा को जंबो सवारी के दौरान हौदा पर बैठाया गया था. मैसूर दशहरा महोत्सव में हौदा को ले जाने के लिए बिलिगिर रंगा, ऐरावत, हमसराज, चामुंडी प्रसाद और राजेंद्र प्रसिद्ध हाथी हैं. जंबो सावरी मैसूर महल से मैसूर के बन्नीमंतप तक जाती है. मैसूर के अंतिम राजा जयचामाराजेंद्र ओडेयार बिलीगिरी हाथी पर बैठकर जंबो सावरी में शामिल हुए थे. बाद में सरकार ने दशहरा को नड्डा हब्बा के रूप में मनाना शुरू किया था.
दशहरे के लिए हाथियों को प्रशिक्षण
इस बार का दशहरा पाबंदियों के साथ मनाया जाएगा. इस दौरान मुख्य आकर्षण हाथी होंगे, जिन्हें विशेष प्रशिक्षण दिया गया है. यह प्रथा 400 वर्ष से भी ज्यादा पुरानी है और अब हाथी इस त्योहार का अभिन्न हिस्सा हैं. इस वर्ष अभिमन्यु, विक्रम, विजय, गोपी और कावेरी नाम के हाथी दशहरा में भाग लेंगे.
मैसूर दशहरा हौदा और हाथियों के लिए बहुत प्रसिद्ध है. इसे हाथियों का त्योहार भी कहा जाता है. यहां का मुख्य आकर्षण हाथी होते है, जिन पर हौदा को ले जाया जाता है. नवरात्र के दसवें दिन मैसूर पैलेस में एक विशेष पूजा होती है, जिसमें पैलेस में जंबो सवारी (हाथी का जुलूस) आयोजित की जाती है.
हौदा लेकर जाते हैं हाथी
मैसूर राजाओं की बनाई गई परंपराओं के दौरान मैसूर दशहरा की शुरुआत हुई थी. मैसूर साम्राज्य की परंपरा के अनुसार नवरात्र महोत्सव नौ दिनों तक महल के अंदर मनाया जाता है और विजयादशमी यानी दसवें दिन जंबो सवारी का आयोजन किया जाता है. इस दौरान हाथी की शोभायात्रा निकलती है. इनका नेतृत्व करने वाला विशेष हाथी, जिसकी पीठ पर चामुंडेश्वरी देवी प्रतिमा सहित 750 किलो का स्वर्ण हौदा रखा जाता है.
आपको बता दें कि विजयदशमी के अवसर पर राजेंद्र हाथी ने एक बार, द्रोण हाथी ने 18 बार, बलराम हाथी ने 12 बार, अर्जुन हाथी ने आठ बार हौदा लादा है. इस साल जंबो सवारी में अभिमन्यु हाथी हौदा ले जा रहा है. जंबो सवारी में रंग-बिरंगे, अलंकृत कई हाथी सोने का हौदा, देवी की प्रतिमा लोगों का आकर्षण होती है. यह हौदा राजा के महल में रखा जाता है.