भोपाल : मध्यप्रदेश में सत्ता पाने की लड़ाई बढ़ती ही जा रही है. एक तरफ कांग्रेस 15 साल के वनवास के बाद सत्ता में लौटने के बाद कुर्सी गंवाना नहीं चाहती. वहीं भाजपा दोबारा सत्ता में आने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही है. अब ये राजनीतिक द्वंद सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है, जिस पर कोर्ट में सुनवाई हुई. आजाद भारत में मध्यप्रदेश ऐसा पहला राज्य नहीं है, जहां ऐसा राजनैतिक संकट पैदा हुआ हो. इससे पहले भी कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जिनका हल सुप्रीम कोर्ट ही निकाल पाया है और ये फैसले आगे चलकर नजीर साबित हुए. मध्यप्रदेश के सियासी संकट को कर्नाटक के एसआर बोम्मई मामले से जोड़कर देखा जा रहा है.
एसआर बोम्मई मामला, जानें विस्तार से...
कर्नाटक में पहली बार 1983 में गैर-कांग्रेसी सरकार बनी थी. रामकृष्ण हेगड़े मुख्यमंत्री चुने गए और एसआर बोम्मई उद्योग मंत्री. जनता पार्टी सरकार को तब वामपंथियों सहित क्षेत्रीय दलों का समर्थन प्राप्त था. इस सरकार ने राज्य में पहला और बड़ा काम पंचायती राज मजबूत करने का किया, जिससे सरकार की लोकप्रियता बढ़ती गई. हालांकि समय के साथ-साथ सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने लगे. हेगड़े के एक बेटे पर भी ऐसे आरोप लगे. आखिरकार मुख्यमंत्री रामकृष्ण हेगड़े ने 1988 में इस्तीफा दे दिया.
मुख्यमंत्री रामकृष्ण हेगड़े के इस्तीफे के बाद जनता पार्टी के ही बोम्मई राज्य के नए मुख्यमंत्री बने, लेकिन इसी समय पार्टी के एक विधायक ने राज्यपाल पी वैंकटसुबैया को सरकार से समर्थन वापसी का पत्र सौंप दिया. साथ ही उन्होंने 19 और विधायकों के समर्थन वापसी वाले पत्र राज्यपाल को दिए, लेकिन अगले दिन ही इनमें से सात विधायकों ने कहा कि राज्यपाल को दिए पत्रों में उनके फर्जी हस्ताक्षर हैं और वे सरकार का समर्थन करते हैं.
ऐसे में बोम्मई ने राज्यपाल से सदन में बहुमत साबित करने के लिए एक हफ्ते का समय मांगा, लेकिन राज्यपाल ने सरकार की मांग को ठुकरा दिया और राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर दी, जिसके बाद 21 अप्रैल, 1989 को संविधान के अनुच्छेद 356 के अंतर्गत बोम्मई सरकार को बर्खास्त कर कर्नाटक में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया.
इसके बाद मामला कर्नाटक हाईकोर्ट पहुंचा. कोर्ट ने राज्यपाल के निर्णय को सही ठहराया, लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई. मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया. एसआर बोम्मई बनाम भारत सरकार नाम से मशहूर हुए इस केस में 1994 में एक ऐसा फैसला आया, जो अनुच्छेद-356 के संदर्भ में मील का पत्थर बन गया. सुप्रीम कोर्ट ने माना कि बोम्मई सरकार की बर्खास्तगी गलत थी. बोम्मई सरकार को बहुमत साबित करने का मौका मिलना चाहिए था. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने के मामले में केंद्र सरकार की शक्तियों को सीमित कर दिया.