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भाई-बहन के पवित्र प्रेम व समर्पण का पर्व करमा हड़ी आज, अनोखी है कहानी

भाई-बहन के प्रेम का पर्व करमा हड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. पर इस बार कोरोना ने जरूर दखल डाला है. यह पर्व पूजा खासकर दक्षिणी छोटानागपुर में बड़ी ही धूमधाम से मनाई जाती है. इस पूजा में प्रकृति पूजक जनजाति समुदाय और सदान वर्ग के लोग भी बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं.

karma puja
प्रेम का प्रतीक है करमा

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Published : Aug 29, 2020, 8:42 AM IST

गुमला :भाई-बहन के अटूट बंधन और भाई की सलामती के लिए बहनें करमा की पूजा करती हैं. पूजा की तैयारी गणेश चतुर्दशी के दिन चार-पांच प्रकार के अनाज का जावा उठाकर शुरू होता है, जिसके बाद सातवें दिन भादो एकादशी के दिन करमा पूजा की जाती है, जिसमें बहनें दिन भर उपवास रहकर रात में करम पेड़ की डाली की पूजा करती हैं और अपने भाइयों की सलामती की दुआ मांगती हैं. यह पूजा खासकर दक्षिणी छोटानागपुर में बड़े ही धूमधाम से मनाई जाती है. इस पूजा में प्रकृति पूजक जनजाति समुदाय और सदान वर्ग के लोग भी बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं.

भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है करमा

भाई की रक्षा के लिए उपवास
करमा पूजा को लेकर युवाओं ने बताया कि 'यहां के आदिवासी और सदान वर्ग की एकता का प्रतीक है. इसकी पूजा दोनों ही समुदाय के लोग मिलकर बड़े ही धूमधाम से करते हैं. इस पूजा में बहनें दिनभर उपवास रहती हैं. इसके बाद रात में करम की डाली के पेड़ को जमीन में गाड़कर पहान-पुजार पूजा कराते हैं. उसके बाद रात भर खासकर युवा वर्ग के लोग खुशी से नाचते गाते हैं और एक दूसरे से खुशियां बटाते हैं, फिर सुबह करम की डाली को ले जाकर नदी में प्रवाहित कर देते हैं.'

करम की पूजा

करमा और धर्मा दो भाई
वहीं, बुजुर्गों का कहना है कि 'करमा पूजा के पीछे की मान्यताएं तो कई हैं जिसका विवरण करने से फेहरिस्त बहुत ही लंबी हो जाएगी.' उन्होंने कहा कि 'जब बारिश के दिनों में किसान खेतों में धान के बिचड़े लगा लेते हैं और खेत में चारों ओर हरियाली होती है, तब किसान खुशियां मनाते हैं. जिसमें यहां के आदिवासी और मूलवासी विशेष रूप से भाग लेते हैं. इसके साथ ही यह भी कहा जाता है सदियों वर्ष पूर्व करमा और धर्मा दो भाई थे उन्हीं से यह कहानी बनी है. जिसमें करमा और धर्मा की रक्षा के लिए उनकी बहन ने करमा की डाली की पूजा की थी. जिसके बाद से ही यह पूजा अनवरत जारी है.'

करमा डाल

ये है कहानी
माना जाता है कि करमा और धर्मा दो भाई थे. करमा का विवाह ऐसी स्त्री के साथ हुआ जो अधर्मी थी. वह हर किसी को परेशान करती थी. इससे दुखी होकर करमा घर से निकल गया. उसके घर छोड़ते ही सभी के भाग्य फूट गए. लोग दुखी रहने लगे. धर्मा से लोगों की परेशानी नहीं देखी गई और वह अपने भाई को खोजने निकल पड़ा.

खुशियां मनाते लोग

कई अनोखी घटनाएं घटी
धर्मा को प्यास लगी पर आस पास कही पानी नहीं था. दूर एक नदी दिखी वहां जाने पर देखा की उसमें पानी नहीं है. तभी नदी ने धर्मा से कहा जबसे कर्मा भाई यहां से गए हैं, तब से हमारा कर्म फुट गया है. यहां का पानी सुख गया है, अगर वे मिले तो उनसे कहा देना. कुछ दूर जाने पर एक आम का पेड़ मिला उसके सारे फल सड़े हुए थे, उसने भी धर्मा से कहा जब से करमा गए हैं तब से हमारे फल ऐसे ही बर्बाद हो जाते हैं, अगर वे मिले तो उनसे कह देना और उपाय पूछ के बताना. धर्मा वहां से आगे बढ़ गया आगे उसे एक वृद्ध व्यक्ति मिला, उन्होंने बताया कि जब से कर्मा यहां से गया है उनके सिर के बोझ तबतक नहीं उतरते जब तक 3-4 लोग मिलकर न उतारे, कर्मा से बताकर इसके निवारण के उपाय बताना.

करमा की आराधना

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दोनों भाई वापस घर चले गए
धर्मा वहां से भी आगे बढ़ गया आगे उसे एक महिला मिली उसने बताया कि कर्मा से पूछकर बताना की जब से वो गए हैं खाना बनाने के बाद बर्तन हाथ से चिपक जाते हैं क्यों, उपाय बताना. धर्मा चलते-चलते एक रेगिस्तान में जा पहुंचा. वहां उसने देखा कि करमा धूप और गर्मी से परेशान है. उसके शरीर पर फोड़े पड़े हैं. धरमा से उसकी हालत देखी नहीं गई और उसने करमा से आग्रह किया की वो घर वापस चले, तो करमा ने कहा कि 'वो उस घर कैसे जाए जहां उसकी पत्नी जमीन पर माड़ फेंक देती है.' तब धर्मा ने वचन दिया कि आज के बाद कोई भी महिला जमीन पर माड़ नहीं फेंकेगी. फिर दोनों भाई वापस घर की ओर चले.

पूजा करती बहनें

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ऐसे हल हुई समस्या
घर जाने के दौरान उसे सबसे पहले वह महिला मिली उससे करमा ने कहा कि 'तुमने किसी भूखे को खाना नहीं खिलाया था, इसी लिए तुम्हारे साथ ऐसा हुआ. आगे कभी ऐसा मत करना सब ठीक हो जाएगा.' आखिर में नदी मिला तो करमा ने कहा कि 'तुमने किसी प्यासे को साफ पानी नहीं दिया आगे कभी किसी को गंदा पानी मत पिलाना.' इस तरह उसने सबको उसका कर्म बताते हुए घर आया और पोखर में करम की डाल लगाकर पूजा की. उसके बाद से पूरे इलाके में खुशहाली लोट आई और सभी खुशी से रहने लगे. तब से करमा पर्व की मान्यता चली आ रही है.

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