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वक्त की मांग हैं उन्नत तकनीक के जरिए न्याय प्रणाली में सुधार - जॉर्ज फर्नांडीस

अत्याधुनिक तकनीक के आ जाने के साथ ही अपराध और अत्याचार भी निर्बाध रूप से जारी है, लेकिन हमारी न्यायपालिका उसी पुराने तरीके से चल रही है. इसी बीच टाटा ट्रस्ट ने सेंटर फॉर सोशल जस्टिस के साथ मिलकर इंडियन जस्टिस रिपोर्ट (2019) में खुलासा किया गया है कि कानून के शासन के सूचकांक पर 126 देशों की सूची में भारत का स्थान 68वां है. हिंसा में वृद्धि की कीमत भारत को अपनी जीडीपी से चुकानी पड़ी है. पढ़ें ईटीवी भारत की विशेष रिपोर्ट...

JUSTICE DENIED IN INDIA-
वक्त की मांग हैं उन्नत तकनीक के जरिए न्याय प्रणाली में सुधार

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Published : Aug 6, 2020, 10:04 PM IST

हैदराबाद : अत्याधुनिक तकनीक के आ जाने के साथ ही अपराध और अत्याचार भी निर्बाध रूप से जारी है, लेकिन हमारी न्यायपालिका उसी पुराने तरीके से चल रही है. इस देश में न्याय एक मृगमरीचिका बन गया है. तहलका ने वर्ष 2001 में एक स्टिंग ऑपरेशन किया था, जिसका नाम 'ऑपरेशन वेस्ट एंड' था. उसमें भारतीय सशस्त्र सेनाओं और तत्कालीन सत्तारूढ़ राजग के गुप्त रक्षा सौदे के स्याह पक्ष को उजागर किया गया था. इसी क्रम में टाटा ट्रस्ट ने सेंटर फॉर सोशल जस्टिस के साथ मिलकर इंडियन जस्टिस रिपोर्ट (2019) तैयार की है. इसमें खुलासा किया गया है कि कानून के शासन के सूचकांक पर 126 देशों की सूची में भारत का स्थान 68वां है. हिंसा में वृद्धि की कीमत भारत को अपनी जीडीपी से चुकानी पड़ी है.

हर केंद्रीय बजट में रक्षा क्षेत्र को सर्वोपरि घोषित करना प्रत्येक वित्तमंत्री के लिए रिवाज बन गया, लेकिन नियंत्रक एवं महालेखाकार (कैग) की रिपोर्ट में रक्षा क्षेत्र को बहुत कम आवंटन और व्याप्त भ्रष्टाचार की एक अलग तस्वीर पेश की गई है. समाचार पत्रिका तहलका ने वर्ष 2001 में लंदन की एक काल्पनिक हथियार निर्माण कंपनी बनाई, जिसे वेस्ट एंड इंटरनेशनल के नाम से जाना जाता है. खोजी पत्रकारों ने हाथ में लिए जाने वाले थर्मल कैमरे और सेना के इस्तेमाल आने वाले सैन्य उपकरणों को बेचने के बहाने कई रक्षा अधिकारियों से संपर्क किया. तहलका ने इस स्टिंग ऑपरेशन को करने पर 10 लाख 80 हजार रुपये खर्च किए. इनमें से ज्यादातर अफसरों और राजनेताओं को रिश्वत और कमीशन देने में खर्च हुए, लेकिन इस ऑपरेशन ने भारत के राजनेताओं और नौकरशाहों के लालच और नैतिक दिवालियापन को उजागर कर दिया.

पूर्व रक्षामंत्री मुलायम सिंह यादव ने निर्लज्जतापूर्वक कह दिया कि रक्षा सौदों में भ्रष्टाचार सामान्य बात है. तहलका के ऑपरेशन वेस्ट एंड ने वरिष्ठ अनुभाग अधिकारी को रिश्वत देने के साथ इस अभियान की शुरुआत की और उसके बाद भाजपा अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण और फिर तत्कालीन रक्षामंत्री जॉर्ज फर्नांडीस के पास गए. उस अभियान की सीडी 2001 के मार्च माह में जारी हुई, जिसकी वजह से राजनीतिक तूफान आ गया.

भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष लक्ष्मण का इस रक्षा सौदे के प्रस्ताव को आगे बढ़ाने के लिए एक लाख रुपये रिश्वत लेने का दृश्य जब सामने दिखा, तो पूरा देश सदमे में आ गया. समता पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष और कोषाध्यक्ष जया जेटली और आरके जैन वे अन्य लोग थे, जिन्होंने रिश्वत ली थी. अदालत ने भ्रष्टाचार के आरोपों में कई रक्षा अधिकारियों को दोषी करार दिया, जबकि राजनेताओं के खिलाफ कोई गंभीर आरोप नहीं लगाया गया. कई वर्ष की जांच के बाद सीबीआई की एक अदालत ने हाल में जया जेटली और दो अन्य को रक्षा सौदे से जुड़े मामले में दोषी करार दिया है. जया जेटली को हालांकि चार साल जेल की सजा हुई है, लेकिन उन्हें तत्काल जमानत दे दी गई. यह भारत में कानून के शासन की वास्तविक स्थिति को दर्शाता है. ठोस सबूत रहने के बावजूद सीबीआई ने अंतिम फैसला देने में इतना समय क्यों लगाया?

तहलका ऑपरेशन के बाद पत्रिका के रक्षा सौदों में भ्रष्टाचार के खुलासे की जांच के लिए न्यायाधीश के. वेंकटस्वामी के एक सदस्यीय आयोग का गठन हुआ. वेंकटस्वामी ने 20 महीने तक इस हाई प्रोफाइल मामले की जांच की और इस दौरान 181 बैठकें कीं. इसका नतीजा यह निकला कि राजनीतिक दबाव में उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. उन्होंने अथॉरिटी फॉर एडवांस रूलिंग्स के अध्यक्ष के अपने कार्यभार को लेकर मचे हो-हल्ला का हवाला देते हुए तहलका की कार्यवाही से खुद को अलग करने का फैसला लिया था. उसके बाद यूपीए सरकार ने फूकन आयोग का कार्यकाल बढ़ाने से इनकार कर दिया, जो तहलका टेप मामले की वर्ष 2003 की जुलाई से ही जांच कर रहा था. इससे कोई इनकार नहीं कर सकता कि यूपीए सरकार जॉर्ज फर्नाडीस को क्लीन चिट देने से एसएन फूकन से चिढ़ी हुई थी. सीबीआई ने भले ही राजनेताओं और रक्षा अधिकारियों के खिलाफ कुल नौ मामले दर्ज किए थे, लेकिन सीबीआई की विशेष अदालत को बंगारू लक्ष्मण को दोषी करार देने में चार साल लग गए. जया जेटली के मामले में अदालत को आठ साल लगे.

भारत में आम आदमी के लिए न्याय छलावा के अलावा कुछ नहीं है. वर्ष 1997 में सर्वोच्च न्यायालय ने सीबीआई की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए कई दिशा-निर्देश तय किए. कोर्ट ने इंग्लैंड की तर्ज पर अभियोजन निदेशक बनाकर एक निष्पक्ष एजेंसी की स्थापना करने और उस नियामक एजेंसी को सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) का संचालन सौंपने का आदेश दिया था, लेकिन उसके बाद बनी सरकारों ने इस दिशा-निर्देश को नाकाम कर दिया और जांच एजेंसी को सरकार के एक और विंग के रूप में बदल डाला.

दक्षिण कोरिया का उदाहरण लें, तो वहां के प्रधानमंत्री को भ्रष्टाचार के मामले में 15 साल की जेल हुई थी, लेकिन दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में मशहूर भारत में स्थिति इसके विपरीत है. पुरानी पड़ चुकी आपराधिक न्याय प्रणाली और साक्ष्य अधिनियम में सुधार, सुनवाई के उन्नत तरीकों का इस्तेमाल, कानूनी कार्यवाही में उन्नत तकनीक को शामिल करने से सबके लिए न्याय मिलना सुनिश्चित होगा. यह दशकों से पड़े भ्रष्टाचार के मामलों को समाप्त करेगा और भारतीय राजनीति में अपराधीकरण की व्यापकता को कम करेगा

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