नई दिल्ली : नागरिकता संशोधन कानून, 2019 के विरोध में जामिया मिलिया इस्लामिया केंद्रीय विश्वविद्यालय के छात्रों ने विरोध प्रदर्शन शनिवार को खत्म कर दिया. दरअसल प्रदर्शनकारियों की सरकार से यह मांग थी कि इस कानून को वापस लिया जाए.
हालांकि छात्रों के प्रदर्शन और विश्वविद्यालय परिसर में तनावपूर्ण स्थिति को देखते हुए शनिवार को जामिया मिल्लिया इस्लामिया प्रशासन ने पांच जनवरी तक छुट्टी की घोषणा कर दी है और सभी परीक्षाओं को रद कर दिया.
बता दें कि गत दो दिनों से परिसर में हिंसक प्रदर्शन हो रहे थे. विश्वविद्यालय प्रशासन ने कहा कि जिन लोगों ने हिंसा की और पुलिस के साथ संघर्ष किया, वे 'बाहरी' थे न कि छात्र थे.
विश्वविद्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, 'सभी परीक्षाएं स्थगित कर दी गई हैं. आने वाले समय में नयी तिथियों की घोषणा की जाएंगी. 16 दिसम्बर से पांच जनवरी तक छुट्टी घोषित की गई है. विश्वविद्यालय अब छह जनवरी 2020 से खुलेगा.
ईटीवी भारत की ग्राउंड रिपोर्ट
ईटीवी भारत से बातचीत में जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों ने इस कानून के विरोध का कारण बताया कि यह धर्म विशेष को चिह्नित करके बनाया गया है और केंद्र सरकार इसके जरिये धर्म के नाम पर बंटवारे का काम कर रही है.
ईटीवी भारत की जामिया विश्वविद्यालय के छात्रों से बातचीत. जामिया विश्वविद्यालय से मैकेनिकल इंजीनियरिंग कर रहे छात्र फहीम ने कहा कि जब केंद्र सरकार 'सबका साथ-सबका विकास' की बात करती हो तो फिर इस कानून में मुस्लिम धर्म के लोगों को क्यों नहीं शामिल किया गया. उन्होंने कहा कि देश के मुसलमान आजादी से भारत में रह रहे हैं और अब तक देश के खिलाफ यहां के मुसलमानों ने ऐसा कौन सा काम कर दिया, जिसके कारण उनके साथ ऐसा बर्ताव किया जा रहा है.
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विश्वविद्यालय में दूसरे सेमेस्टर की पढ़ाई कर रहे राशिद अली ने शुक्रवार को दिल्ली पुलिस द्वारा छात्रों पर किए गए लाठी चार्ज और आंसू गैस के इस्तेमाल पर रोष जताते हुए कहा कि उस घटना में उनके कई साथी छात्र घायल हो गए और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा.
राशिद ने कहा, 'हमारे देश में कैसा समय आ गया, जब छात्रों को कलम उठाने की बजाय लाठियां खानी पड़ रही हैं और सरकार का विरोध करने के लिए सड़कों पर आना पड़ रहा है.'
जामिया से एफईए में ग्रेजुएशन कर रही छात्रा जैनब खलीक का कहना था, 'हम छात्रों में से कोई भी नहीं चाहता कि सड़कों पर आकर हम पुलिस की लाठियां खाएं, लेकिन लगता है कि हमारी बात कोई सरकार तक पहुंचा नहीं रहा है, जिसे सुनकर सरकार यह कानून खत्म कर दे.'