नई दिल्ली: भारत के 15 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश की जेलों में कैदियों की क्षमता जेल की कुल क्षमता से अधिक हो चुकी है. इनमें से 68.5 प्रतिशत कैदियों पर ट्रायल चल रहा है.
उत्तर प्रदेश पुलिस के पूर्व महानिदेशक प्रकाश सिंह ने इस मसले पर ईटीवी भारत से बातचीत में कहा, 'यह एक खेदजनक स्थिति है. यह हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली की कमजोरी को दर्शाता है. क्योंकि न्यायिक परीक्षण में लंबा समय लग रहा है, इसलिए ये लोग मुकदमे में बने हुए हैं.'
असम पुलिस के महानिदेशक और डीजी बीएसएफ के रूप में भी सेवाएं दे चुके प्रकाश सिंह ने कहा कि न्यायपालिका और न्यायिक प्रक्रिया की कमी है, जिसके चलते परीक्षण में इतना समय लग रहा है. कई मुकदमे तो 30 या उससे ज्यादा समय तक खिंच जाते हैं.
प्रकाश सिंह ने उत्तर प्रदेश के बेहमई नरसंहार का, जहां दस्यु रानी फूलन देवी ने 20 बलात्कारियों से बदला लेते हुए उन्हें मौत के घाट उतार दिया था, उदाहरण देते हुए कहा कि 30 साल बाद भी इस मामले में न्याय मिलना बाकी है.
गौरतलब है कि 1981 के उस नरसंहार ने देश को बड़ा झटका दिया था और उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीपी सिंह ने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया था.
प्रकाश सिंह ने कहा कि गृह मंत्रालय की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश में कैदियों की उच्चतम अधिभोग दर 165 प्रतिशत है. उसके बाद छत्तीसगढ़ 157.2 प्रतिशत, उत्तराखंड में अधिभोग दर 140.6 प्रतिशत है.
उत्तर प्रदेश की जेलों में कैदियों की संख्या 58,400 की उपलब्ध क्षमता के मुकाबले 96,383 है. इसी तरह छत्तीसगढ़ में 12321 की उपलब्ध क्षमता के मुकाबले 19372 कैदी हैं जबकि उत्तराखंड में 3378 की उपलब्ध क्षमता के मुकाबले 4748 कैदी हैं.