जबलपुर: राष्ट्रपिता महात्मा गांधी देश के दिल में बसी संस्कारधानी यानि जबलपुर कई बार गए थे. यहां आज भी बापू से जुड़ी स्मृतियां संभालकर रखी गई हैं. गांधीजी की 150वीं जयंती पर हम आपको जबलपुर से जुड़ी बापू की यादों से रु-ब-रु कराते हैं कि कैसे यहां पर उनको नई पहचान मिलने के बावजूद अपने जीवन की सबसे बड़ी हार का सामना करना पड़ा था.
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी असहयोग आंदोलन और राष्ट्रीय आंदोलन में जागृति लाने के लिए देश भर का दौरा कर रहे थे. इसी दौरान वे जबलपुर भी गए थे. जहां पहली बार उन्होंने दलितों के लिए हरजिन शब्द का इस्तेमाल किया था. जबलपुर से ही गांधीजी ने हरिजन आंदोलन की पटकथा भी लिखी थी. महात्मा गांधी जबलपुर में राम मनोहर व्यवहार के घर पर रूकते थे.
जबलपुर से गांधी के रिश्ते पर ईटीवी भारत की रिपोर्ट बापू से जुड़ी यादों पर राम मनोहर व्यवहार के परिजन डॉक्टर अनुपम व्यवहार बताते हैं कि उनके घर के पास राधा-कृष्ण का मंदिर बना था. जिसमें पहली बार अछूतों को प्रवेश दिया गया था. बस यही बात गांधी को जंच गई और उन्होंने अछूतों को हरिजन नाम देकर छुआछूत खत्म करने की मुनादी कर दी.
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गांधी तीन से आठ दिसंबर 1933 तक जबलपुर के प्रवास पर थे. इसी दौरान जबलपुर में कांग्रेस कमेटी की महत्वपूर्ण बैठक हुई थी, जिसमें ज्यादातर बड़े नेता मौजूद थे. इस बैठक में गांधी ने हरिजन आंदोलन की भूमिका तैयार की थी. यहां गांधी ने जिंदगी के उतार-चढ़ाव को भी महसूस किया था, क्योंकि यहीं से अछूतों को 'भगवान' का दर्जा देकर वह अछूतों के दिलों के सम्राट बन गए थे. जबकि यहीं पर उन्हें जीवन की सबसे बड़ी हार का सामना भी करना पड़ा था. जिसे उन्होंने सार्वजनिक रूप से 1939 में हुई त्रिपुरी हार के रूप में स्वीकार किया था.
गांधीजी पहली बार कांग्रेस का प्रचार करने 1920 में जबलपुर आये थे, तब मीरा बहन के साथ खजांची चौक पर श्यामसुंदर भार्गव के घर पर रुके थे, इसके बाद 27 फरवरी 1941 को इलाहाबाद जाने के दौरान कुछ समय के लिए भेड़ाघाट घूमने गए थे.
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ऐसा ही एक दौरा 1942 में हुआ था. तब इलाहाबाद में मीटिंग के लिए जाते समय कुछ देर के लिए वह जबलपुर में रुके थे. इसके बाद कभी गांधीजी जबलपुर नहीं आए, लेकिन मौत के बाद उनकी अस्थियां नर्मदा में प्रवाहित करने के लिए जबलपुर लाई गईं थी. जिसे पंडित रविशंकर शुक्ल ने तिलवारा घाट से नर्मदा में प्रवाहित कर दिया था, उसी दिन को याद करते हुए गांधीजी के नाम पर एक बड़ा भवन बना हुआ है. जो आज भी गांधीजी की याद दिलाता है.