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सियासी शोर में गुम किसानों की आवाज, खाली रह जाती है अन्नदाता की झोली

प्रदेश में चल रही चुनावी बहस यूं तो किसानों के मुद्दे से शुरू हुई थी, लेकिन लगातार आ रहे विवादित बयानों के बाद किसान चुनावी बहसों से गायब हो गया है. इसी बीच केंद्र सरकार की आई एक रिपोर्ट के मुताबिक मध्य प्रदेश के किसान परिवार की औसत आय मनरेगा मजदूर से भी कम है, जो हैरान भी करती है और सोचने को मजबूर भी.

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Published : Oct 24, 2020, 10:53 PM IST

भोपाल : चुनावी समर का आखिरी दौर शुरू हो गया है, इसके लिए सभी राजनीतिक दलों के नेता पूरे दमखम के साथ मैदान में डटे हुए हैं. यूं तो प्रदेश की 28 विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव की चुनावी बहस किसान के मुद्दों से शुरू हुई थी, लेकिन चुनावी प्रचार के आखिरी चरण तक आते-आते पूरा चुनाव विवादित बयानों में सिमट गया. आमतौर पर हर चुनावों में किसानों का जिक्र होता है, इसके बाद भी प्रदेश के किसानों की आर्थिक स्थिति दयनीय बनी हुई है. हाल ही में केंद्र सरकार की आई एक रिपोर्ट के मुताबिक मध्य प्रदेश के किसान परिवार की औसत आय मनरेगा मजदूर से भी कम है.

मनरेगा मजदूर से कम किसान की आय

अपने पसीने से जमीन को सींच कर अनाज उगाने वाले किसानों की औसतन वार्षिक आय सिर्फ 1 लाख 16 हजार 788 है. केंद्र सरकार की डबलिंग फॉर्मर्स इनकम कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक मध्य प्रदेश के किसान औसतन हर माह 9,732 रुपये कमाता है. ऐसे में इसे परिवार के सभी सदस्यों में बांटे, तो 4 सदस्य वाले किसान परिवार के हर व्यक्ति की मासिक आए 2433 और प्रति दिन 81 रुपये है, जोकि मनरेगा मजदूर के दैनिक वेतन से लगभग आधी है.

उपचुनाव में गुम हुआ किसान का मुद्दा

कांग्रेस के निशाने पर बीजेपी की योजनाएं

किसानों के मुद्दे को लेकर बीजेपी और कांग्रेस के नेताओं में सिर्फ जुबानी जंग चल रही है, कांग्रेस नेता सज्जन सिंह वर्मा ने बीजेपी की योजनाओं को निशाना बनाते हुए कहा कि बीजेपी नेता किसानों के लिए कई चमत्कारिक घोषणाएं बनाने के दावे करते रहे हैं, लेकिन यह सब कहां हैं. किसानों की आय बढ़ाने के लिए वजन वाला नेता चाहिए, किसानों की शक्ति बढ़ाने के लिए योजना बनानी पड़ेगी.

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विवादित बयानों में खो गया किसान

उपचुनाव के दौर में प्रदेश का किसान और उसके मुद्दे विवादित बयानों में दफन हो गए हैं, जबकि प्रदेश के 70 फीसदी आबादी कृषि क्षेत्र से जुड़ी हैं. किसानों की बदहाली किसी से छुपी नहीं है. यही स्थिति किसानों की आत्महत्याओं के आंकड़े से समझी जा सकती है. एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक साल 2019 में प्रदेश में करीब साढ़े 500 किसानों ने आत्महत्या की है, जबकि पिछले 15 सालों में 15,000 से ज्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं.

बीजेपी को केंद्र के कानून से आस

किसानों के खराब होते हालातों पर बीजेपी प्रवक्ता राहुल कोठारी ने कहा कि बीजेपी सरकार ने पिछले 15 साल में जो काम किए हैं, उसका असर दिखने लगा है. धीरे-धीरे किसानों के हालात सुधर रहे हैं. राहुल कोठारी ने कहा कि हाल ही में केंद्र सरकार के उठाए कदमों से भी किसानों के हालात बेहतर होंगे.

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पांच कृषि कर्मण अवॉर्ड का नहीं दिखा कोई असर

केंद्र सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में किसानों की वार्षिक आय करीबन 1 लाख 16 हजार है, प्रदेश के ये हालात तब हैं, जब प्रदेश पांच बार कृषि कर्मण अवार्ड जीत चुका है. मोदी सरकार ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य तय किया है, लेकिन लगातार चुनावी बहसों और नेताओं की प्रथमिकता से दूर हो रहे किसान के मुद्दे को देख यह दूर की कौड़ी नजर आ रही है.

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