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क्या कोरोना वायरस महामारी 'एक्ट ऑफ गॉड' है? - Coronavirus pandemic

'फोर्स मेज्योर' एक फ्रांसीसी शब्द है, इसे ही 'एक्ट ऑफ गॉड' कहा जाता है. 'एक्ट ऑफ गॉड' की स्थिति में कंपनी को कुछ जिम्मेदारी, कर्तव्य और काम से छुटकारा मिल जाता है. यह वह स्थिति होती है, जो इंसान के बस से बाहर होती है. अभी जिस तरह से कोरोना वायरस संक्रमण की स्थिति है, वह भी 'एक्ट ऑफ गॉड' कही जा सकती है. इसकी सबसे बड़ी वजह है कि इसका टीका या इलाज अब तक नहीं खोजा जा सका है. ऐसे में यह स्थिति इंसान के बस के बाहर हो रही है. पढ़ें पूरी खबर...

Coronavirus pandemic An Act of God
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Published : Apr 4, 2020, 8:20 PM IST

हैदराबाद : कोरोना वायरस की वजह से देशभर में लगभग सभी प्रकार की आर्थिक गतिविधियां बाधित हो गईं हैं. वहीं देशव्यापी लॉकडाउन होने से लोगों की आवाजाही पर भी पाबंदी लगी हुई है. ऐसे में देश की कई दिग्गज कंपनियों ने 'एक्ट ऑफ गॉड' (Act of God) क्लॉज का आह्वान किया है.

इनमें भारत के सबसे बड़े निजी मल्टी-पोर्ट ऑपरेटर अदानी पोर्ट्स, भारत सरकार की स्वामित्व वाले तेल और गैस कंपनी इंडियन ऑयल, भारत की सबसे बड़ी मल्टीप्लेक्स चेन पीवीआर सिनेमा सहित कई अन्य दिग्गज कंपनियां शामिल हैं.

'एक्ट ऑफ गॉड' क्लॉज को 'फोर्स मेज्योर' (Force Majeure) भी कहा जाता है. 'एक्ट ऑफ गॉड' क्लॉज ज्यादातर कॉर्पोरेट्स और कमर्शियल प्लेयर्स द्वारा इस्तेमाल किया जाता है. ऐसे लोगों को 'एक्ट ऑफ गॉड' किराए के भुगतान, ऋण और अन्य चीजों के साथ छूट देता है.

क्या है 'एक्ट ऑफ गॉड'


'फोर्स मेज्योर' एक फ्रांसीसी शब्द है, इसे ही 'एक्ट ऑफ गॉड' कहा जाता है. 'एक्ट ऑफ गॉड' की स्थिति में कंपनी को कुछ जिम्मेदारी, कर्तव्य और काम से छुटकारा मिल जाता है. यह वह स्थिति होती है, जो इंसान के बस से बाहर होती है.

इस स्थिति का जिक्र कानून में भी किया गया है. लेकिन वास्तव में भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 में 'फोर्स मेज्योर' को स्पष्ट रूप से संदर्भित नहीं किया गया है.

हालांकि, अधिनियम 32 और 56 में कानूनी रूप से इसकी वैधता प्रदान की गई है. इसके अनुसार, जब एक बड़ी अप्रत्याशित घटना या 'एक्ट ऑफ गॉड' होता है तो कंपनियां अपने दायित्व से बचाने के लिए इसका उपयोग कर सकती हैं. लेकिन अनुबंध के दौरान 'फोर्स मेज्योर' का दोनों कंपनियों के बीच होना जरूरी है.

युद्ध, दंगे, क्रांति, विस्फोट, हमला, बंदरगाह अवरोधक, सरकारी कार्य, बाढ़, भूकंप और सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाएं, इन सभी को 'एक्ट ऑफ गॉड' या 'फोर्स मेज्योर' कहा जा सकता है.

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कोई भी कंपनी या पक्ष जिसे लगता है कि वह असाधारण परिस्थितियों में अपने संविदात्मक दायित्वों का पालन नहीं कर सकता और यदि उसके अनुबंध में 'एक्ट ऑफ गॉड' उल्लिखित है, तो वह इसे लागू करने के लिए स्वतंत्र है.

आज के हालातों में कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए कंपनियां 'एक्ट ऑफ गॉड' लागू कर सकती हैं.

अभी जिस तरह से कोरोना वायरस संक्रमण की स्थिति है, वह भी 'एक्ट ऑफ गॉड' कही जा सकती है. इसकी सबसे बड़ी वजह है कि इसका टीका या इलाज अब तक नहीं खोजा जा सका है. ऐसे में यह स्थिति इंसान के बस के बाहर हो रही है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कोरोना वायरस या कोविड-19 को महामारी घोषित किया है. वहीं भारतीय वित्त, नवीकरणीय ऊर्जा और सड़क परिवहन मंत्रालय ने भी इसे 'प्राकृतिक आपदा' घोषित कर दिया है.

ऐसे में कई कंपनियों का मानना है कि वह 'एक्ट ऑफ गॉड' क्लॉज का इस्तेमाल कर सकती हैं. देशव्यापी लॉकडाउन का लगा होना भी कंपनियों को क्लॉज का इस्तेमाल करने में मजबूती देता है.

गौरतलब है, भारतीय रेल मंत्रालय ने 27 मार्च को एक ट्वीट साझा करते हुए कहा था कि 22.03.20 से 14.04.20 तक की अवधि को 'फोर्स मेज्योर' ही माना जाएगा.

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