नई दिल्ली : नेपाल ने अपने नक्शे में लिम्पियाधुरा कालापानी और लिपुलेख को शामिल किया है. इसके बाद से दोनों देशों के बीच इस सीमा विवाद को लेकर तनाव बढ़ गया है. इस मुद्दे पर ईटीवी भारत ने काठमांडू स्थित राजनीतिक विशेषज्ञ युबराज घिमिरे से बातचीत की. इस दौरान उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी और अन्य स्थितियों को देखते हुए इस समय भारत और नेपाल के बीच सीमा विवाद को लेकर वार्ता नहीं हो सकती है.
राजनीतिक विशेषज्ञ युबराज घिमिरे से खास बातचीत. उन्होंने कहा कि दोनों देशो ने लिम्पियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख को अपने नक्शे में शामिल किया है. वार्ता के लिए इच्छा शक्ति जरूरी होती है और यदि वार्ता तथ्य और दस्तावेज के आधार पर होती है तो ज्यादा समय तक अवरोध नहीं रहेगा.
उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस और लॉकडाउन के चलते इस समय दुनिया में असहज परिस्थिति है, लेकिन भारत-नेपाल के बीच सीमा विवाद को लेकर तनाव बढ़ गया है.
उन्होंने कहा कि नेपाल और भारत के बीच ताजा विवाद इसलिए उपजा क्योंकि भारत ने पिछले वर्ष पांच अगस्त को जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को खत्म कर दिया था. इसके बाद भारत सरकार ने एक नक्शा जारी किया था. इसमें भारत ने लिम्पियाधुरा कालापानी और लिपुलेख को भारतीय नक्शे में शामिल किया था, जिसका नेपाल ने तत्काल विरोध किया. नेपाल ने कहा कि यह हमारी जमीन है. हालांकि दोनों देशों ने इस जमीन को विवादित मानकर सुलझाने का प्रयास किया है.
युबराज घिमिरे ने कहा कि नेपाल ने 1997 में भारत के समक्ष सीमा विवाद के मुद्दे को उठाया था. इसके बाद 2000 में भी यह सामने रखा. उस समय भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी थे और नेपाल के प्रधानमंत्री गिरिजा प्रसाद कोइराला थे. तब दोनों नेताओं ने कहा था कि इस मुद्दे का हल निकालने का निर्णय लिया गया है, लेकिन इस दिशा में बात आगे नहीं बढ़ सकी.
नेपाल में राजशाही शासन था तब भारत और नेपाल के बीच के बड़े से बड़े मुद्दे को बैकडोर से सुलाझा लिया जाता था. इस पर उन्होंने कहा कि फिलहाल इस समय यह मुश्किल है.