नई दिल्ली : इस तथ्य से कोई इनकार नहीं कर सकता कि सिनेमा समाज को आईना दिखाने का काम करता है. सिनेमा में जीवन का सार छुपा हुआ है. भारतीय सिनेमा साल भर सिनेमा की विभिन्न शैलियों के माध्यम से सामाजिक बदलाव लाने लिए महत्वपूर्ण भूमिक निभाता है. हालांकि भारतीय फिल्मों के प्रतिनिधित्व में कई वर्षों से बदलाव आया है. जयपुर विश्वविद्यालय में पत्रकारिता और जनसंचार विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ नरेन्द्र कौशिक ने अपनी 'महात्मा गांधी इन सिनेमा' पुस्तक के माध्यम से यह बताया है कि भारतीय सिनेमा में गांधी के सिद्धांतो और मूल्यों को कैसे चित्रित किया गया है.
कौशिक ने बताया कि 90 के दशक में मुझे एक पुस्तक 'द स्टोरी ऑफ माय एक्सपेरिमेंट्स विद ट्रुथ' दिल्ली में गांधी दर्शन के लिए उपहार में दी गई थी, जिससे मेरी गांधी में रुचि जागृत हुई. गांधी ने मेरे मन पर एक अमिट छाप छोड़ी. पत्रकार से बने प्रोफेसर ने डॉ कौशिक ने गांधीवादी सिद्धांतों पर पीएचडी की है.
'महात्मा गांधी इन सिनेमा' पुस्तक में भारतीय सिनेमा में महात्मा गांधी के सिद्धांतों का कितना असर है, पता लगाने का प्रयास किया गया है. वैसे भी राष्ट्रपिता सिनेमा को भारतीय समाज के लिए 'एक दुष्ट तकनीक' मानते थे. अपने जीवनकाल के दौरान बापू ने केवल 'राम राज्य' नामक हिंदी फिल्म देखी थी. यह फिल्म उनके पसंदीदा महाकाव्य 'रामायण' पर आधारित थी. गांधी ने सिनेमा के प्रति सिर्फ इतना नजरिया था कि इससे भ्रष्ट युवा दिमाग को बढ़ावा दिया है.
डॉ नरेन्द्र कौशिक से विशेष बातचीत :
सवाल : भारतीय सिनेमा के 100 वर्षों में गांधी के सिद्धांतों के महत्व को प्रतिबिंबित करने का यह विचार क्यों है?
जवाब : जब मैंने इस विषय पर काम करना शुरू किया तो पाया कि हिंदी सिनेमा में गांधीवादी मूल्यों पर कई अध्ययन किए गए थे. लेकिन यह कम थे और ज्यादातर व्यक्तिगत फिल्मों के बारे में थे. ऐसा कोई अध्ययन नहीं था, जिसमें पूरे सिनेमाई इतिहास को शामिल किया गया हो.
सवाल :पुस्तक में दो विशिष्ट गुण-दोष की चर्चा है, इसके बारे में बताएं?
जवाब :यह एक विडंबना है कि गांधी को सिनेमा से नफरत थी, फिर भी सिनेमा में विशेष रूप से 1960 के दशक तक उनके सिद्धांतों का पालन देखने को मिलता है. उनकी पीढ़ी के अधिकांश लोगों ने सिनेमा को देखा. हमारे बुजुर्ग फिल्म निर्माण को मूर्खों का काम माना करते थे, लेकिन दूसरा तथ्य यह भी है कि कोई भी शोधकर्ता इतना दूर की नहीं सोच सकता है.
सवाल : आपने पैसिफिक एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन से डॉक्टरेट किया है, तो अन्य अध्ययन के बजाय आपने यह पुस्तक क्यों लिखी?
जवाब :यह पहली पुस्तक है जो हिंदी सिनेमा के पूरे इतिहास (1913-2013) के बारे में बताती है. इसके साथ ही पुस्तक में बताया गया है कि क्या आज के समय में गांधी के सिंद्धांत उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उनके जीवनकाल के दौरान थे. साथ ही यह बताया गया है कि सत्य, अहिंसा, सर्वधर्म समान, छूआछूत और स्वदेशी वस्तुओं का इस्तेमाल कभी महत्वहीन नहीं होंगे.
सवाल : इस पुस्तक को लिखते समय क्या चुनौतियां थीं?
जवाब :कई चुनौतियां थीं. सबसे पहले, 1930, 40 या 50 के दशक की फिल्मों के प्रिंट को ढूंढना था, जो कि मुश्किल काम था. दूसरा यह है कि किताबों में बताए गए गांधीवादी सिद्धांतों का चित्रण करने में काफी मेहनत लगी. इसके अलावा गांधी के जीवन का हर पल आपको किताबों में मिलता है, तो हमें उसमें से क्या लेना है और क्या नहीं यह हॉबसन पर निर्भर था.