नई दिल्ली : पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर ने कहा कि कांग्रेस पार्टी को गांधी परिवार से मजबूती मिली है. लिहाजा नेतृत्व उनके परिवार का ही कोई सदस्य करे. उन्होंने कहा कि अगर ऐसा नहीं होता है, तो अन्य नामों पर विचार किया जा सकता है. भाजपा को हराने के सवाल पर उन्होंने कहा कि केरल मॉडल से ही ऐसा संभव हो पाएगा. पढ़ें उनका पूरा साक्षात्कार.
प्रश्न- कांग्रेस पार्टी के अंदर वरिष्ठ (सीनियर) बनाम कनिष्ठ (जूनियर) की बहस और नेतृत्व संकट से रोष बढ़ता दिख रहा है. असली समस्या क्या है ?
उत्तर- पूरी तरह से, यह नेतृत्व नहीं है. यह आकस्मिक है. यहां तक कि 23 वरिष्ठ नेताओं ने ( जिन्होंने हाल ही में सोनिया गांधी को एक विरोध- पत्र लिखा है ) भी यह सुझाव नहीं दिया है. नेतृत्व परिवर्तन में कांग्रेस की समस्याओं का मूल समाधान है. इस पर भी यदि वे मानते हैं कि नेतृत्व समस्या की जड़ है, तो अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ( एआईसीसी) का सत्र शुरू होने पर उनमें से कोई भी प्रतिस्पर्धा में खड़ा हो सकता है. मैं केवल यही उम्मीद कर सकता हूं कि वे जितेंद्र प्रसाद की नियति को नहीं प्राप्त होंगे, जिन्हें सोनिया गांधी के 9400 वोटों के मुकाबले 94 वोट मिले थे. समस्या कहीं और है. स्वतंत्रता आंदोलन के समय से और हमारे पहले 20 वर्षों में सामाजिक समूह जो संयुक्त भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ थे, वे 1967 के राष्ट्रीय चुनावों के बाद अपने भाग्य को अपने दम पर तलाश करने की कोशिश करने के लिए टूट गए. विशेष रूप से 1990 में मंडल आयोग के बाद कई पिछड़े वर्गों ने खुद को अलग-अलग समूह के रूप में बना लिया और तब पता चला कि पिछड़े वर्ग में किसी से भी यादव आगे हैं और किसी भी अनुसूचित जाति में जाटव सबसे आगे हैं.
एक तरह का भ्रम है कि बाबरी मस्जिद (1992) के गिरने के बाद मुसलमानों ने कांग्रेस को सामूहिक रूप से त्याग दिया.
कांग्रेस के नेतृत्व को समस्या के रूप में न देखें . समस्या बहुत गहरी है और मेरे विचार से इसे केवल इन सामाजिक समूहों को वापस पाकर हल नहीं किया जा सकता है. ज्यादा महत्वपूर्ण कि उन दलों को प्राप्त किया जाना है जो क्षेत्रीय या जातीय या समुदाय के आधार पर गठित किए गए. वे अभी जैसे हैं वे वैसे ही बने रहें लेकिन उन्हें केरल मॉडल की तरह गठबंधन में आना होगा. केरल में पिछले चुनाव के तत्काल बाद गठबंधन के सदस्यों पर फैसला हो गया था. ये पार्टियां अपनी खुद की पहचान रखती हैं लेकिन उन्हें मालूम है कि अगर गठबंधन सत्ता में आता है तो वे उन विभागों को जानती हैं कि उन्हें क्या मिलेगा.
प्रश्न- आपको गठबंधन की जरूरत क्यों है? क्या यह क्षेत्रीय दल कांग्रेस की छतरी के नीचे काम करना चाहेंगे?
उत्तर-भारतीय जनता पार्टी को हराने का एकमात्र तरीका एक गठबंधन ही है. मेरा क्षेत्रीय दलों को सुझाव है कि कांग्रेस के साथ मिलकर काम करें. अगर हम साथ रुके तो ही हमारे जीतने की संभावना है. अगर हम उन्हें कहना शुरू करें कि आप हमारे नेतृत्व के तहत आएं तो संभवत: वे आना नहीं चाहेंगे लेकिन यदि हम एक आम सहमति बना लें कि पहले की तरह हमारे गठबंधन का नेतृत्व वह करेगा जिसके पास सबसे अधिक सीटें होंगी या कोई अन्य सूत्र जो स्वीकार्य हो जाता हो तो हम गठबंधन के नेतृत्व के मुद्दे को अलग रख सकते हैं और यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि मेल से ही गठबंधन का नेतृत्व होगा. मैं कह रहा हूं कि अब प्रधानमंत्री के लिए अभी न पूछें. यदि यह हमारे पास आता है तो ठीक है, लेकिन प्रधानमंत्री कौन होगा इसे लेकर यह लड़ने का समय नहीं है. मुझे लगता है कि 2024 में भाजपा के साथ लड़ने के लिए हमें केरल की तरह एक अखिल भारतीय संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा की जरूरत है.
प्रश्न- लगातार दो राष्ट्रीय चुनावों में पार्टी को विपक्ष के नेता का पद प्राप्त करने के लिए लोकसभा में न्यूनतम 10 प्रतिशत सीटें (54) भी नहीं मिल पाई हैं, आपकी टिप्पणी?
उत्तर- निश्चित ही यह एक बड़ी चुनौती है. कई बार ऐसा हुआ है जब हम बैकफुट पर गए हैं. अगर नेतृत्व हमारे पास आता है तो इससे पहले जैसा हुआ था उसी तरह लेना चाहिए. मेरे गृह राज्य तमिलनाडु में 1967 से हम सत्ता में नहीं हैं और कम से कम अगले 600 वर्षों के लिए नहीं होंगे, लेकिन तमिलनाडु में कोई गांव ऐसा नहीं है जहां कोई कांग्रेस का समर्थन करने के लिए तैयार नहीं है. इसने हमें द्रमुक और अन्नाद्रमुक के बीच संतुलन बनाने की भूमिका दी है और हम बचे हुए हैं. जब मैं 1991 में संसद में आया, तब अन्नाद्रमुक के साथ हमारे गठबंधन ने सभी 39 संसदीय सीटों पर जीत हासिल की थी. संसदीय राजनीति में गतिशीलता है. हम कहां खड़े हैं ये हमें मानना चाहिए और सामाजिक समूहों को वापस पाने की उम्मीद करनी चाहिए.
प्रश्न- यह तो एक दीर्घकालिक समाधान है. अभी के लिए क्या कांग्रेस को निर्वाचित अध्यक्ष की जरूरत है?