अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस: जानिए जीवन में शिक्षा की अहमियत
अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस का अपने आप में बहुत अधिक महत्व है. इसका मकसद समाज के उस हिस्से को शिक्षा के प्रति जागरूक करना है, जो इसके महत्व से अनभिज्ञ है. जानें साक्षरता दिवस की अहमियत के बारे में...
साक्षरता की अहमियत
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Published : Sep 8, 2020, 2:14 PM IST
हैदराबाद : शिक्षा जीवन का आधार, इसके बिना जीवन बेकार...
हर साल आठ सितंबर को अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस मनाया जाता है. इस दिन का महत्व अंतरराष्ट्रीय समुदाय को व्यक्तियों, समुदायों और समाजों के लिए साक्षरता के महत्व को याद दिलाना होता है.
साक्षरता का मुद्दा संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों के लिए इसके 2030 एजेंडा का एक प्रमुख घटक है.
सितंबर 2015 में विश्व के नेताओं द्वारा अपनाया गया संयुक्त राष्ट्र का सतत विकास एजेंडा, लोगों के जीवन में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और सीखने के अवसरों की सार्वभौमिक पहुंच को बढ़ावा देता है.
सतत विकास लक्ष्य-4 (एसडीजी-4) का एक मकसद यह है कि सभी युवा यह सुनिश्चित करें कि सभी युवा साक्षरता हासिल कर सकें और उन वयस्कों को, जिनके पास इन कौशलों की कमी है, उन्हें हासिल करने का मौका दिया जा सके.
ऐसे ही कुछ लक्ष्यों को हासिल करने के लिए यह दिन अहम है. यह दिवस शिक्षकों की भूमिका के साथ-साथ प्रभावी नीतियों, प्रणालियों, शासन और उपायों का विश्लेषण करने का अवसर देगा, जो हमेशा कुछ नया सीखने का समर्थन करते हैं.
एक आभासी सम्मेलन के माध्यम से, यूनेस्को एसडीजी-4 की उपलब्धि के बाद कोविद-19 के युग में युवाओं और वयस्कों के साक्षरता शिक्षण और सीखने को फिर से संगठित करने के लिए एक सामूहिक वैश्विक चर्चा शुरू करेगा.
कोरोना संकट में लोगों को साक्षरता के प्रति जागरूक करना दुनिया ने पिछले दशकों में साक्षरता में लगातार प्रगति की है. फिर भी, विश्व स्तर पर, 773 मिलियन वयस्कों और युवाओं में बुनियादी साक्षरता कौशल की कमी है.
617 मिलियन से अधिक बच्चों और किशोरों को गणित में मामूली जानकारी भी नहीं होती है.
हालिया कोरोना संकट साक्षरता को लेकर खड़ी मौजूदा चुनौतियों का परिमाण है. इसने स्कूलों में होने वाली पढ़ाई और सीखने के अवसरों को काफी हद तक प्रभावित किया है, जिनमें युवा या वयस्क शामिल हैं.
महामारी के प्रारंभिक चरण के दौरान, स्कूलों को 190 से अधिक देशों में बंद कर दिया गया था, जिससे दुनिया की 91 प्रतिशत आबादी की शिक्षा प्रभावित हो गई.
सरकारें तेजी से एक अभूतपूर्व पैमाने पर शिक्षा के दूरस्थ समाधानों की ओर अग्रसर हो रही है, खासकर बच्चों और युवाओं की औपचारिक शिक्षा की ओर.
बिना किसी या कम साक्षरता कौशल वाले कई युवा और वयस्क लोगों को नुकसान का सामना करना पड़ सकता है, उनकी आजीविका जोखिम में है.
साक्षरता यूनेस्को 1946 से वैश्विक साक्षरता प्रयासों में सबसे आगे है.
साक्षरता लोगों को सशक्त बनाती है और उन्हें समाज में पूरी तरह से भाग लेने में सक्षम बनाती है. इसके साथ ही यह आजीविका को बेहतर बनाने में योगदान देती है.
साक्षरता भी सतत विकास के लिए एक चालक है कि यह श्रम बाजार में अधिक से अधिक भागीदारी को सक्षम बनाता है, गरीबी को कम करता है और जीवन के अवसरों को बढ़ाता है.
वैश्विक स्तर पर, कम से कम 750 मिलियन युवा और वयस्क अभी भी पढ़ और लिख नहीं सकते हैं और 250 मिलियन बच्चे बुनियादी साक्षरता कौशल हासिल करने में असफल हो रहे हैं. इसके परिणामस्वरूप कम साक्षर और निम्न-कुशल युवाओं और उनके समुदायों और समाजों में पूर्ण भागीदारी वाले वयस्कों को शामिल किया जाता है.
हमेशा सीखने के अभिन्न अंग के रूप में साक्षरता को आगे बढ़ाने के लिए और 2030 एजेंडा फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट को बढ़ावा देने के लिए निम्नलिखित दृष्टिकोण अपनाता है, जिसमें युवाओं और वयस्कों पर जोर दिया गया है:
बचपन की देखभाल और शिक्षा के माध्यम से मजबूत नींव का निर्माण
सभी बच्चों के लिए गुणवत्तापूर्ण बुनियादी शिक्षा प्रदान करना
युवाओं और वयस्कों के लिए स्केलिंग-अप कार्यात्मक साक्षरता का स्तर, जिनके पास बुनियादी साक्षरता कौशल की कमी है.
विश्व साक्षरता पर कुछ तथ्य पहली बार साक्षरता दिवस वर्ष 1966 में आठ सितंबर को मनाया गया था.
यूनेस्को द्वारा एकत्र किए गए आंकड़ों के अनुसार दुनिया की आबादी का लगभग 84 प्रतिशत साक्षर है.
आज भी, दुनिया भर में 250 मिलियन बच्चे अच्छी तरह से पढ़ या लिख नहीं सकते हैं.
दुनिया के 775 मिलियन निरक्षर वयस्कों में से लगभग तीन-चौथाई दस देशों में पाए जाते हैं. इनमें भारत, चीन, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नाइजीरिया, इथियोपिया, मिस्र, ब्राजील, इंडोनेशिया और कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य शामिल हैं.
यूनेस्को की ग्लोबल मॉनिटरिंग रिपोर्ट फॉर एजुकेशन फॉर ऑल कंट्री के अनुसार बुर्किना फासो (12.8 प्रतिशत), नाइजर (14.4 प्रतिशत) और माली (19 प्रतिशत) की साक्षरता दर सबसे कम है.
संयुक्त राष्ट्र के विश्लेषण के अनुसार, दुनिया में पांच वयस्कों में से एक अनपढ़ है. 75 मिलियन बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं और कई अनियमित रूप से भाग लेते हैं या ड्रॉप आउट होते हैं.
भारत के तथ्य 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में साक्षरता दर 74.04 प्रतिशत थी.
2011 की जनगणना के अनुसार, शीर्ष पांच सबसे अधिक साक्षर राज्य हैं: केरल (93.91 प्रतिशत साक्षरता दर), लक्षद्वीप (92.28 प्रतिशत), मिजोरम (91.58 प्रतिशत), त्रिपुरा (87.75 प्रतिशत) और गोवा (87.40 प्रतिशत).
भारत 313 मिलियन निरक्षर लोगों का घर है. इनमें 59 प्रतिशत महिलाएं हैं.
भारत में वर्तमान में 186 मिलियन महिलाएं हैं, जो किसी भी भाषा में एक साधारण वाक्य भी पढ़ या लिख नहीं सकती हैं.
आयु समूह (15-24 वर्ष) के लिए वर्तमान लिंग अंतर 3.7% अंक है, जो भारत के लिए समग्र लिंग अंतर का लगभग पांचवां है. इससे पता चलता है कि भारतीय युवाओं में, महिला साक्षरता, पुरुष साक्षरता के साथ तेजी से बढ़ रही है.
नवीनतम उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, भारत में बाल और युवा साक्षरता क्रमशः 93 प्रतिशत और 94 प्रतिशत है.
सरकार की पहल 1988 में शुरू किए गए राष्ट्रीय साक्षरता मिशन (एनएलएम) ने वयस्क शिक्षा को इसके प्रमुख घटकों में से एक के रूप में शामिल किया. इसने 15-35 वर्ष की आयु के गैर-साहित्यकारों को कार्यात्मक साक्षरता प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित किया.
उदाहरण के लिए, मध्याह्न भोजन योजना (1995), और सर्व शिक्षा अभियान (2001) की शुरुआत, साथ ही साथ आरटीई (शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009) ने साक्षरता में सुधार लाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है.
भारत सफलतापूर्वक 'कम साक्षरता जाल' से बाहर निकल गया है, जिसमें माता-पिता की निरक्षरता, लगातार पीढ़ी के लिए खराब साक्षरता परिणामों की ओर ले जाती है. पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए बाल और युवा साक्षरता संख्या दर्शाती है कि साक्षरता में सुधार के निरंतर प्रयासों ने वर्षों में काफी अच्छा किया है. यदि भारत इस गति को बनाए रखने में सक्षम है, तो देश 2030 तक बच्चों और युवाओं के लिए सार्वभौमिक साक्षरता प्राप्त करने में सक्षम हो सकता है.
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा जारी शिक्षा पर एक रिपोर्ट