हैदराबादः लगभग सभी क्षेत्रों में, महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम भुगतान किया जाता है इस प्रकार विश्व स्तर पर लिंग के आधार पर भुगतान का अंतर 23 प्रतिशत है. ऐतिहासिक और सामाजिक असमानता की वजह से लिंग समानता और नारी सशक्तीकरण को हमेशा से कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है. महिलाओं को अपनी क्षमता दिखाने और कम अवसर मिलने के कारणों में गरीबी, लैंगिक और सामाजिक भेदभाव मुख्य कारण रहे हैं.
ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स 2020 रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं और पुरुषों के बीच आय का अंतर काफी बड़ा है. महिला की वैश्विक औसत आय लगभग $ 11,000 (क्रय शक्ति समता) है, जबकि पुरुष की औसत आय $ 21,000 (क्रय शक्ति समता) है. 2020 में जेंडर गैप इंडेक्स के अनुसार, 2018 में भारत 108 वें स्थान से 112 वें स्थान पर चला गया है.वर्तमान समय के समीकरणों को देखते हुए ये माना जा रहा है कि वैश्विक स्तर पर लैंगिक भेदभाव को खत्म होने में करीब 100 साल लग जाएंगे.
ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2020 वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम रिपोर्ट के अनुसार लैंगिक वेतन समता की तरफ बढ़ रहे शीर्ष 4 देशों का एक संक्षिप्त विवरण
आइसलैंड
आइसलैंड में न सिर्फ 85.8% महिलाएं कार्यरत हैं बल्कि काफी हद तक वे उच्च वरिष्ठ और प्रबंधकीय पदों पर भी हैं. यहां 41.5% वरिष्ठ अधिकारी महिलाएं हैं. इसके अलावा 43% कंपनियों के बोर्ड सदस्य महिलाएं हैं. महिलाओं को आइसलैंड में मातृत्व अवकाश के दौरान अपने सकल वेतन का केवल 68% प्राप्त होता है. नार्वे में यह 94% है, स्वीडन में 77.6% और फ्रांस में 90% है. आइसलैंड राजनीतिक सशक्तीकरण के मामले में भी शीर्ष पर है.
नार्वे
नार्वे में श्रम शक्ति भागीदारी में महिलाएं लगभग पुरुषों के बराबर हैं. आंकड़ों के मुताबिक वहां लैंगिक समानता 94.5% है और पेशेवर और तकनीकी श्रमिकों के बीच पुरुषों की तुलना में अधिक महिलाएं हैं. हालांकि अभी भी वहां प्रबंधकीय पदों पर महिलाओं की संख्या पुरुषों की तुलना में कम है. वरिष्ठ भूमिकाओं में महिलाओं और पुरुषों के बीच अंतर 35.6% / 64.4% है.
फिनलैंड
यहां की संसद में लगभग पुरुषों और महिलाओं की संख्या समान है. पिछले मूल्यांकन की तुलना में 42% से यह हिस्सेदारी बढ़कर 47% हो गई है. 2018 के आंकड़ों के अनुसार वरिष्ठ भूमिकाओं में महिलाओं की वृद्धि 31.3% से बढ़कर 31.8% हुई है. आर्थिक भागीदारी और अवसर अंतराल के शेष पहलू काफी हद तक स्थिर बने हुए हैं, श्रम शक्ति की भागीदारी में अंतर अपेक्षाकृत छोटा है. कुशल भूमिकाओं में महिलाओं की हिस्सेदारी पहले से ही पुरुषों की तुलना में अधिक है.
स्वीडन
स्वीडन में श्रम बाजार में 81% महिलाएं कार्यरत हैं. इसके अलावा प्रबंधक पदों पर 38.6% महिलाएं हैं और 50% से अधिक कुशल कार्यकर्ता हैं. स्वीडन में एसटीईएम कार्यक्रमों में सबसे अधिक महिला स्नातकों की हिस्सेदारी है. 15.7% महिलाएं तकनीकी कार्यक्रम से डिग्री प्राप्त करती हैं. स्वीडन में 36.3% कंपनियों के बोर्ड सदस्य महिलाएं हैं.
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भारत में जेंडर गैप पर संक्षिप्त जानकारी
- भारत समग्र ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स में 112 वें स्थान पर है. भारत में आर्थिक लिंग भेद काफी गहरा है. इस अंतर का केवल एक तिहाई हिस्सा ही कम हुआ है. अध्ययन किए गए 153 देशों में से, भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां आर्थिक लिंग अंतर राजनीतिक लिंग अंतर से बड़ा है.
- 82% पुरुषों की तुलना में केवल एक-चौथाई महिलाएं श्रम बाजार में सक्रिय हैं. श्रम बाजार में सिर्फ एक तिहाई महिलाएं कार्यरत हैं. विश्व में यह आंकड़ा सबसे निचले पायदान पर हैं.
- महिला की अनुमानित आय, पुरुषों की अनुमानित आय का पांचवां हिस्सा है जोकि दुनिया के सबसे कम आय में भी है.
- 14% नेतृत्व करने की भूमिका में महिलाएं हैं और 30% पेशेवर और तकनीकी कार्यकर्ता हैं.
- भारत में प्रति 100 लड़कों पर पैदा होने वाली 91 लड़कियां हैं, जो प्राकृतिक अनुपात से काफी नीचे है.
- यहां हिंसा, जबरन शादी और स्वास्थ्य में भेदभाव भी व्याप्त है.
- शिक्षा के क्षेत्र में कुछ उम्मीद की किरण फूटी है जहां स्कूलों में छात्राओं की संख्य बढ़ी है.
- प्राथमिक से तृतीय कक्षा तक स्कूल जाने वाली लड़कियों की संख्या लड़कों के मुकाबले ज्यादा है.
- साक्षरता दर में अंतर काफी बड़ा है. 82% पुरुषों की तुलना में केवल दो तिहाई महिलाएं ही साक्षर हैं. राजनीतिक प्रतिनिधित्व में महिलाओं की संख्या कम है. संसद का केवल 14.4% महिलाएं हैं और कैबिनेट में 23% महिलाएं हैं.
भारत में वेतन अंतर के कारण
- भारत जैसे देश में, लिंग के आधार पर वेतन में अंतर के कारण थोड़े अधिक जटिल हैं और इसे सामाजिक आर्थिक से लेकर संरचनात्मक कारणों से जोड़ा जा सकता है.
- बालिकाओं को कभी-कभी स्कूलों से बाहर रखा जाता है या उन्हें जल्दी स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर किया जाता है.
- यदि महिलाएं शिक्षित हैं, तो भी कई महिलाओं को उनके परिवारों द्वारा काम करने की अनुमति नहीं है.
- जो महिलाएं काम कर भी रहीं हैं उन्हें अक्सर मातृत्व और बच्चे की देखभाल, यहां तक कि घर के दूसरे सदस्यों के लिए भी छुट्टियां बढ़ानी पड़ती हैं.