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पत्रकारों के खिलाफ अपराध रोकने के लिए मनाया जाता है यह खास दिन

पत्रकार अपनी जान जोखिम में डालकर खबरें निकालते हैं. लिहाजा, कई बार उनपर हमले भी होते हैं. प्रायः देखा गया है कि इस तरह के अधिकांश मामलों में अपराधियों को कोई सजा नहीं होती है. इसलिए इसके खिलाफ दो नवंबर को यूएन अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है. इसे 'इंटरनेशनल डे टू एंड इंप्युनिटी फॉर क्राइम अगेंस्ट जर्नलिस्ट' के रूप में जाना जाता है. आइए जानते हैं विस्तार से इसके बारे में.

Impunity
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Published : Nov 2, 2020, 8:08 AM IST

Updated : Nov 2, 2020, 12:14 PM IST

हैदराबाद :पत्रकार व्यक्तिगत जोखिम का सामना करते हुए दुर्व्यवहारों और भ्रष्टाचार पर प्रकाश डालते हैं. आपराधिक संगठनों की पोल खोलते हैं और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाते हैं. ऐसा करने पर पत्रकारों को अक्सर उन लोगों से खतरा होता है, जो उन्हें चुप कराना चाहते हैं. अब तक कई पत्रकारों की हत्याएं हुई हैं, लेकिन अपराधियों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती और वे दंड से बच जाते है. इसको देखते हुए दो नवंबर को विश्वस्तर पर पत्रकारों के विरुद्ध अपराधों के लिए दंडमुक्ति समाप्त करने के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस (International Day to End Impunity for Crimes against Journalists) मनाया जाता है. इस दिन का उद्देश्य पत्रकारों और मीडियाकर्मियों के खिलाफ हिंसक अपराधों की वैश्विक सजा दर को कम करना है.

इस दिन का इतिहास
संयुक्त राष्ट्र में दो नवंबर को महासभा में पेश किए गए प्रस्ताव ए / आरईएस / 68/163 में पत्रकारों के विरुद्ध अपराधों के लिए दंडमुक्ति समाप्त करने के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस के रुप में घोषित किया था. प्रस्ताव में सदस्य राज्यों से आग्रह किया गया कि वे इसके लिए निश्चित उपायों को लागू करें. दो नवंबर को इस दिवस के रूप में चुनने का कारण यह है कि इस दिन फ्रांस के दो रेडियो पत्रकार क्लाउदे वेरलोन और गिसिलेन दुपोंत की उत्तरी माली में अपहरण के बाद हत्या कर दी गई थी.

पिछले 14 वर्षों (2006-2019) में 1,200 से अधिक पत्रकार जनता के लिए समाचार और जानकारी एकत्रित करने में मारे जा चुके हैं. मीडिया कार्यकर्ताओं के खिलाफ प्रतिबद्ध दस में से एक मामलों में दोषी को सजा मिली है. इस तरह की दंडमुक्ति पत्रकारों के खिलाफ अपराध को बढ़ावा देती है.

यूनेस्को के अनुसार मारे गए पत्रकार

पत्रकारों के यूनेस्को ऑब्जर्वेटरी ऑफ किल्ड जर्नालिस्ट के अनुसार 2019 में दुनियाभर में 56 पत्रकारों की हत्याएं हुईं. वर्ष 2018 की तुलना में 2019 में मारे गए पत्रकारों की संख्या में कुछ कमी हुई (99 से कम हो कर 56 रही). संयुक्त राष्ट्र के अनुसार पिछले एक दशक (2010-2019) में 894 पत्रकारों की हत्याएं दर्ज की गई. प्रति वर्ष औसतन लगभग 90 पत्रकारों की मौत हुई.

इस साल दुनियाभर में पत्रकारों की हत्या की गई, जिसमें सबसे अधिक लैटिन अमेरिका और कैरिबियन में 22 हत्याएं दर्ज हैं, इसके बाद एशिया-प्रशांत क्षेत्र में 15 मामले दर्ज हैं और अरब राज्यों में 10 ऐसे मामले दर्ज हैं.

भारत की स्थिति
कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (सीपीजे) की रिपोर्ट

पत्रकारों की सुरक्षा के लिए बनाई गई समिति सीपीजे की रिपोर्ट के अनुसार भारत की स्थिति पत्रकारों के हत्यारों पर मुकदमा चलाने के मामले में अन्य देशों से बदतर है. इसका ग्लोबल इंपुनिटी इंडेक्स इस बात पर प्रकाश डालता है कि दुनिया के पत्रकारों को उनकी निर्भीक पत्रकारिता के लिए मार दिया जाता है और कौन से देशों की आपराधिक न्याय प्रणाली हत्यारों की जांच, और उन पर मुकदमा चलाने में विफल रही है.

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पत्रकारों की हत्या करने वालों को दंड देने में भारत का माहौल पिछले दो वर्षों में और खराब हो गया है. अपराधी आसानी से दंडमुक्ति हो रहे हैं. पत्रकारों की वैश्विक कुल अनसुलझी हत्याओं के 80% मामले भारत सहित अन्य शीर्ष 12 देशों में दर्ज किए गए हैं.

विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स नामक गैर-सरकारी संगठन द्वारा जारी किए जाने वाले 180 देशों के विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2020 में भारत 142वें स्थान पर पहुंच गया है. 2020 रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स रिपोर्ट के अनुसार भारत उन शीर्ष देशों में से है, जहां लगातार प्रेस स्वतंत्रता का उल्लंघन हुआ है, जिसमें पत्रकारों के खिलाफ पुलिस, राजनीतिक कार्यकर्ता, आपराधिक समूहों और भ्रष्ट स्थानीय अधिकारियों ने हिंसा की है.

Last Updated : Nov 2, 2020, 12:14 PM IST

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