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कोरोना काल में ग्रामीण महिलाएं बनें 'आत्मनिर्भर' - कोरोना काल में महिला की दशा

आज अंतरराष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस है. इस दिवस का उद्देश्य कृषि विकास, ग्रामीण विकास, खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण गरीबी उन्मूलन में ग्रामीण महिलाओं के महत्व के प्रति लोगों को जागरूक करना है. कोरोना काल में ग्रामीण महिलाओं की क्षमता का विकास होना आवश्यक है. उनके लिए एक ऐसी आजीविका का प्रबंध हो जिनकी सहायता से उनकी जीवन की दशा और दिशा बदले.

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प्रतीकात्मक तस्वीर.

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Published : Oct 15, 2020, 2:05 PM IST

Updated : Oct 15, 2020, 4:20 PM IST

हैदराबाद : ग्रामीण महिलाएं समाज की रीढ़ होती हैं, किंतु वे हमेशा ऐसी बाधाओं का सामना करती हैं जिनके कारण उनकी क्षमताओं का पूरा उपयोग नहीं हो पाता है. हालांकि समय के साथ महिलाओं के प्रति लोगों की धारणाएं बदली हैं.

हम सभी जानते हैं कि साल 2020 कोरोना महामारी को लेकर जाना जाएगा. साथ ही महामारी के कारण विश्व की अर्थव्यवस्था में काफी उतार-चढ़ाव देखा गया है. खास कर ग्रामीण महिलाओं को अधिक कष्टों का सामना करना पड़ा है.

कोविड-19 महामारी ने दुनिया की दिशा और दशा ही बदल कर रख दी है. ऐसे में ग्रामीण महिलाओं की स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं और उनके निदान को लेकर कई प्रश्न खड़े हो गए हैं.

इन सभी बातों को देखते हुए इस साल ग्रामीण महिला दिवस पर महिलाओं को आर्थिक, मानसिक और शारीरिक तौर पर मजबूत करने का प्रायस किया जा रहा है. उनकी क्षमता और स्वास्थ्य पर विशेष बल दिया जा रहा है.

बता दें कि 15 अक्टूबर 2020 को अंतरराष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस मनाया जा रहा है. इस अवसर पर हम उन महिलाओं की स्थिति के बारे में बात करेंगे जो कोरोना महामारी में विभिन्न किस्म की कठिनाईयों का सामना कर रही हैं.

ग्रामीण महिलाओं की स्थिति के देखें तो कोरोना काल में दैनिक समस्याएं कुछ ज्यादा ही बढ़ गई हैं. वैसे भी गांव की महिलाएं पहले से ही दैनिक जीवन में कई तरह की बाधाओं का सामना करती नजर आ रही हैं.

दूरदराज जहां दैनिक स्वास्थ्य सुविधाओं का चरम अभाव होता है, वहां उनकी स्थिति काफी दयनीय दिखाई देती है. कोरोना काल में महिलाओं को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं, आवश्यक दवाओं और टीकों की पहुंच कम होनी की संभावना है.

प्रतिबंधात्मक सामाजिक मानदंड और लैंगिक रूढ़िवादिता ग्रामीण महिलाओं की स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंचने की क्षमता को भी सीमित करती हैं.

वैसे दुनिया भर में महिलाओं को उचित सम्मान और उनकी बेहतर जीवनशैली के बारे में चर्चाएं होतीं हैं, लेकिन समाज का एक वर्ग ऐसा भी है जहां महिलाएं अक्सर अपने अस्तित्व को लेकर जुझती नजर आती हैं.

ग्रामीण महिलाओं के लिए कई तरह की समस्याएं हैं, जैसे गलत सूचनाओं का प्रसार होना है. साथ ही उनके काम और व्यक्तिगत जीवन को बेहतर बनाने के लिए महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों तक पहुंच की कमी एक मुख्य विषय भी है.

एक अन्य दृष्टिकोण से, अवैतनिक देखभाल कार्य का मुद्दा केवल अवैतनिक कार्य की दृश्यता बढ़ाने से परे है

ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं के लिए एक बहुत ही आम समस्या है. दूरदराज के गांवों में, विशेष रूप से जो हाशिए पर हैं, उन महिलाओं के जीवन को ठीक करने के कई तरीके हो सकते हैं. इनमें महिलाओं और पुरुषों के बीच, साथ ही परिवारों और सार्वजनिक/वाणिज्यिक सेवाओं के बीच बेहतर पुनर्वितरित करने के उपाय शामिल हैं.

समाज में ग्रामीण महिलाओं की बेहतरी के लिए उनके समक्ष आने वाले दैनिक समस्याओं के निदान के लिए वकालत करने की जरूरत है. इनमें जल, स्वास्थ्य, बिजली शामिल हैं.

महिलाओं की क्षमता और अवैतनिक देखभाल और घरेलू काम का समर्थन करने की आवश्यकता है, जो कि वर्तमान समय में संकट से घिर गया है.

वर्तमान समय में देखें तो शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में पुरुषों और महिलाओं को दी जाने वाली वेतन में अंतर है. यह एक लिंग भेद की समस्या भी है, जो कि काफी नुकसानदायक है.

उदाहरण के लिए, यदि ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं की कृषि संपत्ति, शिक्षा और बाजारों में पुरुषों की तरह ही पहुंच होती, तो कृषि उत्पादन बढ़ाया जा सकता था, और भूखे लोगों की संख्या 100-150 मिलियन तक कम हो जाती.

ग्रामीण परिवारों और समुदायों की स्थिरता सुनिश्चित करने, ग्रामीण आजीविका और समग्र भलाई में सुधार लाने में महिलाओं और लड़कियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैं.

महिलाएं घरेलू कार्यों के साथ-साथ कृषि श्रम शक्ति में भी निपुण होती हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं की घरेलू कार्यों की क्षमता की तुलना किसी से भी नहीं की जा सकती है. इन कार्यों के लिए उन्हें कोई भी पैसा नहीं मिलता है. इसे हम अवैतनिक कार्य कहते हैं.

ग्रामीण महिलाएं कृषि उत्पादन, खाद्य सुरक्षा और पोषण, भूमि और प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन और जलवायु लचीलापन बनाने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं.

महिलाओ में इतनी क्षमता होने के बाद भी ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं हाशिए पर हैं. ग्रामीण महिलाएं और लड़कियां बहु-आयामी गरीबी से पीड़ित हैं. जबकि वैश्विक स्तर पर अत्यधिक गरीबी में गिरावट आई है.

दुनिया के एक बिलियन लोग, जो गरीबी में जी रहे हैं. इनमें ग्रामीण क्षेत्रों की संख्या कही ज्यादा है.

अधिकांश क्षेत्रों में ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी की दर शहरी क्षेत्रों की तुलना में अधिक है. फिर भी छोटे धारक कृषि एशिया और उप-सहारा अफ्रीका में लगभग 80% भोजन का उत्पादन करते हैं.

ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं और लड़कियों को उत्पादक संसाधनों और परिसंपत्तियों, सार्वजनिक सेवाओं, जैसे कि शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल, और पानी और स्वच्छता सहित बुनियादी सुविधाओं तक समान पहुंच की कमी है.

जबकि उनके अधिकांश श्रम अदृश्य और अवैतनिक बने हुए हैं. यहां तक ​​कि उनके कार्यभार भी अधिक होते जा रहे हैं. यह इसलिए क्योंकि पुरुष काम के सिलसिले में बाहर रहते हैं.

विश्व स्तर पर, कुछ अपवादों के साथ, हर लिंग और विकास संकेतक, जिसके लिए डेटा उपलब्ध हैं, से पता चलता है कि ग्रामीण महिलाएं ग्रामीण पुरुषों और शहरी महिलाओं की तुलना में अधिक संघर्ष करती हैं. वे असमान रूप से गरीबी, अपवर्जन और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का अनुभव करती हैं.

समाज में महिलाओं और उनकी भूमिका

15 अक्टूबर 2008 को ग्रामीण महिलाओं का पहला अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाया गया. 18 दिसंबर, 2007 को अपने संकल्प 62/136 में महासभा द्वारा स्थापित यह नया अंतर्राष्ट्रीय दिवस, 'स्वदेशी महिलाओं सहित ग्रामीण महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका और योगदान' को मान्यता देता है.

कृषि और ग्रामीण विकास को बढ़ाने, खाद्य सुरक्षा में सुधार और ग्रामीण गरीबी को खत्म करना इस दिवस का मुख्य उद्देश्य है.

संयुक्त राष्ट्र और नागरिक समाज साथ मिलकर उन उपायों को लागू करने की बात करते हैं जिनसे ग्रामीण महिलाओं की जीवन सुरक्षित हो सके.

सरकारों और समाज को महिलाओं की जरूरतों पर ध्यान देने की जरूरत है.

ग्रामीण महिलाओं के राजनीतिक और सामाजिक-आर्थिक सशक्तीकरण को आगे बढ़ाने और सभी स्तरों पर निर्णय लेने में उनकी पूर्ण और समान भागीदारी का समर्थन करने के लिए आगे आएं.

ग्रामीण की आर्थिक दक्षता को बढ़ावा देने के लिए उनकी नीतियों, विशिष्ट सहायता कार्यक्रमों और सलाहकार सेवाओं को विकसित करना बैंकिंग, आधुनिक व्यापार और वित्तीय प्रक्रियाओं में महिलाएं को शामिल किया जाए. उन्हें वह हर अधिकार दिया जाए जिनकी वे हकदार हैं.

संयुक्त राष्ट्र महिला, एफएओ, आईएलओ, विश्व बैंक या आईएफएडी जैसी कई एजेंसियों के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र द्वारा पर्यवेक्षण, पालन और समर्थन किया जाता है, जो लक्ष्यों और उपायों के लिए विभिन्न दृष्टिकोणों (महिला अधिकारों, निवेश, प्रशिक्षण) से लड़ने की कोशिश करते हैं.

भारत में ग्रामीण महिलाओं की स्थिति

2011 की जनगणना के अनुसार, भारत की जनसंख्या 121.06 करोड़ थी, जिनमें महिलाओं की संख्या 48.5% थी.

2011 में, अखिल भारतीय स्तर पर लिंग अनुपात (प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या) 943 था और ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लिए क्रमशः 949 और 929 हैं.

वहीं शून्य (0) -19 आयु वर्ग के लिए लिंगानुपात 908 था जबकि 60+ आयु वर्ग में 1033 था. आर्थिक रूप से सक्रिय आयु वर्ग (15 - 59 वर्ष) में लिंगानुपात 944 था.

आयु वर्ग 0 - 6 वर्ष में लिंगानुपात ग्रामीण क्षेत्र में 2001 में 906 से बढ़कर 2011 में 9 .23 हो गया है. हालांकि, इसी अवधि में शहरी क्षेत्र में अनुपात में गिरावट आई है.

2017 में पूरे भारत में महिलाओं की शादी की औसत आयु 22.1 वर्ष थी और ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में क्रमशः 21.7 वर्ष और 23.1 वर्ष थी.

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (जुलाई 2011 - जून 2012) के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में 11.5% परिवार और शहरी क्षेत्रों में 12.4% परिवार में महिला ही मुखिया थी.

2011 की जनगणना के अनुसार, पूरे भारत में साक्षरता दर 72.98% थी और महिलाओं और पुरुषों की साक्षरता दर क्रमशः 64.63% और 80.9% है. पिछले एक दशक के दौरान, ग्रामीण महिलाओं (24%) के लिए साक्षरता दर में सबसे अधिक सुधार देखा गया.

आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण के परिणाम बताते हैं कि 2017-18 में ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के लिए श्रमिक जनसंख्या अनुपात 17.5 और 51.7 रहा.

वहीं शहरी क्षेत्र में, महिलाओं के लिए अनुपात 14.2 और पुरुषों के लिए 53.0 रहा. ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में, महिलाओं के लिए डब्ल्यूपीआर पुरुषों के लिए डब्ल्यूपीआर की तुलना में काफी कम था.

दूसरी तरफ पीएलएफएस (2017-18) के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्र में महिलाओं की बेरोजगारी दर पुरुषों के मुकाबले 5.7 थी जबकि शहरी क्षेत्रों में 15 वर्ष या इससे अधिक आयु के महिलाओं और पुरुषों के लिए यह 10.8 और 6.9 थी.

COVID-19 के मद्देनजर ग्रामीण महिलाओं में क्षमता का विकास

महामारी ने महिलाओं और लड़कियां को कई सुविधाओं से वंचित किया है. को वंचित किया जाता है, एक ऐसी समस्या जो कि ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ गई है. उनकी क्षमताओं का विकास होना आवश्यक है क्योंकि महिलाएं समाज की रीढ़ होती है और उनके बिना जीवन की कल्पना करना बेमानी है.

ग्रामीण महिलाओं के अंतर्राष्ट्रीय दिवस (15 अक्टूबर) पर इस वर्ष, COVID -19 के मद्देनजर ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाने की तत्काल आवश्यकता के लिए, ग्रामीण महिलाओं के स्थायी आजीविका को मजबूत करने की आवश्यकता है.

ग्रामीण महिलाएं कृषि, खाद्य सुरक्षा और पोषण, भूमि और प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन और ग्रामीण उद्यमों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं.

भारत में, स्वयं सहायता समूहों में आयोजित लाखों ग्रामीण महिलाओं ने कोरोना काल में मास्क सैनिटाइजर का उत्पादन करने के साथ-साथ सामुदायिक रसोई के माध्यम से ताजा भोजन प्रदान करने, वित्तीय सेवाओं को बढ़ावा देने में काफी मददगार साबित हुई हैं.

ग्रामीण महिलाओं के समक्ष समस्याएं

ग्रामीण महिलाओं को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है जैसे कि कम उम्र में लैंगिक पक्षपात, कम उम्र में पारिवारिक ज़िम्मेदारियां, भाषा की समस्याएं, पारिवारिक मुद्दे, लंबे समय तक काम करने के लिए कम वेतन, महिलाओं की सुरक्षा एक समस्या है. कुछ मुद्दे ऐसे भी हैं जिनमें उचित प्रशिक्षण और कौशल के बाद ग्रामीण महिलाओं के लिए नौकरी पाना आसान नहीं होता है.

मूल संदेश

उत्पादक संसाधनों, सेवाओं, प्रौद्योगिकियों, बाजारों, वित्तीय संपत्तियों और स्थानीय संस्थानों तक पहुंचने में ग्रामीण महिलाओं को पुरुषों की तुलना में अधिक बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जो उन्हें COVID-19 महामारी के सामाजिक-आर्थिक प्रभावों और इसे रोकने के उपायों के लिए अधिक असुरक्षित बनाता है.

महामारी के प्रभाव ग्रामीण महिलाओं की उत्पादक, प्रजनन और आय बढ़ाने वाली क्षमताओं पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहे हैं. यह उनके आर्थिक अवसरों को कम करने और पौष्टिक खाद्य पदार्थों तक पहुंच को कम करता है जबकि एक ही समय में उनके कार्यभार का बोझ तो बढ़ता ही है साथ ही उनके साथ होने वाले लिंग आधारित हिंसा को बढ़ाता है.

नीतिगत प्रतिक्रियाओं को कृषि-खाद्य प्रणालियों में महिलाओं की भूमिका पर विचार करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि घरेलू खाद्य सुरक्षा, खाद्य उत्पादकों, खेत प्रबंधकों, प्रोसेसर, व्यापारियों, मजदूरी श्रमिकों और उद्यमियों के संरक्षक के रूप में उनकी कई जरूरतों को पर्याप्त रूप से संबोधित किया गया है.

ग्रामीण महिलाएं खाद्य और कृषि उत्पादों के उत्पादन, प्रसंस्करण और व्यापार करने में महत्वपूर्ण हैं और COVID-19 महामारी उनकी कृषि गतिविधियों को प्रभावित करती है जो पुरुषों की तुलना में अधिक गंभीर है. कृषि-खाद्य मूल्य श्रृंखलाओं में ग्रामीण महिलाओं की भागीदारी का समर्थन करने के लिए विशेष उपायों को अपनाना महत्वपूर्ण है.

महिलाओं को अक्सर सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों, जैसे कि नकद हस्तांतरण, सार्वजनिक कार्य कार्यक्रम और परिसंपत्ति हस्तांतरण के लिए उनकी पहुंच में बाधा आती हैं.

ग्रामीण महिलाओं के साथ होने वाली हिंसात्मक गतिविधियों को खत्म करने के लिए उन्हें प्रत्येक सकारात्मक क्षेत्र में समर्थन करना आवश्यक है.

अंत में हम यह कहना चाहते हैं कि महिलाएं किसी से भी कम नहीं हैं. ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं पर अगर विशेष ध्यान दिया जाए तो वे देश की विकास में सकारात्मक भूमिका का निर्वहन कर सकती हैं. कोरोना काल में दैनिक सुविधाओं से वंचित महिलाओं के विकास पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है.

Last Updated : Oct 15, 2020, 4:20 PM IST

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