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विशेष लेख : मासूम बच्चों की पीड़ा का अंतरराष्ट्रीय दिवस - Children Victims Of Aggression

मासूम बच्चों के पीड़ा का दिवस का उद्देश्य आक्रमण के शिकार हुए बच्चों को यौन हिंसा, अपहरण से बचाना तथा उनके अधिकारों की रक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबद्धता की पुष्टि करता है. संयुक्त राष्ट्र का उद्देश्य उन बच्चों की रक्षा करना है जो शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक शोषण के शिकार हैं. यह संघर्ष की स्थितियों में बच्चों की सुरक्षा में सुधार के प्रयासों में एक ऐतिहासिक कदम था.

International Day Of Innocent Children Victims Of Aggression-
मासूम बच्चों की पीड़ा का अंतर्राष्ट्रीय दिवस

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Published : Jun 4, 2020, 8:32 PM IST

Updated : Jun 4, 2020, 11:55 PM IST

हैदराबाद : 1997 में महासभा ने बाल अधिकारों पर 5/11 के प्रस्ताव को अपनाया था. इसमें बाल अधिकार और उसके वैकल्पिक प्रोटोकॉल के सम्मेलन और बाल संकल्पों के वार्षिक अधिकार शामिल हैं. प्रस्ताव के मुताबिक, हिंसक चरमपंथियों से बच्चों को बचाने के लिए अधिक प्रयास किया जाना चाहिए. इसके साथ ही अंतरराष्ट्रीय मानवीय और मानव अधिकार कानून को बढ़ावा देने के लिए बच्चों के अधिकारों के उल्लंघन के लिए जवाबदेही भी सुनिश्चित करनी चाहिए.

इस दिवस का उद्देश्य हिंसा के शिकार हुए बच्चों को यौन हिंसा, अपहरण से बचाना तथा उनके अधिकारों की रक्षा के करना है. इस मामले में संयुक्त राष्ट्र का उद्देश्य दुनियाभर में उन बच्चों की शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक शोषण के शिकार से बचाना है.

2030 के लिए मास्टर प्लान तैयार किया है, इसमेंं बच्चों के भविष्य को सुरक्षित रखने की योजना बनाई गई है. साथ ही बच्चों के खिलाफ हो रही हिंसा और उत्पीड़न संबंधी मामलों को मुख्य धारा में शामिल किया गया.

पीड़ित बच्चों के लिए अधिनियम
हाल के वर्षों में, कई संघर्ष क्षेत्रों में, बच्चों के खिलाफ हिंसा के मामले में वृद्धि हुई है, जिसके बाद एक अधिनियम की शुरुआत की जाएगी जो बच्चों की सुरक्षा करेगी.

अगले तीन वर्षों में अभियान संयुक्त राष्ट्र, नागरिक समाज और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के बीच सहयोग को मजबूत करने की कोशिश करेगा ताकि संघर्ष के समय में बच्चों के खिलाफ किए गए गंभीर अपराधों को समाप्त करने और रोकने के लिए किए गए कार्यों का समर्थन किया जा सके.
संयुक्त राष्ट्र सशस्त्र संघर्ष ने बच्चों के खिलाफ हो रहे अपराधों को छह श्रेणियों में रखा है. सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों में इन उल्लंघनों की विशेष रूप से निगरानी की जाती है:

1. सैनिक के रूप में बच्चों की भर्ती

2. बच्चों को मारना

3.बच्चों के खिलाफ यौन हिंसा

4.बच्चों का अपहरण

5.स्कूल या अस्पतालों में हमले जैसा कि वर्तमान में सीरिया में हुआ है

संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की रिपोर्ट (चिल्ड्रन एंड आर्म्ड कंफ्लिक्ट 2019) में बताया गया है कि कैसे बच्चों के जीवन को तबाह किया जाता है. पिछले साल सशस्त्र संघर्षों में 12,000 से अधिक बच्चे मारे गए और घायल हुए, जिसमें अफगानिस्तान, यमन, फिलिस्तीन और सीरिया हताहत सूची में शीर्ष पर थे.

सऊदी की अगुवाई वाला गठबंधन उन दलों की सूची में रहा जो बच्चों की सुरक्षा में कमी के बावजूद बच्चों की सुरक्षा के उपाय कर रहे हैं. वहीं संयुक्त राष्ट्र के निदेशक लुइस चारबोन्यू ने कहा कि 2015 के बाद से सऊदी के नेतृत्व वाले गठबंधन ने यमन में बच्चों के खिलाफ भयावह उल्लंघन किए हैं, जो बिना किसी सबूत के अपने रिकॉर्ड को सुधारने की कोशिश कर रहे हैं.

एक रिपोर्ट के अनुसार इजरायल को 2018 में फिलिस्तीनी बच्चों को 59 मारने 2,756 को घायल करने के लिए दोषी ठहराया गया.

संयुक्त राष्ट्र (UN) महासचिव एंटोनियो गुटेरेस के अनुसार, 2018 में बच्चों की हत्या के मामले रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गए.

गुटेरेस ने बताया कि 2005 से बच्चों में निगरानी शुरू हुई थी, इसके बाद 2018 तक बच्चों की हत्या के मामले रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गए. अफगानिस्तान और सीरिया सशस्त्र संघर्ष में सबसे अधिक बच्चे हताहत होने वाले देशों की सूची में सबसे ऊपर हैं

2018 में, अफगानिस्तान में 3,062 बच्चे हताहत हुए. हताहत हुए बच्चों की संख्या 28 फीसदी थी, जबकि सीरिया में बैरल बम और क्लस्टर मुनियों ने 1,854 युवाओं को मार डाला.

वाईपीजी ने भी बाल सैनिकों की भर्ती जारी रखी है. एक रिपोर्ट में पता चला है कि आतंकवादी पीकेके समूह के सीरियाई सहयोगी और वाईपीजी ने 300 से अधिक बच्चों की भर्ती की है और प्रशिक्षण के दौरान गोला-बारूद का उपयोग किया गया है.

आतंकी समूहों द्वारा भर्ती किए गए लगभग 40 फीसदी बच्चे 15 वर्ष से कम उम्र की लड़कियां शामिल थी.

नए विश्लेषण से यह भी पता चलता है कि संघर्ष, लड़कियों और लड़कों को अलग तरह से कैसे प्रभावित करता है. यौन दुष्कर्म के शिकार होने वाले दस बच्चों में नौ लड़कियां होती हैं. लड़कों को अधिक बार मार दिया जाता है या उनका अपहरण कर लिया जाता है.

लड़कों को आमने-सामने की लड़ाई में मारे जाने की अधिक संभावना होती है, यदि लड़कियों को मार दिया जाता है या उन्हें गंभीर रूप से घायल कर दिया जाता है, यह प्रक्रिया ज्यादातर विस्फोटक हथियारों के द्वारा संभव हो पाती है.

सेव द चिल्ड्रन द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, युद्ध और संघर्ष बच्चों के लिए तेजी से खतरनाक साबित हो रहे हैं, जो बच्चे संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में रहते हैं, उनको हिंसा का शिकार होने की ज्यादा संभावना होती है.

शोध में पता चला कि 2018 में दुनियाभर में 415 मिलियन बच्चे संघर्ष-प्रभावित क्षेत्रों में रह रहे थे. यह संख्या 2017 से कम थी. इसके बाद भी बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों में वृद्धि दर्ज हुई है, जिससे पता चलता है कि संघर्ष में बच्चों के मारे जाने, घालय होने, अपहरण होने और यौन दुर्व्यवहार होने का खतरा अधिक रहता है. अधिक संघर्ष वाले क्षेत्रों में रह रहे बच्चों की संख्या149 मिलियन से भी अधिक है, यह संख्या संयुक्त राज्य रह रहे बच्चों की संख्या का दोगुना है.

स्टॉप द वार ऑन चिल्ड्रन 2020: जेंडर मैटर्स के निष्कर्षों में से एक है, जो दुनियाभर में संघर्ष क्षेत्रों में रह रहे बच्चों की संख्या पर संगठन की तीसरी वार्षिक रिपोर्ट है.

इस वर्ष की रिपोर्ट, जिसने म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन के पहले लॉन्च किया गया है, जहां दुनिया के नेता अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दों पर बहस करने के लिए इकट्ठा होगें, इस सम्मेलन में एक विश्लेषण भी शामिल है. विश्लेषण के में यह बताया जाएगा कि हिंसा प्रभावित इलाकों में लड़कों और लड़कियों के खिलाफ छह गंभीर अपराध कैसे होते हैं.

लड़कियों के साथ रेप होने, बाल विवाह के लिए मजबूर करने या लड़कों की तुलना में यौन दुर्व्यवहार होने की अधिक संभावना होती है. यौन हिंसा से जुड़े सभी सत्यापित मामलों में 87 फीसदी लड़कियां शामिल होती हैं, जबकि 1.5 फीसदी लड़के होते हैं.

11 फीसदी मामलों में, केस दर्ज नहीं कराया जाता. सोमालिया और डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो लड़कियों के लिए सबसे खतरनाक देश हैं.

2005 की शुरुआत और 2018 के अंत तक बच्चों के खिलाफ यौन हिंसा के लगभग 20,000 मामले दर्ज हुए थे. यह संख्या कहीं अधिक ज्यादा हो सकती है. क्योंकि बहुत सारे लोग समाज के भय के कारण केस दर्ज नहीं करवाते हैं.

अकेले 2018 में हिंसा प्रभावित क्षेत्रों तकरीबन 12,125 बच्चे मारे गए या घायल हुए थे. एक साल पहले की कुल रिपोर्ट की तुलना में 13 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, अफगानिस्तान बच्चों के लिए सबसे खतरनाक देश है.

स्कूलों और अस्पतालों पर हमले की संख्या भी 1,892 हो गई, जो पिछले वर्ष की तुलना में 32 फीसदी अधिक है.

हत्या और छेड़छाड़ के सभी सत्यापित मामलों में,44 फीसदी लड़के शामिल हैं. वहीं लड़कियां17 फीसदी शामिल हैं. अन्य मामलों में केस दर्ज नहीं कराया गया.

2018 में सशस्त्र समूहों द्वारा अपहरण किए गए 2,500 से अधिक बच्चों में से 80 प्रतिशत लड़के थे.

2005 के बाद से तकरीबन 95 हजार बच्चों को मार दिया गया. हजारों बच्चों का अपहरण कर लिया गया लाखों बच्चों ने स्कूलों और अस्पतालों पर हमला करने के बाद शिक्षा और स्वास्थ्य सवाओं के लिए जाने से मना कर दिया. जब तक सभी सरकारें और युद्धरत पार्टियां अंतरराष्ट्रीय मानदंडों और मानकों को बनाए रखने के लिए और अपराधियों को उनके अपराधों के लिए जवाब देने के लिए काम नहीं करतीं, तब तक बच्चों के जीवन का संवेदनहीन विनाश जारी रहेगा.

Last Updated : Jun 4, 2020, 11:55 PM IST

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