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कोयंबटूर के मुरुगन 2.5 एकड़ जमीन पर करते हैं पक्षियों के लिए खेती - कोयंबटूर का किसान

आधुनिक तमिल कवि भ्राति की यादगार पंक्तियों का एक जीवंत उदाहरण हैं कोयंबटूर के किसान मुथु मुरुगन उन तमाम बेजुबान पक्षियों के लिए मसीहा हैं, जो प्रकृति के अंधाधुंध क्षरण से त्रस्त हैं. जी हां! अपनी खेतिहर भूमि से मुनाफा कमाने की बजाय इस किसान ने एवियन (एक तरह का पक्षी) को अपनी भूमि में पनाह दी है. किसान का कहना है कि वह मक्के की खेती करते हैं, जिसे वे इन पक्षियों के लिए छोड़ देते हैं.

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प्रकृति के प्रति अपार प्रेम का सबूत है कोयंबटूर का यह किसान...

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Published : Sep 9, 2020, 5:38 PM IST

कोयंबटूर : जब किसी भी चीज के प्रति आपका प्रेम अपार हो, तो लाभ-हानि जैसी चीज नहीं देखी जाती. ठीक ऐसा ही कर रहे हैं कोयंबटूर के मुथु मुरुगन, जिन्होंने अपनी खेती की भूमि का उपयोग पैसे कमाने के लिए नहीं, बल्कि जानवरों, पक्षियों और जंगल में विचरण करने वाले तमाम बेजुबान मेहमानों के लिए किया है. जी हां! उनकी खेती की जमीन पर हरे भरे पेड़-पौधे, तमाम जीव, कीट पतंगों को देखकर आप प्रकृति के प्रति उनके अपार प्रेम का अंदाजा बड़े आराम से लगा सकते हैं.

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खेती से लाभ कमाने की बजाय उन्हें प्रकृति के हित में काम करना ज्यादा संतुष्टि देता है. यही कारण है कि अपने जुनून के साथ उन्होंने अपनी 2.5 एकड़ जमीन को एवियन आगंतुकों के लिए एक घर बना दिया है.

किसान ने बेजुबान पक्षियों को दिया आश्रय

ज्वार के आगे तैर पाना आसान काम नहीं है. फिर भी धोती पहने किसान ने कुलथुपालयम में अपने सपने को साकार कर दिखाया है.

पक्षियों मक्के की करते हैं खेती

मुरुगन ने कहा कि बहुत कम उम्र से ही मेरी रुचि कृषि में रही. बाद में मुझे जैव-विविधता को बढ़ावा देने के लिए थोड़ा सा करने के लिए प्रेरित किया गया. उपदेश देने की बजाय मैंने अपने खेत में बड़े-बड़े पेड़ लगाकर एक उदाहरण बनाना शुरू कर दिया.

पक्षियों के दाने -पानी की करते हैं व्यवस्था

उन्होंने आगे कहा कि मैं मक्के और बाजरा की बोआई करता हूं, लेकिन उन्हें पक्षियों के लिए छोड़ देता हूं.

मुरुगन के अनुसार, युवा पीढ़ी को जैव विविधता का महत्व जानना चाहिए.

उनका कहना है कि एवियन बीज के फैलाव और जैव विविधता में एक महत्वपूर्ण तंत्र हैं. इतना ही नहीं, पक्षी मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने में भी मदद करते हैं.

आर शनमुगम

इसके अलावा, उन्होंने बताया कि रासायनिक उर्वरकों ने खेत से सूक्ष्म जीवों को मिटा दिया है, जिससे यह बांझ हो गया है.

जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली आपदाओं के लिए मनुष्य जिम्मेदार है, दिखावे के लिए वह एक धोती और एक तौलिया पहनता है.

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हालांकि कुछ लोग इसे उत्पादक बनाने की बजाय अपने खेत को मिनी-जंगल के रूप में बदलने के लिए उसकी आलोचना करते हैं, लेकिन वे अपने काम से खुश रहते हैं. वे कहते हैं कि पक्षियों के विलुप्त होने में, मानव जाति का विनाश है.

मक्के के खेत के सामने खड़ा किसान

कोई आश्चर्य नहीं, वह आधुनिक तमिल कवि भ्राति की यादगार पंक्तियों का एक जीवंत उदाहरण है.

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